प्रोस्टेट ग्रंथि, यू.टी.आई. का होम्योपैथिक उपचार

प्रोस्टेट ग्रंथि, यू.टी.आई. का होम्योपैथिक उपचार

प्रोस्टेट ग्रंथि की बीमारियां

प्रोस्टेट ग्रंथि सिर्फ पुरुषों में होती है। महिलाओं में यह ग्रंथि नहीं पाई जाती है। यह मूत्राशय के नीचे, सामान्यतः अखरोट के आकार की होती है। इस ग्रंथि का कार्य यह है कि यह एक द्रव पदार्थ स्रावित करता है, जिसमें संभोग के समय शुक्राणु आसानी से गतिशील होकर महिला के सर्विक्स (गर्भाशय के गरदन) तक पहुँचता है। जब यह ग्रंथि सूज जाती है या बढ़ जाती है तब परेशानी होती है और यह मूत्र नली के मार्ग को बाधित कर, मूत्र त्याग में परेशानी होती है।

यह ग्रंथि वृद्ध पुरुषों में कैंसर का मुख्य स्थान है। यह समस्या सामान्यत: 50 वर्ष की उम्र के बाद शुरू हो जाती है, जब प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने लगती है। यह स्थिति उपचार के लिए नहीं कहती, जब तक कि मूत्र त्याग में बाधा न हो। इसके परिणाम में बार-बार मूत्रत्याग की इच्छा होना, मरीज़ बार-बार मूत्र त्याग के लिए जाता है परंतु बहुत ही धीरे या बूँद-बूँद में पेशाब आता है। पेशाब कम मात्रा में व अधिक समय लेता है।

प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन को प्रोस्टॅटायटिस कहा जाता है, इसका कारण अत्यधिक संभोग के कारण संक्रमण होना या जब मूत्राशय भरा हो तब अत्यधिक व्यायाम करना । प्रोस्टॅटाटिस में कमरदर्द, पेटदर्द, बुखार और मूत्र त्याग के समय दर्द हो सकता है।

प्रोस्टेट ग्रंथि के कैंसर में कोई लक्षण नहीं दिखता और 40 वर्ष की उम्र के बाद समय-समय पर की गई रक्त की जाँच पर ही कैंसर का पता लग सकता है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार संभोग के समय थोड़ी बेचैनी व स्क्रोटम एरिया (अंडकोश की थैली के क्षेत्र) में दर्द हो सकता है।

  • अधिक हरी सब्जियाँ व फाइबरयुक्त सादा भोजन खाएँ ताकि कब्ज न हो। सुबह खाली पेट दो गिलास पानी पीएँ ।
  • अधिक देर पेशाब रोककर न रखें, जैसे ही आवेग हो पेशाब के लिए जाना चाहिए।
  • मूत्राशय भरा होने पर या पेशाब की इच्छा होने पर व्यायाम न करें।
  • स्नान के पहले व भोजन के बाद मूत्र त्याग की आदत डालें।
  • असुरक्षित संभोग से बचें।
  • धूम्रपान व अत्यधिक शराब के सेवन से बचें।

औषधियाँ

  • प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन व उसका बढ़ना – सबाल सेरूलाटा – Q की 10 से 15 बूँदे, आधे कप पानी में, दिन में तीन बार, पंद्रह दिन तक लें। यह मुख्य औषधि है और इसे लंबे समय तक लिया जा सकता है।
  • जब पेशाब रुके व शुरू हो जाए, मरीज़ सिर्फ खड़े होकर ही मूत्र त्याग कर पाता है व जब वह अविवाहित वृद्ध या विधुर हो तब – कोनियम 30, दिन में तीन बार, सात दिन तक लें।
  • जब मरीज़ का ध्यान यौन वस्तुओं पर हो और उसे मूत्र त्याग की इच्छा हो पर मूत्र त्याग के वक्त कम मात्रा में पेशाब हो तब – स्टैफिसॅग्रिया 200 की एक खुराक रोज़ सोते समय, चार दिन तक लें।
  • जब मरीज़ वृद्ध हो पर व्यवहार बच्चों जैसा हो, अपने लक्षण बताने में वह शर्माता या शर्माती है तब बराइटा कार्बोनिका 200 की एक खुराक रोज़ सोते समय, चार दिन तक लें।
  • वृद्ध इंसानों में मूत्र त्याग करते समय दर्द, बार-बार रात में मूत्र त्याग के साथ शौच के लिए भी दबाव बनना व कभी-कभी मूत्र त्याग रुक जाना – फेरम पिक्रीकम 30, दिन में चार बार, सात दिन तक लें।
  • मूत्र त्याग का आवेग अधिक, मूत्र त्याग के लिए बार-बार दबाव, अत्यधिक तनाव पर कम मात्रा में पेशाब आना – थूजा 30, दिन में तीन बार, सात दिन तक लें।

यू.टी.आई. (मूत्र मार्ग में संक्रमण)

मूत्र पथ के निचले हिस्से में यानी मूत्र मार्ग और मूत्राशय में संक्रमण (इन्फेक्शन) या सूजन ही यू. टी. आई. है । यह ज़्यादातर महिलाओं में देखा जाता है। महिलाओं में मूत्र मार्ग छोटा होने से संक्रमण आसानी से हो जाता है। मूत्र त्याग के समय दर्द, जलन व गर्म लगना इसके मुख्य लक्षण हैं। अचानक और बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा और पेट में नीचे की ओर दर्द महसूस होना। मूत्र दूध (पस की वजह से) जैसा या रक्त जैसा हो जाना, यहाँ तक कि उससे दुर्गंध भी आना। गंभीर मामलों में यह बुखार के साथ हो सकता है।

यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है पर इसे ध्यान न दिया जाए या दवाइयों या दूसरे तरीकों से इसे ठीक न किया जाए तो यह किडनी को नुकसान पहुँचा सकता है। सामान्यतः बैक्टिरिया संक्रमण पैदा करते हैं। ये ज़्यादातर बड़ी आँत में पाए जाते हैं और आसानी से बड़ी आँत से मलद्वार तक व उसके बाद मूत्र मार्ग के मुख तक और फिर ऊपर की तरफ मूत्राशय तक पहुँच जाते हैं। यदि इसका इलाज़ न किया जाए तो ये मूत्राशय की सतह पर जलनयुक्त सूजन पैदा करते हैं। इसमें अधिक खराबी होने पर किडनी पर बुरा असर पड़ता है।

  • भरपूर मात्रा में पानी पीएँ, जिससे बैक्टिरिया मूत्र द्वारा निकल जाएँ।
  • नशीले पेय जैसे शराब।
  • कॉफी पीना, मद्यपान व धूम्रपान करना बंद करें।
  • मूत्र त्याग के बाद जननांग को पानी से साफ करें। यह तब भी किया जाना चाहिए जब कुछ भी संक्रमण (इनफेक्शन) न हो।
  • संभोग के पहले व बाद में जननांग को साफ करें।
  • मल त्याग के बाद मलद्वार को साफ करते समय ध्यान रहे कि दिशा जननांग के विपरीत होनी चाहिए ताकि बैक्टिरिया (इनफेक्शन) मूत्राशय या मूत्र मार्ग में न जाए।
  • सैनिटरी नैपकिन्स समय-समय पर बदलते रहना आवश्यक है ।
  • अधिक तंग (टाइट) अंतर्वस्त्र न पहनें।

औषधियाँ

  • पेशाब जलनयुक्त, दर्दयुक्त और बार-बार आना पर मूत्र त्याग के समय परेशानी व बूँद-बूँद से उत्सर्जन होना – कॅन्थॅरिस 30, दिन में चार बार, चार दिन तक लें।
  • मूत्र त्याग करते समय जलन होना व अंतिम बूँदे गिरते हुए बहुत दर्द होना, प्यास न लगना और मरीज़ का बैचेन होना एपिस मेलिफिका 30, दिन में चार बार, चार दिन तक लें।
  • पेशाब में जलन, मूत्र त्याग के अंत में दर्द – सारसापॅरिला 30, दिन में चार बार, चार दिन तक लें।

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