स्टेनम | Stannum

स्टेनम | Stannum

मन एवं शरीर की भारी थकान । आमाशय के अन्दर, डूबने, खालीपन, खोखलेपन की अनुभूति (चेलिड़ों, फास्फो, सीपिया) ।

उदास, हताश, हर समय रोने जैसी अनुभूति करती है, किन्तु रोने से उसके उपसगों में वृद्धि होती है (नेट्र-म्यूरि, पल्सा, सीपिया); मूच्छित और दुर्बल, विशेष रूप से जब सीढ़ियों से नीचे उतरती है; ऊपर की ओर अधिक सुविधा के साथ चढ़ती है (बोरेक्स, कल्के के विपरीत) ।

सिरदर्द अथवा तंत्रिकाशूल; दर्द धीरे-धीरे आरम्भ होता है, धीरे-धीरे बढ़ता है और अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर धीरे-धीरे कम होता है (प्लैटी) ।

उदरशूल – कठोर दबाव देने, अथवा घुटनों या कन्धों के आर-पार उदर रखने से आराम (कोलो); गोल कृमि; पेट से कीड़े निकलते हैं ।

ऋतुस्राव – नियत समय से बहुत पहले, विपुल परिमाण में ऋतुस्राव से पहले उदासी; ऋतुस्राव के दौरान कपोलास्थियों (malar bones) में पीड़ा ।

प्रदरस्त्राव – भारी दुर्बलता; दुर्बलता वक्ष से आरम्भ होकर आगे फैलती प्रतीत होती है (उदर, वास्तिप्रदेश से फास्फो, सीपिया) ।

गुदभ्रंश, मल त्याग के दौरान अधिक (अतिसार के साथ – पौडो); इतनी अधिक दुर्बल रहती है कि नीचे बैठने की अपेक्षा कुर्सी पर बैठ जाती है।

प्रातः काल वस्त्र पहनते समय विश्राम करने के लिए कई बार बैठना पड़ता है ।

मितली और वमन – प्रातः काल पकते हुए भोजन की गन्ध से (आर्से, काल्चि) ।

जब गाता है या आवाज का प्रयोग करता है तो स्कन्धपेशियों और भुजाओं में कसकपूर्ण पीड़ा और दुर्बलता महसूस होती है। वक्ष में भारी दुर्बलता; बोलने, हँसने, जोर-जोर से पढ़ने, गाना गाने से वृद्धि; इतनी दुर्बलता रहती है कि बोल भी नहीं पाता

खाँसी – गहरी, खोखली, कम्पायमान, कण्ठ घोट देने वाली; रगड़ने वाली, खांसी के लगातार तीन दौरे (दो दौरे – मर्क्यू) शुष्क, बिस्तरे में, शाम को; वक्ष के अन्दर खालीपन की अनुभूति

बलगम – प्रचुर अण्डे की सफेद जर्दी जैसा, मीठा-मीठा, नमकीन, (काली- आयो, सीपिया); खट्टा, पीव जैसा, दुर्गन्धितः पीली, हरी पीव (भारी, हरी, नमकीन काली आयो); दिन के समय ।

कंण्ठ की कर्कशता – गहरी, रुखी, खोखली ध्वनि बाँसने और बलगम निकलने पर कुछ समय के लिए आराम ।

पसीना – दुर्गन्धित, प्रातःकाल हर रोज 4 बजे के बाद; ग्रीवा और माथे पर भारी दुर्बलता लाने वाला।

सम्बन्ध

  • पल्साटिल्ला से पूरक ।
  • कास्टि के बाद स्टैन की उत्तम क्रिया होती है तथा इसके बाद कल्के, फास्फो, साइली, सल्फ एवं टुबर की प्रभावी क्रिया होती है।

रोगवृद्धि – हँसने और गाने, बोलने तथा स्वरोच्चारण से; दाई करवट लेटने से गर्म पेय पीने से (ठण्डे पेय पीने से – स्पांजिया)।

रोगह्रास – खाँसने तथा बलगम निकलने से कण्ठ की कर्कशता घटती है; कठोर दबाव देने से (कोलो) ।

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