एरम ट्रिफाइलम | Arum Triphyllum
नजला; तीखा, बहता हुआ; नासारन्ध्रों की त्वचा छिली हुई । पानी बहते रहने पर भी नांक बन्द प्रतीत होती है (एमो-कार्बो, साम्बूक, सिनेपि से तुलना कीजिए); छींकें, रात के समय बढ़ जाती है । तीखा, त्वचा छील देने वाला स्राव, जो नाक एवं नासापक्षकों की अन्दरूनी खाल तथा ऊपर वाले होंठ को छील देता है (आर्सेनि, सेपा) । जब तक नाक से खून नहीं निकल जाता तब तक उसे उंगली से कुरंदता रहता है; नाक के अन्दर दोनों ओर उँगली डालकर कुरेदता जाता है । होंठों को तब तक खुरचता रहता है जब तक उनसे खून नहीं बहने लगता; मुख के दोनों कोण दुखन से परिपूर्ण रहते हैं, वे फटे हुए रहते हैं और उनसे रक्तस्राव होता रहता है (सांघातिक प्रवृत्ति के साथ – कण्डुरंगो); नाखुनों को तब तक दान्तों से काटता जाता है जब तक उँगलियों से रक्तस्राव नहीं हो जाता ।.
जिन स्थानों की त्वचा फटी हुई रहती है और फलस्वरूप रक्तस्राव होता रहता है एवं उनमें अत्यधिक पीड़ा विद्यमान रहने पर भी रोगी उन्हें कुरेदते रहते हैं और खुरचते जाते हैं; दर्द के साथ कराहते हैं फिर भी कुरेदना नहीं छोड़ते (ऐसा रोहिणी, रक्तज्वर एवं आंत्रिकज्वर में पाया जाता है) ।
मुख एवं कण्ठ की दुखन के कारण बच्चे खाने-पीने से मना कर देते हैं (मर्क्यू); उन्हें नींद नहीं आती । लार अत्यधिक, तीखी, श्लेष्म कला को छील देती है; जिह्वा एवं मुखगह्वर की खाल कटी हुई और रक्तस्रावी ।
स्वरलोप अथवा वाचाघात – पूर्ण, उत्तरी-पश्चिमी हवाओं के अनावरण के बाद (ऐकोना, हीपर); गाना गाने से (आर्जे – नाइ, कास्टि, फास्फो, सेलीनि) । वक्ताओं को होने वाली कण्ठ-वेदनायें; ध्वनि कर्कश, अनिश्चित, निरन्तर परिवर्तनशील; बातचीत करने, बोलने तथा गाने से वृद्धि; वक्ताओं, गायकों, अभिनेताओं को आक्रान्त करने वाले कण्ठ रोग ।
त्वचा से बड़ी-बड़ी पपड़ियाँ उतरती हैं, रक्तज्वर में दूसरी-तीसरी बार । आंत्रिक-रक्तज्वर के साथ विरक्ति, मूत्र की अत्यल्प मात्रा अथवा दबी हुई अवस्था; मूत्राम्लमेह की आशंका । रक्तज्वर एवं रोहिणी की दुर्दम अथवा सांघातिक अवस्थाओं में मुख और नाक की दुखन इस औषधि के प्रयोग का निर्देश देती है ।
सम्बन्ध –
- शुष्क, कर्कश, क्रुप-खांसी में हीपर और नाइट्रिक एसिड के बाद लाभदायक;
- कण्ठ की प्रातःकालीन कर्कशता एवं वधिरता (deafness) तथा रक्तज्वर में कास्टिकम ओर हीपर के बाद लाभदायक ।
- इसे न निम्न शक्तियों में देना चाहिए न बार-बार दोहराना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर इसका हानिकारक प्रभाव पाया गया है। उच्च शक्तियाँ सर्वाधिक लाभदायक एवं प्रभावी होती हैं ।