केलेण्डुला | Calendula

केलेण्डुला | Calendula

चोटमूलक रोगावस्थायें; फटी हुई त्वचा को जोड़ना तथा पूतिता रोकना इसका प्रथम कार्य है । शरीर के कोमल अंगों के क्षतिग्रस्त होने की सम्पूर्ण अवस्थाओं में जब चिपकने वाला प्लास्टर फटी हुई त्वचा को जोड़ने में अक्षम पाया जाय ।

शरीर के किसी तत्व को हानि पहुँचने अथवा न पहुँचने के साथ बाह्य त्वचा के घाव फटे हुए एवं बिखरे हुए मांस से परिपूर्ण घाव शल्योत्तर घाव स्वस्थ कणांकुरता को बढ़ावा देने तथा अत्यधिक पूयस्त्राव और भद्दे क्षतचिन्हों को रोकने के लिये । चोटमूलक तथा रोगमूलक तंत्रिकार्बुद (सेपा); विदीर्ण घावों के फलस्वरूप होने वाला तंत्रिकाशोथ (हाइपे); रक्तस्त्राव होने तथा अत्यधिक पीड़ा के फलस्वरूप थका हुआ

पेशियों अथवा कण्डराज (tendon) का टूट-फूट जाना; प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाले विदीर्ण घाव; लघुसन्धियों को आक्रान्त करने वाले यंत्रणा दायक घावों के साथ श्लेषक रसों (synovial fluids ) की हानि ।

धाव – साथ ही ज्वरोत्ताप (febrile heat) के दौरान आकस्मिक पीड़ा; विसर्प (erysipelas) प्रकट होने की वंशगत प्रवृत्ति (सोरा ) पुराने उपेक्षित, दुर्गन्धित घाव कोष (gangrene) की आशंका (सैली-एसिड) ।

व्रण – क्षोभक (irritable) प्रदाहित (inflamed) कोयमय, शिराविस्फारीय ऐसी पीड़ा होती है जैसे किसी ने पिटाई की हो (आनिका); अत्यधिक पूयस्त्राव । कैलेण्डुला स्वच्छ शल्यक्रियाजनित अथवा विदीर्णकारी घावों के लिये प्रायः एक विशिष्ट प्रकार की औषधि है, जो पूयस्त्राव की बढ़ी हुई मात्रा को रोकती है ।

सम्बन्ध –

  • हीपर एवं सेली-एसिड की पूरक औषधि ।
  • तंत्रिकाओं से परिपूर्ण भागों की क्षतिग्रस्तता में यह हाइपेरिकम के समान है, जहां चोट की तुलना में दर्द कई गुना बढ़ा हुआ पाया जाता है।
  • कोमल ऊतकों की विदीर्णताहीन चोटों में यह आनिका के समान है।

सिम्फा एवं कल्के-फास्फो अस्थियों को जोड़ने वाली औषधियाँ हैं । मूत्रमार्गी द्वार के पिछले भाग से फैलने वाले दर्द में सैली-एसिड पूर्वस्राव की बड़ी हुई मात्रा को रोकती है; कोथ ।

पीड़ाप्रद एवं कोथमय घावों में (सल्फयू-एसिड) कहा जाता है कि यह पूयाणुओं को नष्ट करती है ।

यह शक्तिकृत औषधि एवं मूलार्क दोनों ही अवस्थाओं में उत्तम क्रिया करती है; इसे घाव पर लगाया जाता है और साथ ही इसका सेवन भी किया जा सकता है ।

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