थेरीडियन क्यूरेसेविकम | थ्लास्पी बुर्सा पैस्टोरिस

थेरीडियन क्यूरेसेविकम | Theridion Curassavicum

समय तेजी से बीतता प्रतीत होता है (अत्यधिक मन्दगति से – अर्जे- नाइ, कैना-इण्डि, नक्स-मौस्के) ।

भ्रमि नेत्र बन्द करने पर (लैके, थूजा; नेत्र खोलने पर – टैबैक; ऊपर की ओर देखने से – पल्स, साइली) किसी प्रकार के, यहाँ तक कि हल्के से शोरगुल से भी कान या कान के अन्दर (मेनियर रोग) ।

मितली – हल्की-सी गति करने से, और विशेष रूप से नेत्र बन्द करने पर किसी द्रुगामी वाहन की सवारी करने से।

सिरदर्द – जब गति आरम्भ करता है तो ऐसा लगता है जैसे आंखों के पिछले भाग में मन्द मन्द तथा भारी दबाव पड़ रहा हो; प्रबल, गहरा, मस्तिष्क के अन्दर लेटने से वृद्धि (लैके); फर्श पर किसी अन्य व्यक्ति के चलने से, सिर को हल्के से हिलाने-डुलाने से अत्यधिक ।

प्रत्येक शब्द शरीर के अन्दर प्रविष्ट होता प्रतीत होता है, फलस्वरूप मितली होती है और चक्कर आता है ।

नाक की पुरानी सर्दी स्त्राव गाढ़ा, पीला, हरा, दुर्गन्धित (पल्सा, थूजा) ।

दन्तशूलप्रत्येक तीखा शब्द दान्तों के अन्दर प्रविष्ट हो जाता है ।

स्नाविक स्त्रियों को होने वाली समुद्री रुग्णता; चलते जहाज को देखने से छुटकारा पाने के लिए वे आँखें बन्द कर लेती हैं और अत्यधिक अस्वस्थ हो जाती हैं ।

बायें वक्ष के ऊपरी भाग में स्कन्धास्थि के नीचे प्रचण्ड सूचीवेधी पीड़ा, जो ग्रीवा तक फैल जाती है (एनिस, माइरि, पिक्स, सल्फ) ।

सारी हड़ियों में पीड़ा, जैसे टूट गई हों।

कशेरुकाओं के मध्य भारी सम्वेदनशीलता, मेरुदण्ड पर पड़ने वाले दबाव को रोकने के लिए कुर्सी में एक ओर को झुक कर बैठता है (चिनिन-स); हल्के से शोरगुल तथा फर्श पर पड़ने वाले पैर के झटके से वृद्धि ।

अत्यधिक स्नायविक स्पर्शकातरता लिये; युवावस्था, सगर्भकाल एवं रजोनिवृत्तिकाल की।

“बालास्थि विकार, अस्थिक्षय, अग्धिगलन में यह औषधि रोग की जड़ तक पहुँच कर उसका कारण नष्ट करती हैं ।” – डा० बारुच

यक्ष्मा रोग, यदि रोग की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषधि को दिया जाये तो यह रोगमुक्तिकारक सिद्ध होती है।

गण्डमाला रोग में जब सुनिर्वाचित ओषधियाँ असफल पाई जाती हैं तब इससे आराम आता है ।

सम्बन्ध – कल्के एवं लाइको के बाद उत्तम क्रिया करती है।

थ्लास्पी बुर्सा पैस्टोरिस | Thlaspi Bursa Pastoris

शरीर के प्रत्येक छिद्र से प्रचुर निष्क्रिय रक्तस्राव; रक्त काला और थक्केदार ।

कालार्तव – साथ ही प्रचण्ड मरोड़ें और जरायु-शूल हरित्पाण्डु रोग में; गर्भपात, प्रसव, गर्भस्राव के बाद; रजोनिवृत्तिकालीन; साथ ही जरायु का कैंसर (फास्फो, अस्टि) ।

ऋतुस्राव – नियत समय से बहुत पहले, प्रचुर परिणाम में, चिरस्थायी (आठ, दस, यहां तक कि पन्द्रह दिनों तक भी); आरम्भ में स्राव धीमा, पहले दिन नाममात्र के लिए; दूसरे दिन उदरशूल, वमन, रक्तस्त्राव के साथ बड़े-बड़े थक्के; हर तीसरा स्राव विपुल परिमाण में ।

रक्तस्त्राव अथवा जरायु की निष्क्रयता के कारण ऋतुस्राव में देरी; थका देने वाला ऋतुस्राव की पहली अवधि से मुक्त भी नहीं हो पाती कि दूसरी ऋतु प्रकट हो जाती है।

प्रदरस्त्राव – रक्तिम, काला, दुर्गंधित; ऋतुस्राव से कुछ दिन पहले और कुछ दिन बाद ।

सम्बन्ध – सिनैपिस, ट्रिलियम, वाइबरनम एवं अटिलागो से तुलना कीजिये ।

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