डिजिटेलिस पर्पूरिया | Digitalis Purpurea

डिजिटेलिस पर्पूरिया | Digitalis Purpurea

रजोनिवृत्ति के दौरान चेहरे पर अकस्मात् ही गर्मी की चौंधियाहट के बाद भारी स्नायविक दुर्वलता और अनियमित रूप से चलती हुई सविराम नाड़ी; हल्की-सी गति करने से भी लक्षण-वृद्धि ।

हत्कपाटों की अनुपद्रवशील अवस्थाओं के होते हुए भी हृदय दुर्बल रहता है । महसूस करती है कि यदि वह हिलेगी-डुलेगी तो हृदय की धड़कन बन्द हो जाएगी (कोकेन; भय होता है कि यदि वह निरन्तर गतिशील नहीं रहेगी तो हृदय की धड़कन बन्द हो जायेगी – जेल्सी) ।

मूर्च्छा अथवा आमाशय के अन्दर खालीपन थकान; चरम अवसाद उसे लगता है जैसे उसकी मृत्यु होने वाली है । रात्रिकालीन स्वप्नदोष; साथ ही सम्भोग के बाद लिंग की भारी दुर्बलता । वक्ष की अत्यधिक दुर्बलता, बात-चीत करना असह्य (स्टैन) ।

मल – अत्यन्त हल्का, राख के रंग जैसा विलम्बित, खड़िया जैसा

(चेलिडो, पोडो), लगभग सफेद (कल्के, सिन्को); नलाकार मल; अनैच्छिक ।

नाड़ीभारी, अनियमित अतिशय मन्द एवं दुर्बल प्रत्येक तीसरी, पाँचवीं अथवा सातवीं धड़कन पर रुक जाती है। चेहरा पीला, शवतुल्य और नीला लाल । त्वचा का नीलापन, पलकें, अधर और जिह्वा श्वायता अर्थात् नील-पाण्डु रोग ।

पलकों, कानों, अधरों और जिला की शिरायें फूली हुई । श्वास अनियमित, कठिन, गहरी सिसकियों के साथ । उँगलियाँ बार-बार और सहज ही सो जाती हैं।

शोफ – रक्तज्वरोत्तर, वृक्कशोथ (Bright’s disease) में; साथ ही मूत्र- रोध; अन्तरंगों एवं बाह्यांगों का; साथ ही हृदय के आंगिक रोगों की विद्यमानता रहने पर मूर्च्छा (जरायु-प्रदेश में दुखन गतिशील रहने के साथ – कन्वै)।

तनकर खड़ा रहने पर घातक मूर्च्छा प्रकट हो सकती है ।

सम्बन्ध – सिन्कोना डिजिटेलिस के प्रत्यक्ष प्रभाव की प्रतिषेधक है और अधीरता को बढ़ाती है ।

रोगवृद्धि – बैठे रहने पर विशेष रूप से जब तन कर बैठता है; गति करने से ।

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