वेराट्रम विराइड | Veratrum Viride
रक्तप्रधान हृष्ट-पुष्ट व्यक्तियों के लिये। रक्तसंलयन विशेष रूप में मस्तिष्क-मूल, वक्ष, मेरुदण्ड एवं आमाशय सम्बन्धी । प्रदाह के साथ प्रचण्ड पीड़ा ।
तरुण आमवात, उच्च ज्वर, पूर्ण, कठोर, इत नाड़ी, सन्धियों तथा पेशियों में उग्र पीड़ा (ब्रायो, सेलीस-एसिड) अल्प, लाल मूत्र ।
बच्चा कांपता है, झटके खाता है, आक्षेप की आशंका बनी रहती है; सिर में निरंतर झटके लगते हैं अथवा सिर झुका रहता है।
स्नायविक अथवा मितलीयुक्त सिरदर्द ऋतुस्राव दब जाने से रक्तसंलयन; उग्र, लगभग अपसन्यास जैसी ; प्रचण्ड मितली और कै ।
रक्तसंलवी अपसन्यास, गर्म सिर, रक्तिम आँखें, भारी स्वर, मन्द एवं पूर्ण नाड़ी, लोहे जैसी कठोर ।
आक्षेप – मन्द दृष्टि आधारिक मस्तिष्कावरणशोथ; सिर सिकुड़ा हुआ; बच्चा ऐंठन के कगार पर ।
मस्तिष्क-मेरु सम्बन्धी रोग; साथ ही ऐंठन, विस्फारित नेत्रपटल, धनुर्वाती आक्षेप धनुर्वात के कारण शरीर पीछे की ओर मुड़ा हुआ, ठण्डा, चिपचिपा पसीना ।
लू, सिर पूर्ण, धमनियों में दपदपाहट, ध्वनि की असहिष्णुता; द्विगुण अथवा आंशिक दृष्टि (जेल्सी, ग्लोना) ।
जिह्वा – श्वेत या पीली होने के साथ ऊपर से नीचे तक मध्य भाग में लाल रेखा; शुष्क, आर्द्र, श्वेत अथवा दोनों ओर परत नहीं रहती; झुलसी हुई प्रतीत होती है (सैंग्वी) ।
नाडी – इसकी गति अचानक बढ़ जाती है तथा धीरे-धीरे सामान्य अवस्था से नीचे गिर जाती है; मन्द, कोमल, दुर्बल अनियमित, सविराम (डिजि, टैबैक) ।
मात्र नाड़ी की गति घटाने अथवा हृदय की क्रिया को नियंत्रित करने के के लिए बेराट्रम विराइड का प्रयोग नहीं करना चाहिए, वरन् अन्य किसी औषधि की भांति लक्षण समष्टि के आधार पर ही इसका व्यवहार किया जाना चाहिए।