स्टेफिसैग्रिया | Staphisagria

स्टेफिसैग्रिया | Staphisagria

हस्तमैथुन तथा अत्यधिक सम्भोग के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले मानसिक विकारों के लिए। हल्के से हल्के मनोवेगों के प्रति भारी असहिष्णु हल्की-सी क्रिया अथवा अहानिकारक शब्द चुभ जाता है (इग्ने) । दूसरे व्यक्तियों अथवा स्वयं किये गए कार्यों के प्रति भारी अश्रद्धा; परिणामों के बारे में चिन्तित रहता है।

विरक्त, उदासीन, हतोत्साह, सम्भोग की अधिकता के फलस्वरूप मानसिक दुर्बलता (एनाका, औरम, नेट, फास्फो-एसिड) । अभिमान डाह अथवा नाराजगी से उत्पन्न रोग ।

तुनुकमिजाज बच्चे चीजें पाने के लिए रोते हैं, और जब उन्हें वे वस्तुयें दी जाती हैं तो वे उन्हें क्रूरतापूर्वक धकेल देते हैं अथवा दूर फेंक देते हैं (क्रियोजी) । उसे अपमानित होना पड़ा; लड़ाई करने में स्वयं को असमर्थ पाकर वह मनमसोस कर रह गया और रुग्ण होकर, कांपता हुआ थका-थका घर लौटा (नक्स के विपरीत) |

ऐसा अनुभव होता है जैसे सिर के अन्दर दृढ़तापूर्वक कोई गोल गेंद चिपकी हुई है, जो सिर झटकाने पर भी कम नहीं होती ।

तेज धार वाले हथियारों से होने वाली यांत्रिक क्षतिग्रस्ततायें शल्यकर्मोत्तर धाव; दंशज, चमचमाते हुए दर्द, जैसे चाकू से काटा जा रहा हो ।

हस्तमैथुन, सम्भोग की अधिकता, जैवी द्रव्यों के नष्ट होने नाराजगी, सड़न, अत्यधिक अपमानित होने, घृणापूर्ण उपेक्षा किये जाने के साथ परेशानी अथवा मानसिक क्लेश के दुष्परिणाम (औरम) । स्नायु-दौर्बल्य; जैसे उसने अत्यधिक कठोर कार्य किया हो।

पलकों अथवा ऊपरी पलकों पर गुहेरियाँ, गिल्टियाँ, एक के बाद दूसरी, सूखने पर कठोर गिल्टियां रह जाती हैं (कोनि, थूजा) ।

दंतशूलऋतुस्राव के दौरान; स्वस्थ अथवा सड़े हुए दान्तों में; खाने या पीने की चीज का स्पर्श दर्दनाक, किन्तु दान्त से कोई चीज काटने या चबाने से दर्द नहीं होता; मुख के अन्दर ठण्डी हवा खींचने से ठण्डा पेय पीने से तथा खाने के बाद दर्द बढ़ता है ।

दान्त काले हो जाते हैं, उन पर काले-काले दाग पड़ जाते हैं; उन्हें स्वच्छ नहीं रखा जा सकता । वे टूट जाते हैं; किनारे नष्ट हो जाते हैं (जड़ें नष्ट हो जाती हैं – मेजी, थूजा); शीतादजन्य रुग्णता ।

तम्बाकू की भारी चाह ।

जब पेट पूर्णतया भरा हुआ हो तब भी भारी भूल लगती है। लगता है जैसे आमाशय और उदर ढीले होकर नीचे की ओर लटक रहे हों (एगारिकस, इपिका, टेबाक ) । उदरशूल – मूत्राशय अथवा डिम्बाशय की चीर-फाड़ के बाद; उदर की चीर-फाड़ के साथ (बिस्म, हीपर)।

मूत्रावेग, कई घण्टों तक पेशाबखाने में बैठे रहना पड़ता है; विवाहित युवतियों में; सम्भोग के बाद; कठिन प्रसव के बाद (ओपि ); पेशाब न करने पर मूत्राशय के अन्दर जलन पुरःस्थग्रन्थि रोगों से पीड़ित वृद्ध व्यक्तियों में मूत्रवेग और मूत्रत्याग के बाद पीड़ा, मूत्राशय की स्थानच्युति ।

हस्तमैथुन – निरन्तर विषय-भोग की ही चर्चा करता रहता है; लगातार इन्द्रिय-सुख के बारे में ही सोचता रहता है । शुक्रमेह साथ ही चेहरे की धँसी हुई आकृति अपराधी की भांति सलज दृष्टि; वीर्यपात के बाद पृष्ठवेदना, दुर्बलता; कामांगों की अवसन्नता और ढीली-ढाली अवस्था अथवा शीर्णता । कामांगों की दर्दनाक असहिष्णुता, भय इतना असहिष्णु रहता है कि अँगोछा आदि वस्त्र भी नहीं पहना जा सकता (प्लैटीनम) ।

खाँसी – मात्र दिन के समय अथवा केवल रात का खाना खाने के बाद, मांस खाने के बाद वृद्धि; परेशानी अथवा अपमानित होने के बाद दान्त साफ करने से उत्तेजित होने वाली । शीतकालीन क्रुप खाँसी जो ग्रीष्म ऋतु में गृध्रसी में परिवर्तित हो जाती है; धूम्रपान करने से होने वाली खांसी (स्पांजि) ।

पृष्ठवेदना जो रात को विस्तरे के अन्दर रहने अथवा प्रातःकाल जागने से पहले बढ़ती है ।

सन्धियों, विशेष रूप से उँगलियों के जोड़ों पर वातजनित गिल्टियां (कौलो, कल्चि, लाइको); उँगलियों की नोंकों के प्रदाह के साथ पसीना और पीव । दिन भर नींद आती है, रात को जागा रहता है; सारे शरीर में कसक के साथ पीड़ा होती है।

ज्वर में – ज्वरावेग प्रकट होने के कई दिन पहले से राक्षसी भूख सताती है ।

छाजन – पपड़ियों के नीचे से पीली, तीखी पीब रिसती रहती है; रिसाव जिस किसी स्थान पर लगता है उसी पर नई फुन्सियां पैदा हो जाती हैं; एक स्थान पर खुजलाने से खुजली बन्द हो जाती है, किन्तु दूसरे स्थान पर प्रकट हो जाती है ।

अंजीरी मस्से – शुष्क, जुए की तरह दिखाई देने वाले, फूल गोभी जैसे; पारद के अपव्यवहार के बाद (नाइट्टि-एसिड, सेबाडि, थूजा) ।

सम्बन्ध –

  • कास्टि, कोलो, इग्ने, लाइको, पल्सा से तुलना कीजिए ।
  • कोलो एवं स्टैफि एक दूसरे के बाद उत्तम क्रिया करती हैं ।
  • कास्टि, कोलो एवं स्टैफि की इसी क्रम में प्रभावी क्रिया होती है।
  • रेनन-बल्बो इसकी प्रतिकूल औषधि है – इसे न तो पहले दिया जाना चाहिए न बाद में ।

रोगवृद्धिमनोविकार; क्रोध, अपमान, शोक, सड़न से द्रव्य नाश होने से; तम्बाकू से; हस्तमैथुन से; अधिक सम्भोग से; रोगग्रस्त भागों का हल्का-सा स्पर्श करने से ।

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