फेरम मेटालिकम | Ferrum Metallicum

फेरम मेटालिकम | Ferrum Metallicum

रक्तप्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति; चिड़चिड़ा, झगड़ालू, विरोधी स्वभाव वाला, सहज सी उत्तेजित हो जाने वाला, मामूली-सा प्रतिवाद करने पर क्रुद्ध हो जाता है (एनाका, काक्कू, इग्ने); मानसिक श्रम करने पर आराम । चिड़चिड़ापन हल्के से शोरगुल, यहां तक कागज की फड़फड़ाहट से भी वह आपे से बाहर हो जाता है (एसार, टार) । ऐसी स्त्रियों, जो दुर्बल, कोमलांगी एवं अरक्तक होती हैं फिर भी उनका चेहरा आग के समान लाल रहता है ।

चेहरे, होंठों एवं श्लेष्म-कलाओं की अतिशय पीलिमा, जो हल्का-सा दर्द

होने, किसी प्रकार का मनोद्वेग बढ़ने अथवा परिश्रम करने से लाल हो कर तमतमा जाते हैं, लालिमायुक्त चेहरा (एमिल, कोका) ।

धातुदोषज हरित्पाण्डुरोग, सर्दियों में बढ़ने वाला । लाल अंग सफेद हो जाते हैं; चेहरा, अधर जिल्ह्वा एवं मुख की श्लेष्म-कला ।

भ्रमि अथवा चक्कर – जैसे पानी के ऊपर हो और स्वयं को सम्हालने के लिये अपना भार सन्तुलित कर रहा हो; बहता हुआ पानी देखने पर; पानी पर चलते समय, जैसे पुल पार करते समय (लाइसिन); नीचे को उतरते समय (बोरे, सैनीक्यू)।

सिरदर्द – हथौड़े मारने जैसी, पिटाई करने जैसी, स्पन्दनशील पीड़ा, नीचे लेटना पड़ता है; साथ ही खाने-पीने की अनिच्छा, हर दूसरे या तीसरे सप्ताह दो, तीन या चार दिन के लिये ।

ऋतुस्राव – नियत समय से बहुत पहले, विपुल परिमाण में, चिरकाल तक गतिशील रहने वाला, साथ ही आग जैसा लाल चेहरा; कानों के अन्दर घण्टी जैसी टनटनाहट दो-तीन दिन तक रुकने के बाद पुनः लौट आता है; स्त्राव पीला, नीला, दुर्बलकारी । रक्तस्त्राव की प्रवणता; रक्त चमकता हुआ लाल, सहज ही जम जाता है (फेर-फा, इपिका, फास्फो) ।

मितली हुए बिना, खाये हुए भोजन का ऊर्ध्वनिक्षेप एवं डकारें (एलूमि) । कुत्ते जैसी भूख, अथवा भूख का अभाव साथ ही समस्त खाद्यानों से भारी अरुचि ।

वमन – आधी रात के बाद तुरन्त; जैसे ही कोई पदार्थ खाया जाता है वैसे ही उसका वमन हो जाता है; खाना खाते-खाते मेज से उठकर चला जाता है और हल्का सा प्रयत्न करने पर खाई गई प्रत्येक वस्तु का वमन कर देता है; पुनः बैठ सकता है और खाना खा सकता है; खट्टा, अम्ल (लाइको, सल्फ) ।

अतिसार – रात को अपचित मल, अथवा खाते-पीते समय  (क्रोटे-हो); अच्छी भूख के साथ दर्दहीन; यक्ष्माग्रस्त रोगियों को होने वाला ।

मलबद्धता – आन्तों की दुर्बलता के कारण; निष्फल मलावेग; मल कठोर, कठिनाई के साथ होने वाला, उसके बाद कमर दर्द अथवा मलांत्र के अन्दर ऐंठन; बच्चों का गुदभरंश; रात को मलद्वार में खुजली ।

सदैव धीरे-धीरे टहलते हुए आराम महसूस करता है यद्यपि दुर्बलता के कारण रोगी लेटने के लिये बाध्य हो जाता है ।

खाँसी केवल दिन के समय होती है (यूफ्रे) लेटने से आराम आता है; खाने से खांसी कम हो जाती है (स्पांजि) ।

शोफ – जैवी द्रव्यों के नष्ट होने के बाद; कुनीन के अपव्यवहार से; सविराम-ज्वरों की दबी हुई अवस्था से (कार्बो-वेजि, सिन्को) ।

सम्बन्ध

  • एलूमि और सिनकोना की पूरक औषधि ।
  • लगभग सभी प्रकार के तरुण या जीर्ण रोगों में इसके बाद सिन्कोना की उत्तम क्रिया होती है ।
  • इसे उपदंश में कभी नहीं देना चाहिये, अन्यथा इससे सदैव रोगवृद्धि होगी ।

रोगवृद्धि – रात को; विश्राम करने पर, विशेष रूप से शान्त बैठे रहते पर ।

रोगह्रास – धीरे-धीरे टहलने पर गर्मियों में ।

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