फ्लोरिक एसिड | Fluoric Acid

फ्लोरिक एसिड | Fluoric Acid

वृद्धावस्था अथवा समय से पहले ही आ जाने वाले बुढ़ापे के रोग; उपदंश एवं पाराजनित रक्तदोष में युवा व्यक्ति वृद्ध दिखाई देते हैं। बिना किसी खतरे के व्यायाम करने की बढ़ी हुई क्षमता (कोका); ग्रीष्म ऋतु की बढ़ी हुई गर्मी अथवा शीतऋतु की बढ़ी हुई सर्दी से कम प्रभावित होता है।

पुराने घावों के दाग किनारे से लाल हो जाते हैं और उनसे पुनः पूयस्त्राव होने की आशंका बन जाती है (कास्टि, ग्रैफा) ।

शिरा-स्फीति एवं व्रण, दुखदायी, चिरस्थायी, उन स्त्रियों में जो बहुत से बच्चों को जन्म दे चुकी हैं।

अस्थिक्षय एवं अस्थिगलन, विशेष रूप से दीर्घास्थियों का, कच्छुविषजनित अथवा उपदंशविषजनित, पारद अथवा सिलीका के अपव्यवहार से (एग्नस) ।

तिल चपट्टे, बच्चों के (दाई कर्णपटी); केशिका-विस्फार (कल्के-फ्लो एवं टूबर से तुलना कीजिये) ।

व्रण – लाल किनारे और फुन्सियाँ; शय्याक्षत; विपुल साव; गर्मी से वृद्धि, ठण्ड से ह्रास; प्रचण्ड पीड़ा, विद्यत लहर जैसी, छोटे से दायरे में सीमित । द्रत दन्तक्षय दान्तों अथवा अश्रुनली का नासूर चेहरे की अस्थियों का अर्बुद (हेक्ला) ।

सम्बन्ध –

  • यह कोका ओर साइलीशिया की पूरक औषधि है
  • यह मदिरापान करने वाले व्यक्तियों को होने वाले जलोदर में आर्स के बाद, प्रभावशाली क्रिया करती है।
  • नितम्ब रोगों में काली-कार्बो के बाद प्रभावशाली क्रिया करती है।
  • दान्तों की असहिष्णुता में काफि और स्टेफि के बाद प्रभावशाली क्रिया करती है।
  • मधुमेह में फास्फो-एसिड के बाद प्रभावशाली क्रिया करती है।
  • अस्थि रोगों में साइली और सिम्फा के बाद प्रभावशाली क्रिया करती है।
  • गलगण्ड में स्पांजि के बाद प्रभावशाली क्रिया करती है।

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