आर्सेनिकम एल्बम | Arsenicum Album

आर्सेनिकम एल्बम | Arsenicum Album

भारीअवसन्नता (great prostration ), साथ ही प्राणभूत शक्तियों (vital forces) का का द्रुत क्षय, मूर्च्छा । रोगी की स्ववृत्ति रहती है :-

  • हतोत्साही, विषादपूर्ण, निराश, विरक्त
  • अधीर, भयातुर, व्यग्र, मानसिक व्यथा से परिपूर्ण ।
  • क्षोभक, असहिष्णु, हठीला, सहज कोधी; रोग जितना ही अधिक बढ़ा हुआ होगा उतनी ही अधिक मनोव्यथा एवं मृत्यु-भीति भी बढी रहेगी ।

मानसिक व्यग्रता, किन्तु शरीर में इतनी अधिक दुर्वलता रहती है कि यह हिल-डुल भी नहीं सकता; किसी स्थान पर भी विश्राम नहीं कर सकता; निरन्तर स्थान बदलता रहता है; एक बिस्तरे से उठकर दूसरे बिस्तरे पर चला जाना चाहता है और कभी यहां लेट जाता है तो कभी वहाँ ।

मृत्यु की अधीरता और भय; सोचता है कि औषधि सेवन व्यर्थ है, कि उसका रोग असाध्य है, कि निश्चय ही उसकी मृत्यु हो जायेगी; अकेले रहने पर या रात को सोते समय मृत्यु के भय से घिरा रहता है। रात को इतनी अधिक अधीरता घेर लेती है कि वह शय्या-त्याग के लिये बाध्य हो जाता है, आधी रात के बाद रोग बढ़ जाता है।

ज्वलनकारी दर्द; रोगग्रस्त भागों में ऐसी जलन होती है जैसे उन पर गर्म कोयले लगा दिये गये हों (एन्थ्रा) ताप प्रयोग द्वारा गर्म पेय पदार्थों के सेवन से, तथा गर्म विलोपनों से रोगवृद्धि होती है ।

पानी पीने की कोई विशेष इच्छा न होते हुए भी ज्वलनकारी प्यास; अमाशय उसे सहन करता प्रतीत नहीं होता, क्योंकि वह ठण्डा पानी नहीं पचा सकता; पानी आमाशय के अन्दर एक पत्थर के समान पड़ा रहता है। रोगी पानी तो चाहता है, किन्तु वह उसे या तो पी नहीं सकता या पीने का साहस नहीं कर सकता।

खाद्य पदार्थों को देखना या उनकी गन्ध को सहन नहीं कर सकता (काल्चि, सीपि) ।

ठण्डा पानी पीने की उत्कट इच्छा; बार-बार पानी पीता है, किन्तु एक बार में बहुत थोड़ा; खाता कभी-कभी है किन्तु अधिक मात्रा में ।

ठण्डे फलों का सेवन करने के बाद, आइसक्रीम खाने से, बर्फयुक्त पानी पीने से, खट्टी बियर पीने से, दूषित मांस खाने सुरासार निर्मित पेयपदार्थों को पीने से तथा ठोस पनीर खाने से पैदा होने वाले पाचन दोष ।

दांत निकालते बच्चे पीले, दुर्बल, चिड़चिड़े रहते हैं, और चाहते हैं कि उन्हें गोदी में लेकर तेजी से घुमाया जाता रहे।

अतिसार – खाने-पीने के बाद; मल बहुत थोड़ा, काले रंग का, दुर्गन्धित, और चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उसके बाद भारी अवसन्नता अर्थात् महावसाद की अवस्था घेर लेती है।

अर्श अर्थात् बबासीर – जिनमें चलते-फिरते समय अथवा बैठे रहने पर सुई जैसी चुभन के साथ पीड़ा होती है, लेकिन मलत्याग करते समय नहीं होती बैठना या सोना कठिन होता है ज्वलनकारी दर्द, जो गर्मी से बढ़ता है; मलद्वार पर विद्यमान दरारों के कारण मूत्रत्याग कठिनाई के साथ हो पाता है ।

श्वास – दमाग्रस्त रोगी जैसा; बैठना पड़ता है या आगे की ओर झुकना पड़ता है; रात को विशेष रूप से बारह बजे के बाद बिस्तरा छोड़ देता है; दम घुटने के भय से लेट नहीं पाता। नित्यप्रति प्रकट होने वाली छपाकी अथवा पित्ती के बदले क्रुप-खांसी के दौरे ।

द्रुत कृशता के साथ ठण्डा पसीना एवं अत्यधिक दुर्वलता (टुबर, वेराट्र); रोगग्रस्त भागों की शोष अर्थात् सुखण्डी (marasmus)

सर्वागशोफ (anasarca) – त्वचा पीली, मोम जैसी चिकनी मिट्टी के रंग जैसी (असेटि-एसिड) । हल्का सा परिश्रम करने पर भी भारी थकान हो जाती है । लेटे रहने पर रोगी को थकान महसूस नहीं होती; जब वह गति करता है तो स्वयं को अत्यधिक दुर्बल पाकर आश्चर्यचकित रह जाता है । लक्षणों में बहुधा दोपहर के बाद 1 – 2 बजे और रात को 12 से 2 बजे तक बृद्धि होती है।

त्वचा – रूखी और पपड़ीदार; ठण्डी, नीली और झुर्रीदार; साथ ही ठण्डा, चिपचिपा पसीना; सूखे चमड़े जैसी; श्वेत और गोंद जैसी चिपचिपी: काले फफोले और ज्वलनकारी पीड़ा। सड़े हुए खाद्य अथवा मांस-पदार्थों के दुष्परिणाम, चाहे उनका प्रयोग अन्तःक्षेपण द्वारा किया गया हो, उन्हें सूंघा गया हो या खाया गया हो ।

रोगोपसर्ग प्रतिवर्ष लोट आते हैं (कार्बो-वेजि, लैके, सल्फ, थूजा) ।

सम्बन्ध

  • एलिम-सेटा, कार्बो-वेजि, फास्फो, पाइरो पूरक औषधियाँ हैं।
  • तम्बाकू चबाने, सुरसार निर्मित पेय पदार्थो को पीने, समुद्र में स्नान करने, दूषित मांस खाने के फलस्वरूप प्रकट होने वाली विषाक्त अवस्थाओं, शवों की चीर-फाड़ करने तथा एन्थ्राक्स के कारण उत्पन्न होने वाली विषाक्त अवस्थाओं, सरीसृपों द्वारा दशग्रस्त होने के फलस्वरूप प्रकट होने वाले रोगों तुरन्त आर्सेनिकम का ध्यान किया जाना चाहिये ।

रोगवृद्धि – आधी रात के बाद (रात को या दिन में 1 बजे से दो 2 बजे तक), ठण्ड से; ठण्डे पेय अथवा खाद्य पदार्थों के सेवन से; रोगग्रस्त पार्श्व के बल लेटने या सिर नीचा रखने से ।

रोगह्रास – सामान्य ताप द्वारा (सीकेल के विपरीत), मात्र सिरदर्द को छोड़कर जिसमें ठण्डे पानी से स्नान करने पर कुछ समय के लिए आराम मिल जाता है; ज्वलनकारी पीड़ा में ताप प्रयोग से आराम मिलता है ।

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