कल्केरिया फास्फोरिका | Calcarea Phosphorica
रक्ताल्प एवं सांवले शरीर वाले व्यक्तियों के लिये जिनके काले केश एवं नेत्र होते हैं; स्थूलकाय व्यक्तियों की अपेक्षा दुबले-पतले लोग । कण्ठमालाग्रस्त बच्चों के लिये प्रथम एवं द्वित्तीय दन्तोद्गम के दौरान, अतिसार एवं बड़ा हुआ आध्मान (flatulence) ।
बच्चे – कृशकाय खड़े होने में असमर्थ चलना देर से सीखते हैं (कल्के, सिली); धँसा हुआ और थुलथुला उदर । नवजात शिशु की नाभि से रक्तिम स्त्राव टपकता रहता है (मूत्र टपकने पर – हायोसा) ।
अस्थिशोथ (rachitis) – कपालास्थियां पतली और बिखरी हुई ब्रह्मरन्ध्र एवं कलान्तराल चिरकाल तक खुली हुई स्थिति में रहते हैं अथवा वे बन्द हो कर पुनः खुल जाते हैं; दान्त देरी से निकलते हैं या निकलने में कष्ट देते हैं ।
मेरुदण्ड दुर्बल, टेढ़ा होने का स्वभाव, विशेष रूप से बाईं ओर को; शरीर का भार सम्भालने में अक्षम; ग्रीवा दुर्बल, सिर का भार सम्भालने में असमर्थ (एबोट) ।
यौवनारम्भ के दौरान लड़कियां लम्बी, जो तेजी से बढ़ती हैं; अस्थियों के कोमल होने अथवा मेरुदण्ड का टेढ़ा होने की प्रवृत्ति (बेरी) । यौवनारम्भ पर रक्ताल्प लड़कियों के चेहरे पर मुहासे प्रकट होने के साथ कपालशीर्ष में सिरदर्द एवं आध्मानयुक्त अग्निमांद्य खाने से आराम ।
शोक-सन्ताप, निराश प्रेम के फलस्वरूप प्रकट होने वाले रोग (और, इग्ने, फास्फो-एसिड) । रोगोपसगों के बारे में सोचने पर अधिक कष्ट महसूस होता है (हेलोनि, आक्जै–एसिड) । अनैच्छिक सिसकियाँ (इग्ने) ।
अस्थियों में संयोजन का अभाव हड्डियों को पुष्ट करती है (सिम्फा) ।
ठण्डे मौसम का आमवात; वसन्त ऋतु आने पर रोगमुक्त हो जाता है किन्तु शिशिर ऋतु आते ही रोगावेग पुनः प्रकट हो जाता है।
स्कूल जाने वाली लड़कियों का सिरदर्द (नेट्र-म्यूरि, सोरा); अतिसार ।
खाने की प्रत्येक चेष्टा करने पर उदर के अन्दर शूल प्रकृति की पीड़ा ।
भगन्दर, वक्ष लक्षणों के साथ पर्यायकमी (बर्वे); जैवी ताप का अभाव ठण्डा पसीना और शरीर में सर्वांगीण शीतलता ।
सम्बन्ध –
- रुटा की पूरक औषधि ।
- कार्बो-एनि, कल्के-फलोरि, कल्के, फलोरि-एसिड, काली-फास्फो के समान;
- तरुण रोगों के बाद विद्यमान रहने वाली दुर्बलता में सोरा के समान;
- साइली के समान, किन्तु इसमें शिरोस्वेदन (sweat of head) का अभाव रहता है।
- आयोड, सोरा, सैनीक्यू एवं सल्फ से पहले और आर्से, आयोड तथा टुबर के बाद इसकी उत्तम क्रिया होती है ।
रोगवृद्धि – नम, शीतल, परिवर्तनशील जलवायु के अनावरण द्वारा, पूर्वी हवायें, पिघलती हुई बर्फ, मानसिक श्रम ।
रोगह्रास- ग्रीष्म ऋतु में गर्म, शुष्क जलवायु ।