आर्निका मौण्टेना | Arnica Montana
स्नायविक स्त्रियाँ, रक्तबहुल व्यक्ति, मनोहर मुखाकृति एवं अत्यन्त लाल ।
यांत्रिक क्षतिग्रस्तताओं (mechanical injuries) के दुष्परिणामों के लिए, चाहे वे वर्षों पुरानी क्यों न हों। उन व्यक्तियों के लिए विशेष उपयोगी, जो हल्की सी यांत्रिक क्षतिग्रस्तताओं द्वारा भी चिरकाल तक प्रभावित रहते हैं । सारे शरीर में दुखन, खंजता और कुचलन जैसी अनुभूति, मानो किसी ने पिटाई की हो; पेशियों के चोटमूलक रोग ।
यांत्रिक क्षतिग्रस्ततायें, विशेष रूप से जब प्रमस्तिष्क संघटन (concursion) के कारण रोगी तन्द्राग्रस्त रहे; अनजाने ही मलमूत्रोत्सर्ग होता रहे। किसी कुन्द हथियार के प्रहार से लगने वाली चोट के बाद (सिम्फा) । मिश्र अस्थिभ्रंश और उनमें होने वाला विपुल पूयस्त्राव (कैलेण्डला) ।
प्रमस्तिष्क-संघट्टन एवं रगड़न, आघात (shock) अथवा शारीरिक क्षतिग्रस्तता के परिणाम; कोमल भागों की अविदीर्णता; पूतिता एवं विषाक्त अवस्थाओं को रोकती है तथा अवशोषण को बढ़ावा देती है ।
अधीर, दर्द सहन नहीं कर सकता; सम्पूर्ण शरीर अतिसम्वेदनशील (कमोमिला, काफिया, इग्नेशिया) ।
जिस किसी वस्तु पर लेटता है, वही अत्यधिक कठोर प्रतीत होती है; निरन्तर यही शिकायत करता रहता है और किसी कोमल स्थान की खोज करता हुआ स्थान बदलता रहता है (जिन भागों का सहारा लेकर विश्राम करता है उनमें दुखन और कुचलन महसूस होती है – बैप्टी, पाइरो; पीड़ामुक्त होने के लिए निरन्तर गतिशील रहना पड़ता है – रस-टा) ।
शरीर का ऊपर वाला भाग गर्म ; निचला भाग ठण्डा । चेहरा अथवा सिर और अकेला चेहरा गर्म शरीर ठण्डा ।
बेहोशी; बात करने पर ठीक-ठीक उत्तर देता है, किन्तु तत्काल ही बेहोशी और प्रलाप की अवस्था लौट आती है (वाक्य बोलते-बोलते बीच में ही सो जाता है – बैप्टी)। कहता है कि वह बिल्कुल ठीक हैं।
मस्तिष्कावरणशोथ – यांत्रिक अथवा चोटमूलक क्षतिग्रस्तताओं के बाद; गिर जाने, प्रमस्तिष्क संघट्टन आदि से। जब रक्तस्राव की आशंका रहती है तब उसके अवशोषणार्थ इसका प्रयोग किया जाता है।
जलशीर्ष (hydrocephals) – बच्चों की अगली भुजाओं में मृतक तुस्य शीतलता (अतिसार की अवस्था में ब्रोमि) ।
अपसन्यास अर्थात् रक्ताघात (apoplexy ) – चेतनालोप, अनैच्छिक मल-मूत्रोत्सर्जन; रोग की उग्रावस्था में रक्तस्राव को नियन्त्रित करती है। और अवशोषण क्रिया में सहायता देती है; इस औषधि का प्रयोग करते हुए
जब तक लक्षण-समष्टि के अनुसार किसी अन्य औषधि का निर्देश नहीं होता तब तक इसे कई दिनों अथवा सप्ताहों तक दोहराते रहना चाहिए और अपनी क्रिया करते रहने का अवसर प्रदान करना चाहिए ।
क्षतिग्रस्तताओं अथवा खाँसी होने के फलस्वरूप नेत्रों की श्लेष्मकला से रक्तस्राव के साथ रक्तमोषण ( लोड, नक्स) 1
गठिया (gout) एवं आमवात (rheumatism ) के साथ भारी स्पर्श-भीति (geat fear of being touched) अथवा पास आते हुए व्यक्तियों से भय ।
वस्ति प्रदेश में कुचलन जैसी अनुभूति के साथ तन कर नहीं चल सकती । एक के बाद दूसरी छोटी-छोटी कष्टदायक फुन्सियां निकलने की प्रवृत्ति, जिनमें भारी दुखन होती है (झुण्डों के रूप में निकलने वाली छोटी-छोटी फुन्सियाँ – सल्फ) ।
पक्षाघात (वाम पार्श्वी); नाड़ी पूर्ण, सशक्त, घरघराहट, सिसकियाँ, बड़बड़ाहट ।
डकारें दुर्गन्धित, पूतिगन्धी, सड़े अण्डे जैसी ।
रक्तातिसार के साथ मूत्र रोष, मूत्रत्याग की निष्फल इच्छा; मलत्याग की मध्यवर्ती अवधि लम्बी ।
मलबद्धता मलाशय भरा हुआ विष्ठा (faeces) नहीं निकलेगा; पुरस्थ: स्ग्न्थि बढ़ जाने या गर्भाशय का पीछे की ओर स्थानच्युति हो जाने से फीते जैसा मल निकलता है ।
प्रसव के बाद जननांगों की दुखन; प्रसवोत्तर रक्तस्राव एवं सूतिकोपद्रवों (puerperal complications) को रोकती है । प्रसव के बाद होने वाला मूत्ररोष अथवा अनैच्छिक मूत्रत्याग (ओपियम) ।
सम्बन्ध –
- ऐकोना, हाइपैरि, रस-टा से पूरक है ।
- कुचलन जैसी अनुभूति के साथ होने वाली दुखन के लिए बंप्टीशिया, चायना फाइटो, पाइसे, रस-टा, रूटा, सटैफि के सदृश I
- ऐकोना, एपिस, हेमा इपिका वेराट्र के बाद अनिका की उत्तम क्रिया होती है; अनिका के बाद सल्फ्यू एसिड की प्रभावी क्रिया होती है ।
- स्पिरिट निर्मित शराबें पीने से अथवा कोयले से निकलने वाली भापों के फलस्वरूप प्रकट होने वाली रोगावस्थाओं में बहुधा आमिका का निर्देश होता है (एमो-कार्बो, बोवि) ।
- मेरुदण्डीय संघट्टन में हाइपेरिकम से तुलना कीजिये ।
रोगवृद्धि – विश्राम करने पर; लेटे रहने पर; शराब पीने से ।
रोगह्रास – स्पर्श द्वारा; गति करने से (रस-टा, रूटा) ।