बेराइटा कार्बोनिका | Baryta Carbonica

बेराइटा कार्बोनिका | Baryta Carbonica

बचपन के प्रथम एवं द्वित्तीय चरणों में आक्रान्त करने वाले रोगों के लिए विशेष उपयोगी; कच्छुविष अथवा यक्ष्मा रोग से पीड़ित रोगी । अल्प-मति भुलक्कड़, लापरवाह, बच्चे को सिखाया नहीं जा सकता, क्योंकि वह याद नहीं रख सकता; जड़मति हो जाने की आशंका ।

कष्ठमालाग्रस्त (scrofulors), वामनरूप (dwarfish) बच्चे, जिनका विकास नहीं हो पाता (जिन बच्चों का विकास द्रुत गति से होता है – कल्के); कण्ठमाला – परक नेत्राभिष्यन्द (scrofulous ophthalmia), स्वच्छमण्डल धुंधला, उदर फूला हुआ, निरन्तर उदरशूल के दौरे; चेहरा फूला हुआ, सार्वदेहिक कृशता (general emaciation) ।

बच्चे शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार से दुर्बल रहते हैं। वामन-तन, वातोन्मादी स्त्रियां एवं अविवाहित महिलायें, जिन्हें ऋतुस्राव अल्प मात्रा में होता है; जैवीताप की अल्पता, सदैव शीताक्रान्त रहती हैं ।

बृद्ध, अस्वस्थ लोग; कण्ठमालाग्रस्त रोगी, विशेष रूप से जब वे स्थूलकाय हों; अथवा ऐसे व्यक्ति, जो गठियावात से पीड़ित रहते हैं (फ्लोरि-एसिड) । वयोवृद्ध जनों के रोग; पुरस्थग्रन्थि एवं वृषणों की अतिवृद्धि अथवा कठोरता; मानसिक एवं शारीरिक दुर्बलता । बूढ़े व्यक्तियों में रक्ताघात की प्रवृत्ति; पुराने शराबियों के रोग; उन्नत आयु के व्यक्तियों का सिरदर्द, जो बच्चों जैसा व्यवहार करते हैं।

सपूयतुण्डिकाशोथ (quinsy ) से पीड़ित व्यक्ति, जिन्हें सहज ही सर्दी-जुकाम हो जाता है, अथवा हल्की-सी ठण्ड लग जाने पर उन्हें प्रत्येक बार तुण्डिकाशोथ (tonsillitis) हो जाता है और शोथ पूतिता में परिवर्तित हो जाता है। (हीपर, सोराइ) । तरल पदार्थों के अतिरिक्त किसी अन्य पदार्थ के निगरण में अक्षम (बैटी, साइली) ।

मूत्रत्याग करते समय प्रत्येक बार बवासीर के मस्से गुदा से बाहर की ओर फैल जाते हैं (म्यूरि-एसिड) ।

कच्छुविष से पीड़ित बच्चों में जीर्ण अथवा पुरानी खांसी तुण्डिकायें बढ़ी हुई अथवा उपजिह्वा (uvula ) अतिरक्तसंकुल हल्की-सी ठण्ड लग जाने के बाद रोगवद्धि (एलूमि) ।

ग्रन्थियों, विशेष रूप से ग्रीवा एवं वंक्षण ग्रन्थियों की सूजन और कठोरता, अथवा ग्रन्थियों में पीब पड़ने की प्रारम्भिक अवस्था ।

पैरों में दुर्गन्धित पसीना पैरों की उंगलियां और पैरों के तलुवों में दुखन हो जाती है; पसीना रोक दिये जाने के बाद कष्ठ रोग (ग्रेफा, सोराइ सैनीक्यू, साइली से तुलना कीजिये) ।

शीत के प्रति अतिसम्वेदनशीलता (कल्के, काली-कार्बो, सोराइ) ।

सम्बन्ध

  • सोराइ, सल्फ एवं टूबर से पहले व इनके बाद इस औषधि का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है।
  • बैराइटी कार्बोनिका के बाद सोराइनम का प्रयोग बहुधा सपूयतुण्डिकाशोथ की वंशगत प्रवृत्ति को नष्ट कर देगा ।
  • यह एलूमिना, कल्केरिय-आयोडेटम, डल्कामारा, फ्लोरिक एसिड, आयोडम एवं सालीशिया के समान है ।
  • कण्ठमाला रोगों में कल्केरिया के बाद इसकी प्रतिकूल क्रिया होती है ।

रोगवृद्धि – अपने रोग के बारे में सोचने पर (आक्जे-एसिड); पीड़ाग्रस्त पार्श्व के सहारे लेटने पर खाना खाने के बाद, रोगग्रस्त भाग को धोने पर।

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