जेल्सीमियम | Gelsemium

जेल्सीमियम | Gelsemium

बच्चों, युवा व्यक्तियों, विशेष रूप से स्नायविक, वातोन्मादी प्रकृति की स्त्रियों के लिये (काक्क, इग्नें) । समस्त पेशी-जाल का पूर्ण ढीलापन एवं अवसाद, साथ ही पूर्ण प्रेरक पक्षाघात । उत्तेजित, चिड़चिड़ा, सूक्ष्मग्राही हस्तमैथुन करने वाले स्त्री-पुरुषों को होने वाले स्नायु रोगों के लिये (काली-फा) ।

भयातुर होने, घबरा जाने, उत्तेजनाशील समाचार सुनने एवं आकस्मिक भावोद्वेगों के कुफल (इग्ने; आनन्ददायक आश्चर्य से काफि) । मृत्यु का भय (आर्से); साहस का भारी अभाव । किसी प्रकार के अस्वाभाविक अपराध किये जाने की आशंका, गिरजाघर अथवा रंगशाला जाने की तैयारी करते हुए अथवा किसी व्यक्ति से मिलने के लिए जाते समय अतिसार की अवस्था प्रकट हो जाती है; मंच पर खड़ा होने का भय, जनता के सामने उपस्थित होने का स्नायविक भय (आर्जे-नाइ) ।

सूर्य अथवा ग्रीष्मकाल की गर्मी से सारा शरीर कुम्हला जाता है । जिह्वा, हाथों, टांगों अथवा सम्पूर्ण शरीर की दुर्बलता और कम्पन

शान्त एवं एकाकी रहने की इच्छा न किसी से बात करना चाहती है न किसी को अपने पास रखना चाहती है, चाहे पास रहने वाला व्यक्ति चुपचाप ही क्यों न हो (इग्ने)।

भ्रमि अथवा चक्कर, जो सिर के पिछले भाग से फैलता है (साइली), साथ ही दोहरी दृष्टि, मन्द दृष्टि, दृष्टिलोप; जब गति करने का प्रयास करता है तो ऐसा लगता है जैसे नशे में हो

बच्चे – गिरने से डरते हैं, पालना भींच कर पकड़ लेते हैं अथवा धाय चिपट जाते हैं (बोरे, सैनीक्यू)।

सिरदर्द – सिरदर्द आरम्भ होने से पहले दृष्टिलोप (काली-बाइ), मूत्र की विपुल मात्रा जाने से आराम आता है।

पेशी संयोजन की अभाव; भ्रान्त; पेशियाँ इच्छानुसार कार्य नहीं करतीं ।

सिरदर्दगर्दन की सुषुम्ना में आरम्भ होता है; दर्द सिर के ऊपर फैलता है, फलस्वरूप ललाट एवं नेत्रगोलकों में फाड़ती हुई अनुभूति होती है (इसी प्रकार आरम्भ होता है, किन्तु अर्धपाश्विक – सैंग्वी, साइली ) मानसिक परिश्रम से, धूम्रपान से, सूर्य की गर्मी से, सिर को नीचे रख कर लेटने से बढ़ता है । आंखों के ऊपर सिर के चारों ओर पट्टी बंधी होने जैसी अनुभूति (कार्बो-एसिड, सल्फ); स्पर्श करने पर खोपड़ी में दुखन होती है।

डरता है कि यदि वह हिलेगा-डुलेगा नहीं तो हृदय की धड़कन बन्द हो जायेगी (डरता है कि यदि वह हिलेगा-डुलेगा तो हृदय की धड़कन बन्द हो जायेगी – डिजिट) । बुढ़ापे की मन्द नाड़ी । पलकों का अत्यधिक भारीपन; उन्हें खुला नहीं रख सकता (कास्टि, ग्रेफा, सीपि ) ।

प्यासहीन शीत, विशेष रूप से मेरुदण्ड के साथ-साथ, जो पीठ में बड़ी तेजी के साथ, त्रिकास्थि से लेकर पश्चकपाल तक लहरों के समान कभी ऊपर को ओर तो कभी नीचे की ओर दौड़ती रहती है ।

सम्बन्ध – आंत्रिक ज्वर की आशंका में बेप्टी से तथा कुमीन द्वारा दबा दिये गये मूक शीतज्वर में इपिका से तुलना कीजिए ।

रोगवृद्धि – आर्द्र जलवायु; तूफान से पहले, मानसिक भावोद्वेग अथवा उत्तेजना; बुरा समाचार धूम्रपान; अपनी व्याधियों के बारे में सोचते हुए उसको होने वाली हानि के बारे में बोलने पर ।

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