खांसी, दमा का होम्योपैथी इलाज

खांसी, दमा का होम्योपैथी इलाज

 

खांसी दूसरी बीमारी का लक्षण मात्र है। कब्ज, गले की नली में प्रदाह, यकृत की बीमारी, फेफड़े का प्रदाह। सर्दी जुकाम में तेज़ दवा खाने से बलगम का जम जाना, आदि ।

खांसी दो तरह की होती है। तरल जिसमें बलगम निकलता रहे और कठिन या सूखी जिसमें बलग़म न निकले।

1. जब बलग़म ढीला हो, चलते समय रोगी हांफने लगे, जीभ साफ हो ।

  • इपिकैक 30, दिन में 3 – 4 बार

2. जब छाती में बलगम भरा हो पर कठिनाई से निकले; जीभ सफेद हो ।

  • एंटिमोनियम टार्ट 30, दिन में 3 – 4 बार

3. जब खांसी में बलगम आराम से निकले; सुबह के समय खांसी ज़्यादा हो । खांसी के साथ अनजाने में पेशाब निकल जाए ।

  • स्कविला 30, दिन में 3 – 4 बार

4. जब खांसी सोने के लिए लेटने के कुछ देर बाद या सोने के थोड़ी देर बाद हो ।

  • अरेलिया रेसिमोसा 30, दिन में 3 – 4 बार

5. जब खांसी के साथ मोटी रस्सी के जैसा बलगम निकले।

  • कॉकस कैक्टाई 30, दिन में 3 – 4 बार

6. जब ठंडी हवा में सांस लेने से रोग बढ़ें। गर्मी से या मुंह व सिर ढकने से घटे । गले के निचले हिस्से से खांसी शुरू हो । खांसी सिर्फ रात के समय हो ।

  • रयूमैक्स 30, दिन में 4 बार

7. जब ठंडा पानी पीने की तीव्र इच्छा हो। गर्म जगह से ठंडी जगह पर जाने या बाएं करवट लेटने से रोग बढ़े । खांसी खरखराहट के साथ वायु नली शुरू हो ।

  • फॉस्फोरस 30, दिन में 2-3 बार

8. जब गलकोष (Pharynx) में सूजन होने से रोग आए । गले में जलन, खांसने से मुंह लाल हो जाए।

  • बैलाडोना 30, हर 2 घंटे बाद

9. जब दाई तरफ के गलकोष की सूजन के कारण खुश्क खांसी हो ।

  • सैन्गुनेरिया 30 दिन में 3 बार

10. जब गलकोष की सूजन के साथ गले से सफेद बलगम निकले ।

  • काली म्यूर 6x, 2 से 4 गोली, दिन में 4 बार

11. जब मानसिक तनाव के कारण खांसी हो । धुंए से खांसी बढ़े । जितना खांसो खांसी उतनी ही बढ़े (विरोधी लक्षण) ।

  • इग्नेशिया 200, 3 – 4 खुराक हर 3 घंटे बाद

12. गला बैठने के साथ खांसी जिसमें पेशाब तक निकल जाए। ठंडा पानी पीने से व तर मौसम में आराम आए।

  • कॉस्टिकम 30 दिन में 3 बार

13. जब खांसी दिन में बलगम युक्त और रात में खुश्क हो। ठंडी हवा, खाना खाने या पानी पीने से बढ़े ।

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 3 बार

14. जब पीला बदबूदार, मीठा बलगम निकले। छाती में खालीपन व कमजोरी महसूस हो।

  • स्टेनम मैट 30, दिन में 3 बार

15. जब रात में बिस्तर पर लेटने के बाद स्वरयंत्र व श्वासनली में कीड़े रेंगने जैसा ऐहसास हो और लगातार छींके आएं ।

  • कैप्सिकम 30 दिन में 3 बार

16. जब खांसी बड़ी तेज़ी से आए जैसे बंदूक से अचानक गोली चला दी हो ।

  • कौरेलियम 30, दिन में 3 बार

17.  खांसते हुए छाती में दुःखन, हाथ से दबाने से आराम । प्यास ज़्यादा, ओंठ व जीभ खुश्क । हिलने-डुलने से रोग बढ़े ।

  • ब्रायोनिया 30, दिन में 3 – 4 बार

जब ओंठ व ज़बान खुश्क न हों ।

  • यूपेटोरियम पर्फ 30, दिन में 4 बार

18. खांसी सूखी, या घड़घड़ाहट वाली बलगम भरी, जो ठंडी चीज़ खाने से बढ़े तथा गर्म चीजों को लेने से आराम हो। रोगी मानसिक रूप से उत्तेजित रहे ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 3 बार

19. जब मुंह से व नाक से चिपचिपा गाढ़ा तार खिंचने जैसा सफेद या सादा बलग़म आए ।

  • काली बाईक्रोम 30, दिन में 4 बार

20. जब खांसी शाम के 4 से 8 बजे के बीच ज़्यादा हो ।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

21. तेज़ खांसी ऐसा लगे जैसे सिर व छाती फट जाऐंगे, रात में बिस्तर की गर्मी से बढ़े ।

  • मर्क सौल 30, दिन में 3 बार

22. जब गले व नाक से हरा, पीला बलगम आए।

  • काली आयोडाइड 30, दिन में 3 बार

23. जब खांसी की आवाज सीटी बजने की आवाज जैसी हो ।

  • स्पोंजिया 30, दिन में 3 बार

24. सूखी यां तर खांसी, बलगम पीला । स्वाद व प्यास न रहे ; ठंडी हवा में अच्छा लगे ।

  • पल्साटिला 30, दिन

25. सोने के बाद खांसी, गले व छाती पर कपड़ा तक अच्छा न लगे । बलगम या किसी भी प्रकार के स्राव के बाद आराम मिले ।

  • लैकेसिस 30 दिन में 3 बार

गर्म पानी पीना चाहिए, गले में गर्म कपड़ा लपेटे रहना अच्छा रहता है। गर्म दूध दें। ज़्यादा कमजोरी आने पर शोरवा या सूप दें। रात में सोते समय शहद के साथ अदरक का रस व भुना सुहागा लेने से पुराने खांसी, जुकाम के रोगों में बहुत लाभ होता है। सर्दियों में आंवले का मुरब्बा फायदेमंद हैं ।

ब्रोंकाइटिस (वायु नली प्रदाह) (Bronchitis)

छोटी और बडी सांस की नलियों या उनकी श्लैष्मिक झिल्ली में सूजन होने को ब्रौंकाइटिस कहते हैं। बच्चों और बूढ़ों को यह रोग होने पर अधिक कठिनाई हो सकती है । यदि कारण लगातार बना रहे तो यह रोग पुराना हो जाता है ।

कारण : अधिक देर तक गीले वस्त्र पहनना, भीगना, आदि ।

लक्षण : सर्दी, जुकाम, आलस्य, सिरदर्द, स्वर भंग, हल्का बुखार, श्वास कष्ट, खांसी आदि ।

रोग की प्रथम अवस्था

1. अच्छे भले स्वस्थ, प्रसन्नचित्त व्यक्तियों में अचानक सूखी ठंड लगने के कारण बेचैनी के साथ ठंड, तेज़ बुखार, नाड़ी तेज व डर।

  • एकोनाइट 30, हर 3 घंटे बाद

2. कमजोर व्यक्तियों में जब तेज बुखार हो।

  • फैरम फॉस 6X, 4 – 4 गोलीयों दिन में 4 बार

3. आंखें लाल, चेहरा लाल तमतमाया हुआ, और तेज बुखार । के साथ बेहोशी सी।

  • बैलाडोना 30, दिन में 4 बार

4. प्यास अधिक, बुख़ार तेज़, मुंह खुश्क; खांसने से छाती व सिर में दर्द जैसे सिर फट जाएगा जो हिलने-डुलने से बढ़ता है; इसलिए रोगी चुपचाप लेटा रहता है।

  • ब्रायोनिया 30, दिन में 3 – 4 बार

5. जब बुखार तेज हो, पसीना खूब आए परंतु कोई आराम न आए। मुंह लार से तर, दुर्गन्ध, जीभ पर दांतों के निशान व जीभ मोटी ।

  • मर्क सौल 30, दिन में 3 बार

6. मौसम बदलते समय रोग; जब दिन में गर्मी व रात ठंड हो ।

  • डल्कामारा 30, 3-4 खुराक, हर 3 घंटे बाद

यदि उपरोक्त दवाओं से फायदा कम हो या न हो तो सल्फर 30 की एक खुराक दे कर प्रतीक्षा करें। फिर लक्षण साफ होने पर लक्षणानुसार दवा दें। जिन लोगों को ये रोग बार बार होता है उन्हें ट्यूबरकुलाईनम 200 या 1M की एक खुराक महीने में एक बार कुछ महीनों तक देनी चाहिए।

रोग की द्वितीय अवस्था

1. जब ज़रा सी ठंड से भी रोग बढ़ता हो, यहां तक कि हाथ भी उघड़ जाएं तो रोग बढ़े। छाती में घड़घड़ाहट और नाक से स्राव रुक-रुक कर आए।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 3 बार

2. शाम के समय व बांई करवट लेटने से रोग बढ़े, रोगी कराहे व बात भी न कर पाए; गले में दर्द।

  • फॉस्फोरस 30, दिन में 3 बार

3. छाती में घड़घड़ाहट, ढीली बलगम भरी खांसी हो मगर बलगम निकल नहीं पाती; जीभ सफेद।

  • एंटिमोनियम टार्ट 30, दिन में 3 बार

4. जब उपरोक्त दवाओं से कोई फायदा न हो और सांस व शरीर ठंडा होते हुए भी रोगी ताजी हवा या पंखा चलवाना चाहे।

  • कार्बो वेज 30, दिन में 4 बार

रोग की तीसरी अवस्था

1. यदि दूसरी अवस्था में उपरोक्त दवाओ से फायदा हो मगर बलग़म पूरी तरह साफ न हुई हो; प्यास में 2-4 बार तथा स्वाद भी वापिस न आया हो और ठंडी हवा की इच्छा हो।

  • पल्साटिला 30, दिन में 3 बार

2. बायोकैमिक औषधि काली सल्फ 6X (Kali Sul. 6X) भी ऐसी अवस्था में अच्छा काम करती है।

3. ब्रोंकाइटिस रोग अक्सर सोरा (Psora) की वजह से होता है और इसीलिए सल्फर एवं ट्यूबरकुलाईनम इस रोग की प्रमुख औषधियाँ हैं।

ऐलर्जिक ब्रौंकाइटिस (Allergic Bronchitis)

जब किसी व्यक्ति को किसी विशेष खाद्य पदार्थ या वातावरण से ऐलर्जी हो और ब्रोंकाइटिस के लक्षण उत्पन्न हो जायें तो हो सकता है उसे ऐलर्जिक ब्रोंकाइटिस हो । कारण का पता लगा कर इलाज करने से लाभ होगा ।

1. अक्सर देखने में आया है कि बच्चों में प्रतिरोधक टीके देने के 10-15 दिन बाद ब्रोंकाइटिस की शिकायत हो जाती है । यदि बी. सी. जी. (B. C.G.) का टीका देने के बाद शिकायत हुई हो ।

  • ड्रॉसेरा 1M की 3 खुराक, 10-10 मिनट के बाद

2. बैसिलिनम IM, हफ्ते दो हफ्ते में एक खुराक दें।

3. बायोकैमिक औषधि नैट्रम म्यूर 12X व नैट्रम सल्फ 12X, दोनों की 3-3 गोली दिन में 3 बार देने से फायदा होता है ।

एक चम्मच शहद में थोड़ा सा अदरक का रस व 2 ग्रेन (दो चने के बराबर) भुना सुहागा रात में देने से विशेष फायदा होता है ।

काली खांसी (Whooping Cough)

श्वासतंत्र (respiratory organs) स्वर यंत्र (vocal chords) की सूजन और साथ ही स्वरनली में अकड़न हो और खांसी आए तो उसे काली खांसी कहते हैं ।

लक्षण : शुरू में हल्का सा बुख़ार, छींकें, जुकाम, व आंखों से पानी; बाद में खांसी के दौरे पड़ने लगते हैं। खांसते खांसते सांस रूक जाता है, चेहरा लाल या नीला । आंखें लगता है निकल पड़ेंगी, नसें फूल जाती हैं और थोड़े समय के अंदर ही खांसी प्राणघातक रूप धारण कर लेती है। यह बच्चों की जान लेवा बीमारी है ।

1. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में; जब काफी बेचैनी हो ।

  • एकोनाइट 30, हर 2 घंटे बाद

2. जब चेहरा लाल हो, सिर दर्द हो । शरीर के ऊपरी भाग में रक्त का जमाव हो ।

  • बैलाडोना 30, हर 2-3 घंटे बाद

3. जब ठंड लगने के कारण खांसी हो; गले में मछली का कांटा फंसने जैसा आभास हो ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 4 बार

4. जब बलग़म गाढ़ा व तार की तरह खिंचने वाला हो; सुबह के समय ज़्यादा हो ।

  • काली बाई 30, दिन में 4 बार

5. जब नींद में या नींद के बाद रोग बढ़ता हो । गले के पास कपड़ा तक न सुहाए ।

  • लैकेसिस 30, दिन में 3 बार

6. जब रोगी को ठंडे पानी की तीव्र इच्छा हो; स्वरभंग; शाम को रोग बढ़े।

  • फॉस्फोरस 30, दिन में 3 बार

7. जब गले के अंदर आरी चलने जैसी आवाज हो और कुत्ता खांसी हो (barking cough)

  • स्पोंजिया 6 या 30,दिन में 3 बार

8. जब सूखी तेज खांसी सुबह – सुबह 3 बजे ज़्यादा हो; खाँसी के कारण रोगी उठ बैठे ।

  • काली कार्ब 30, दिन में 3 बार

9. जब काली खाँसी में आक्षेप (convulsions) होने लगें तथा ठंडा पानी पीने से रोगी को आराम मिले ।

  • क्यूप्रम मैट 30, दिन में 3 बार

10. खाँसी जल्दी-जल्दी हो। सांस तक न ले सके, खाँसते समय पेट अंदर को खिंचा हो ।

  • ड्रॉसेरा 30, सिर्फ 2-3 खुराक

11. खाँसते समय शरीर अकड़ जाए; खाँसी करने के बाद गले से पेट तक बोतल से पानी निकलने जैसी आवाज हो । रोगी बार-बार नाक पकड़े।

  • सिना 30, या 200, आवश्यकतानुसार

12. छाती बलग़म से भरी होने से घड़घड़ हो पर बलगम न निकले, जीभ सफेद हो ।

  • एंटिमोनियम टार्ट 30, केवल 2-3 खुराक दें

पुराने रोग में सिफिलिनम IM की एक खुराक देकर परटुसिन IM की एक खुराक अगले दिन दें और फिर उपरोक्त दवाओं में से लक्षण के अनुसार जो दवा उचित समझें दें । ड्रॉसेरा Q. 5 बूंद और जस्टिशिया Q. 5 बूंद अदल बदल कर गर्म पानी में लेने से जल्दी फायदा होता है।

कूप (Croup)

इस रोग को आम बोल चाल में कुक्कुर खांसी कहते हैं। इस खांसी में लैरिंक्स में सूजन हो जाती है।

लक्षण : गला रूध सा जाता है, बुख़ार, घबराहट, सांस बंद हो जाना, हवा के लिए छटपटाना, चेहरा लाल, पीला पड़ जाना, गले की नसें फूल जाना, कुछ समय बाद कूप की सी आवाज से सांस आने लगता है।

1. बिना ठंड लगे किसी भी कारण से अचानक खांसी की लहर सी आए।

  • बैलाडोना 30, दिन में 3-4 बार

2. जब रोग सुबह 3 बजे बढ़े। छाती में खिंचाव एवं ऐंठन हो । पानी पीने से आराम आए ।

  • क्यूप्रम मैट 30, दिन

3. जब रोग सुबह 3 बजे बढ़े। फैरिंक्स (Pharynx) में खुश्की एवं सुई चुभने का सा दर्द हो ।

  • काली कार्ब 30, दिन में 3 बार

4. जब रोग सुबह एवं ठंड के समय बढ़े । ढीला बलगम घड़घड़ाए। खांसी के कारण दम घुटे ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 3 बार

5. ठंड एवं नहाने से रोग बढ़ता हो । हाथ-पैर बर्फ की तरह ठंडे हों।

  • कैल्केरिया कार्ब 200, दिन में 3 बार

बायोकैमिक औषधि मैग फॉस 6X, हर 3 घंटे बाद । व्यक्तिपरक (Constitutional) औषधि से विशेष लाभ होता है अतः लक्षणों के अनुसार व्यक्तिपरक औषधि दे ।

दमा (Asthma)

फेफड़े में हवा ले जाने वाली नलियों (Bronchi) तथा फेफड़ों (Lungs) में जब श्लेष्मा (Mucous) जमा हो जाता है, निकाले नहीं निकलता, सांस मुश्किल से आता है, छाती से सांय-सांय की आवाज़ आती है, सीटियां सी बजती है, रोगी हवा के लिए तरसता है। अक्सर रात्रि में कष्ट बढ़ता है ।

कारण : मानसिक उत्तेजना, कब्ज, वात, धूल, या धुएं भरे वातावरण में रहना । ज़्यादा मात्रा में खराब भोजन करना । यह रोग वंशानुगत (hereditary) भी हो सकता है ।

1. एकाएक तेज़ दमे का आक्रमण (acute attack)। रोग के शुरू में जब बेचैनी व मितली हो ।

  • एकोनाइट Q इपिकैक Q, 10-10 बूंद पहले 1 घंटे के अंतर से अदल-बदल कर व आराम आने पर 3-3 घंटे के बाद दें

2. जब रात के 12 बजे रोग बढ़े; बेचैनी व प्यास अधिक हो ।

  • आर्सेनिक एल्ब 6 या 30, दिन में 4 बार

3. दमा के प्रकोप को कम करने के लिए। जब दम घुटे, सांस ठीक से न ली जाए।

  • ब्लैटा ओ Q. सैनेगा Q, ग्रिन्डीलिया Q व कैशिया सोफोरा Q बराबर मात्रा में मिला कर दें

4. मितली, कलेजे में संकुचन, दम घुटे, जीभ साफ हो ।

  • इपिकैक 6 या 30,2–2 घंटे के बाद

5. सोने से तकलीफ बढ़े, श्लेष्मा निकलने से आराम आए । प्रौढ़ स्त्रियों में रजः स्राव बंद होने के समय दमा ।

  • लैकेसिस 30, 3-3 घंटे के बाद

6. रोगी बहुत चिड़चिड़ा हो। पेट ख़राब रहे, बार- बार पाख़ाना जाने की इच्छा हो। ठंड महसूस करे ।

  • नक्स वोमिका 30, 3-3 घंटे के बाद

7. थोड़ी देर सोने के बाद तकलीफ बढ़े ।

  • अरेलिया रेसिमोसा Q या 30 दिन में 3 बार
  • बायोकैमिक औषधि: मैग्नेशिया फॉस 6X, व काली फॉस 6X अदल बदल कर 3-3 घंटे के बाद

8. रोग जब अंग्रेजी दवाइयां (steroids etc.) लेने के बाद आए, रोगी ठंडी प्रकृति का हो ।

  • थूजा 200 या 1M आवश्यकतानुसार

9. जब ठंड ज़्यादा लगती हो और ठंडी चीजें नुकसान करती हों । नमी में रोगी ठीक रहे ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 3-4 बार

10. बच्चों के पेट में जब कीड़े हों या पहले रह चुके हों ।

  • सिना 1M या 10M की कुछ खुराक दें

11. जब इओसिनोफिल्स की मात्रा बढ़ जाए। सांस फूलने लगे ।

  • थायरोएडिन 200 या 1M, व लैकेसिस 30 आवश्यकतानुसार दें
  • थूजा 200 या 1M भी फायदा करता है

12. रोगी कमर के बल लेट कर हाथ पैर दूर-दूर फैला कर आराम महसूस करे

  • सोराइनम 1 M आवश्यकतानुसार

13. वाहनों के धुऐं या इंडस्ट्रियल पोल्यूशन से रोग हो या बढ़ता हो (खासकर फाउन्ड्री, स्टील मिल, आदि में काम करने वालों को )

  • एसिड सल्फ्यूरोसम 30, दिन में 3 बार

14. जब रोगी सिर्फ खड़ा रह कर सांस ले सके

  • कैनाबिस इंडिका 200 या 1M, आवश्यकतानुसार

15. सूती कपड़ा बुनने व रूई धुनने वाले मजदूरों में।

  • गौसिपियम 30, दिन में 3-4 बार

16. पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों में ।

  • साइलिशिया 30, दिन में 3-4 बार

17. फूलों की खुश्बू से ।

  • ऐलेन्थस जी. 30, दिन में 3-4 बार

18. बरसात व नमी से रोग वृद्धि ।

  • नैट्रम सल्फ 30, दिन में 3-4 बार

19. गुस्से की वजह से रोग बढ़े ।

  • कैमोमिला 200, या 1M, आवश्यकतानुसार

20. दिन के समय रोग बढ़े, घुटनों पर सिर रखने से रोग घटे, व समुद्र तट पर जाने से ठीक हो जाए ।

  • मैडोराइनम 200, या 1M, आवश्यकतानुसार

21. मल्लाहों का दमा जहाज पर समुद्र में रहने से ठीक रहे और समुद्र तट पर आने से उभर आए (खुश्क हवा से बढ़े ) ।

  • ब्रोमियम 30, दिन में 3 बार

22. रात के समय रोग बढ़े ।

  • सिफिलिनम 200, या 1M, आवश्यकतानुसार

23. मानसिक तनाव या अशांति के कारण; धुएं से बढ़े ।

  • इग्नेशिया 200, या 1M, आवश्यकतानुसार

24. पाचन क्रिया मंद, डकारें आयें मगर फिर भी रोगी हल्का महसूस न करे ।

  • चाइना 30,दिन में 3-4 बार

25. ताजी हवा अच्छी लगे व लगातार पंखा कराना चाहे । जब शरीर ठण्डा होने लगे ।

  • काबों वेज 30, दिन में 4 बार

26. पाखाना जाने से रोग घटे धूल से रोग बढ़े ।

  • पोथोस फोइटिडा 30, दिन में 3-4 बार

बच्चों को महीने में एक बार बैसिलिनम 1M व बड़ों को महीने में एक बार ट्यूबरकुलाईनम कोच 1M देने से फायदा होता है ।

बायोकैमिक औषधि – बायो नं0 2, 4-4 गोलियां दिन में 3-4 बार

मांस, मछली, दूध, सफेद चीनी, केक, पेस्ट्री, मैदा के बिस्किट, सफेद डबल रोटी, व मैदा से बनी चीजें न दें। आटा मोटा पिसा इस्तेमाल करें। शहद, सलाद, ताजी सब्जियां, उबला अंडा, पनीर आदि इस्तेमाल करें। रात का भोजन कम व सांयकाल ही कर लें ।

टांसिल

  • बैराइटा कार्ब 6, बैलाडोना 6, गवायकम 6, लेकेसिस 6, बराबर मात्रा में मिला कर मिश्रण तैयार करे और उसकी 3 – 3 बूंद दिन में 3 बार सेवन करें ।
  • मार्क आयोड 6X, काली म्यूर 6X, फेरम फास 6X

घेघा

  • काल्केरिया फ्लोर 30X, 4 गोली सुबह-शाम ।
  • इक्विजोटम 30, लाइकोपोडियम 30; दिन में 3 बार।
  • आयोडिन 200 की एक मात्रा पूर्णिमा के दूसरे दिन 3 – 4 माह तक. यदि लाभ न हो तो 1000 शक्ति में आयोडिन का सेवन उसी प्रकार करायें.

न्यूमोनिया (Pneumonia)

फेफडों के तंतुओं में सूजन हो जाने को न्यूमोनिया कहते हैं । जब दोनों फेंफड़ों में रोग हो (Pleura) कहते हैं। प्लूरा में सूजन हो व स्राव भर जाये तो उसे प्लूरिसी कहते हैं ।

ब्रोंकाइटिस और न्यूमोनिया एक साथ होने को ब्रौंको न्यूमोनिया व प्लूरिसी और न्यूमोनिया एक साथ होने को प्लूरो न्यूमोनिया कहते हैं ।

लक्षण : पहली या आरंभिक अवस्था में ठंड लगने के कारण फेफड़े में सूजन हो जाती है और सांस लेने में कष्ट होता है । तेज बुखार, बेचैनी, प्यास आदि लक्षण होते हैं। दूसरी अवस्था में बलराम बनकर सारे फेफड़े में फैल जाता है; इस अवस्था में बलगम में खून भी आने लगता है। और फेफड़ा कड़ा हो जाता है। यह अवस्था 4 से 18 दिन तक रह सकती है ।

तीसरी अवस्था : आराम होने की ओर बढ़ने वाली अवस्था । इसमें स्राव जज़्ब (absorb) होने लगता है तथा फेफड़ा पुनः काम करने लगता है। अगर स्राव जज़्ब न हो तो रोगी मर भी सकता है । आरंभिक अवस्था में दवा देकर योग्य डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

1. बीमारी की शुरू की हालत में जब कंपकंपी तेज हो । तेज बुख़ार. बेचैनी, प्यास, डर व खुश्क खांसी ।

  • एकोनाइट 30, हर आधे घंटे के बाद

2. जब रोग रात में 12 बजे के बाद बढ़े, रोगी सुस्त हो, बेचैनी महसूस करे व थोड़ा-थोड़ा पानी थोड़ी-थोड़ी देर के अंतर से पिये ।

  • आर्सेनिक एल्ब 30, हर 2 घंटे के बाद

3. तेज बुख़ार के साथ बेहोशी, चेहरा तमतमाया लाल, ढके हुए अंगों पर पसीना; और खून का मस्तिष्क व छाती में जमाव हो

  • बैलाडोना 30 हर 2 घंटे बाद

4. जब बेचैनी खत्म होने पर रोगी चुपचाप पड़ा रहे, हिलने-डुलने से रोग बढ़े, छाती में दर्द व दबाव महसूस हो। खांसने से छाती व माथे में दर्द ।

  • ब्रायोनिया 30, दिन में 4 बार

5. शीत वाली अवस्था, या इलाज ठीक न होने के कारण हालत खराब हो । टट्टी – पेशाब में बदबू, खुली हवा या लगातार पंखा कराना चाहे ।

  • कार्बो वेज 30, हर आधे घंटे बाद या आवश्यकतानुसार

6. जब दाहिने फेफड़े में पित्त का ज़्यादा प्रकोप हो और पित्त के लक्षण भी हों ।

  • चैलिडोनियम 3X या 6, दिन में 3-4 बार

7. जब बलग़म मवाद की तरह का हो। ठंड से रोग बढ़े। रोगी ठंडी प्रकृति का हो ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 3-4 बार

8. जब खूब पसीना आये मगर आराम न मिले। रोग रात में बढ़े।

  • मर्क सौल 30, दिन में 3-4 बार

9. सूखी खांसी, छाती में दर्द, खून मिला बलग़म, ठंडा पीने की इच्छा । आख़िरी अवस्था में।

  • फॉस्फोरस 30 आवश्यकतानुसार

10. जब रोगी बिस्तर में बेचैन रहे। करवट बदलने से आराम महसूस करे; आख़िरी अवस्था में ।

  • रस टॉक्स 30, हर 2 घंटे बाद

11. छाती में बलगम घड़घड़ाये मगर फिर भी न निकले; जीभ सफेद ।

  • एंटिमोनियम टार्ट 30 या 200, 2-3 खुराक दें

12.  आख़िरी अवस्था में जब रोगी ठंडा होने लगे, ठंडा पसीना आए ।

  • विरेट्रम एल्ब 3015-20 मिनट बाद आवश्यकतानुसार

छाती को रूई से ढकना अच्छा है पर अनावश्यक रूप से कपड़े न लादे जायें। ठंडी हवा से बचाव करें। खाने पीने में हल्का व थोड़ा गर्म खाना दें। दलिया, कॉर्नफ्लेक्स, दूध रोटी गर्म दूध के साथ खजूर व बनफशा दूध में उबालकर देने से लाभ होता है।

तपेदिक (Tuberculosis)

तपेदिक एक प्रकार के कीटाणु से होता है जिसे ट्यूर्बकल बैसिलस (Tubercle Bacillus) कहते हैं । यह छूत की बीमारी है । इसे पूर्ण रूप से आनुवांशिक नहीं कहा जा सकता, परंतु जिनके वंश में यह बीमारी रही हो उनको यह बीमारी जल्दी पकड़ती है। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। यहां हम सिर्फ फेफड़ों की टी. बी. का ही हाल दे रहे हैं।

लक्षण : शुरू में रोगी को खुश्क खांसी बार-बार होती है। प्रायः सुबह व रात को ज़्यादा हुआ करती है। छाती में दर्द व बलग़म आने लगता है। शरीर में ताकत नहीं रहती । चेहरा पीला पड़ जाता है। वजन घटने लगता है। रोज बुख़ार व पसीना आता है। रोग बढ़ने पर फेफड़ों खून से आने लगता है।

फेफड़ों की टी. बी. (Pulmonary Tuberculosis)

हर समय थोड़ी-थोड़ी खुश्क खांसी लगातार बनी रहती है। अगर रोगी बलगम को बाहर न थूक कर निगल जाए तो आतों की टी. बी. भी हो सकती है।

1. मुख्य औषधि; सूखी खांसी, खून मिला बलग़म । रोग बढ़ जाने पर यह औषधि न दें ।

  • फॉस्फोरस 30, दिन में 3 बार,

2. बीच-बीच में प्रतिरोधक दवा के रूप में दें। जिनको खाँसी होने के बाद ठीक न होती हो ।

  • ट्यूबरकुलाईनम 1M, 2-3 खुराक

3. सूखी खाँसी, बलग़म खून भरा। सुबह चमकीले लाल रंग का खून व शाम को काला जमा हुआ खून । छाती में हमेशा दर्द बना रहे ।

  • एकालिफा इण्डिका Q या 3X, दिन में 3 बार

4. रोग की हर अवस्था में यह दवा उपयोगी है, बहुत कमजोरी, शरीर दुबला पड़ जाए। तेज प्यास । ठंडे पानी से पेट में बेचैनी, इसलिए रोगी गर्म पानी पीना चाहता है ।

  • आर्सेनिक आयोडाइड 6 या 3X, दिन में 4 बार

5. न्यूमोनिया इत्यादि के बाद फेफड़ों में सूजन और फिर क्षय रोग हो जाए । पेशाब गाढ़ा, व कब्ज़; बलग़म हरा व गाढ़ा। फेफड़ा रोग ग्रस्त होकर ठोस हो जाए।

  • लाइकोपोडियम 30 दिन में 2-3 बार

6. बहुत ज़्यादा खून की उल्टी या खून मिली खाँसी के लिए ।

  • फाइकस रैलीजियोसा Q, दिन में 3-4 बार

7. फेफड़ा ठोस हो जाए । छाती में बलग़म की घड़घड़ाहट । पीला बलगम काफी मात्रा में निकले। कष्ट रात में बढ़े ।

  • हिपर सल्फ 30, दिन में 2-3 बार

8. खाँसते हुए छाती में व कंधों के बीच दर्द । खाँसी सुबह ज़्यादा आती है । चलने-फिरने से बढ़ती है ।

  • ब्रायोनिया 30, दिन में 3 बार

9. खांसते – खांसते रोगी ने जो भी खाया पिया हो उलट दे । खाँसी के साथ ऐंठन हो ।

  • ड्रॉसेरा 6 या 30 2-3 खुराक

10. सामान्य खांसी के साथ बहुत ज़्यादा मात्रा में खूब लाल चमकदार खून निकले । दर्द या बेचैनी न हो।

  • मिलिफोलियम Q या 6, दिन में 3-4 बार

11. मानसिक बेचैनी, बदबूदार पाखाना, अत्यंत सुस्ती व कमजोरी; दुबलापन ।

  • आर्सेनिक एल्ब 30, दिन में 3 बार

12. शरीर की ग्रन्थियां कड़ी हो जाती हैं पर फिर भी उनमें दर्द नहीं होता। बहुत तेज भूख हो, रोगी में सदा खाता रहता है, परन्तु फिर भी दुबला होता जाता है ।

  • आयोडियम 30, दिन में 3 बार

13. मामूली ठंड से भी रोगी परेशान हो जाता है । काले रंग का श्लेष्मायुक्त पाखाना। रोगी निराश हो चुका हो ।

  • सोराइनम 200, 2-3 खुराक

14. मानसिक व शारीरिक विकास पूरा न हुआ हो; ठंड से रोग बढ़े। ग्रन्थियों में सूजन हो ।

  • बैराइटा कार्ब 30 दिन में 3 बार

बायोकैमिक औषधि : कैल्केरिया फॉस 6x, दिन में 3 बार

किसी कुशल चिकित्सक की देख रेख में ही इस रोग का इलाज करवाना चाहिए । समुद्र के किनारे या पहाड़ों पर स्वच्छ वातावरण में रोगी को रखना चाहिए। खुली हवा का भरपूर सेवन करना चाहिए। खट्टी और मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहियें । रोगी को अलग रखना चाहिए। उसके काम में आई चीज़ किसी दूसरे के काम में नहीं लानी चाहिए । गाय का दूध, मक्खन, अंगूर, मुनक्का, उत्तम भोजन है।

रोग की तीव्र अवस्था में यदि ऐलोपैथिक इलाज करवाया हो तब भी बाद में, होम्योपैथिक चिकित्सा कराने से रोग के बाद के विकार ठीक हो जाते हैं।

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