बेलाडोना | Belladonna

बेलाडोना | Belladonna

पित्तात्मक, लसीकाप्रधान एवं रक्तबहुल प्रकृति के रोगियों के लिये उपयोगी; ऐसे व्यक्ति जो स्वस्थ रहने पर प्रसन्नचित्त एवं विनोदप्रिय रहते हैं, किन्तु बीमार होते ही प्रचण्ड एवं बहुधा प्रलापक रूप धारण कर लेते हैं । ऐसी स्त्रियों व बच्चे जिनके हल्के केश एवं नीले नेत्र होते हैं, उनकी सुन्दर मुखाकृति होती है एवं कोमल त्वचा रहती है वे असहिष्णु, स्नायविक और आक्षेप की आशंका से घिरे रहते हैं; क्षयरोग से पीड़ित रोगी ।

सहज ही सर्दी लग जाती है; हवा के झोंकों के प्रति असहिष्णु, विशेष रूप से जब सिर नंगा रहता है; बाल कटाने से भी सर्दी लग जाती है; ठण्डी हवा में घुड़सवारी करने से तुण्डिकायें प्रदाहप्रस्त हो जाती हैं (ऐकोना, हीपर, रस-टा); पैरों में ठण्ड लगने से सर्दी लग जाती है (कोनि, क्यूप्रम, सिलीका) ।

द्रुत अनुभूति एवं गति; नेत्र बन्द हो जाते हैं और झटपट खुल जाते हैं; दर्द अकस्मात् आरम्भ होता है, अनिश्चित समय तक गतिशील रहता है और अचानक बन्द हो जाता है (मैग्नी-फा) । दर्द का प्राय: अल्पकालिक दौरा पड़ता है; चेहरे और नेत्रों की लाली पैदा कर देता है; सिर में पूर्णता और मन्याधमनियों में स्पन्दन (throbbing) । कल्पना करता है जैसे वह भूत-प्रेतों, अदृष्ट चेहरों तथा विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़ों को देखता है (स्ट्रामो) काले जीव-जन्तु, कुत्ते और भेड़िये दिखाई देते हैं । काल्पनिक वस्तुओं का भय उनसे भागना चाहता है; मिथ्याभ्रम (hallucination)।

प्रचण्ड प्रलाप; बुडका भरने, थूकने, मार-पीट करने की प्रवृत्ति, ठहाका मार कर हँसता है और दान्त निपोड़ता है परिचारकों को दान्त से काटना चाहता है और उनकी पिटाई करना चाहता है (स्ट्रामो) भागना चाहता है (हैलीबो)।

सिर तपा हुआ और पीड़ाप्रद; चेहरा तमतमाया हुआ; नेत्र भयावह, अनिमेष दृष्टि, पटल फैले हुए नाड़ी पूर्ण और उछलती हुई, गोलाकार बन्दूक की गोली के समान उँगली पर प्रहार करती हुई; मुख की श्लेष्म कला सूखी हुई मल अवरुद्ध एवं मूत्र दबा हुआ; निद्रालु, लेकिन सो नहीं सकता (कमो, ओपि) ।

दन्तोद्गम के दौरान ज्वर के साथ आक्षेप (ज्वरहीन मैग्नी-फा); एकाएक प्रकट होने वाला, सिर तपा हुआ, पैर ठण्डे । सिर एवं मुखमण्डल की ओर रक्त का बहाव (एमीले, ग्लोना, मेली) ।

सिरदर्द – रक्तसंलयी, साथ ही लाल चेहरा, मस्तिष्क और मन्या- धमनियों (carouds) का स्पन्दन (मेली) अल्पतम शोर-गुल क्षेप (jar), गति, प्रकाश, लेटने, शारीरिक श्रम से वृद्धि; दबाब देने, सिर को कस कर बांधने, लिपेटने और ऋतुस्राव के दौरान ह्रास । तकिये के अन्दर सिर घुसाता है (एपिस, हेली, पोडो) । भ्रमि अर्थात् चक्कर – झुकते समय अथवा झुक कर उठते समय (ब्रायो) स्थिति परिवर्तन पर प्रत्येक बार ।

उदर स्पर्शकातर, फूला हुआ, हल्के से झटके से यहां तक कि विस्तरे के स्पर्श से भी पीड़ा बढ़ जाती है; झटका लगने के भय से अत्यन्त सावधानी के साथ चलना पड़ता है । दायें कटि-त्रिक प्रदेश में पीड़ा, जो हल्के से स्पर्श द्वारा यहाँ तक कि विस्तरे के स्पर्श से भी बढ़ जाती है।

अनुप्रस्थ बृहदांत्र (transverse colon ) एक गद्दी के समान फैल जाती है।

त्वचा – सर्वत्र एक सी, कोमल, चमकती हुई दानेदार लाल, शुष्क, तप्त; जांच करने वाली उँगलियों पर जलन की अनुभूति होती है; एक यथार्थ सीडेन्हाम रक्त ज्वर से युक्त, जब दाना पूर्णतया कोमल और वास्तविक रक्त-ज्वर हो ।

नीचे की ओर ऐसा दबाव पड़ता है जैसे भग (vulva) से उदर की प्रत्येक वस्तु बाहर निकल आयेगी; खड़े रहने और बैठने पर वृद्धि प्रातःकाल अधिक (लिलि म्यूरे, सीपि)।

सम्बन्ध –

  • यह कल्केरिया की अनुपूरक है;
  • बेलाडौना कल्केरिया की तरुणोषधि है, जो रोगयुक्ति के निमित्त बहुतायात से प्रयुक्त की जाती है।
  • यह ऐकोना, ब्रायो, सिक्यू, जेल्सी, ग्लोना, हायोसा, मेली, ओप, स्ट्रामो के सदृश है।

रोगवृद्धि – स्पर्श, गति, शोरगुल, वायुप्रवाह, चमकती हुई वस्तुओं की ओर देखने से (लाइसीन, स्ट्रामो); दोपहर 3 बजे के बाद रात के समय, आधी रात के बाद पीते समय सिर नंगा रखने पर ग्रीष्मकालीन धूप से; लेटने से ।

रोगह्रास – आराम करने पर, सीधा तन कर खड़े रहने या बैठने से, गर्म कमरे में ।

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