पेट की बिमारियों का होम्योपैथिक इलाज

पेट की बिमारियों का होम्योपैथिक इलाज

जो भी पदार्थ हम भोजन के रूप में लेते हैं वह जब मुंह में पहुंचता है तो रस स्रावी ग्रंथिया (secreting glands) से रस निकलता है और वहीं से पाचन क्रिया आरम्भ हो जाती है। दांतों से चबाये जाने के बाद और रस (लार) भोजन में मिलता है और फिर यह पाकाशय में जाता है । पाकस्थली में भोजन पदार्थ जाते ही मांस पेशियों के संकोचन से लहरें सी उठती हैं और खाया हुआ पदार्थ लेई की तरह हो जाता है। तनाव, क्रोध, या जल्दबाजी में खाना, बार-बार या ज़्यादा खाना या ग़लत खाना खाने से पाचन तंत्र बिगड़ जाता है और पाचनतन्त्र के रोग हो जाते हैं ।

भूख न लगना (Anorexia)

लक्षण: खाना हजम न होना, कभी दस्त, कभी कब्ज, मुंह में पानी आना आदि ।

1. मुख्य दवा; जब कोई खास कारण पता न चले।

  • लैसिथिन 3X, दिन में 3 बार

2. मसालेदार या गरिष्ठ भोजन अधिक मात्रा में खा लेने के बाद रोग ।

  • नक्स वोमिका 30दिन में 3 बार

3. ज़्यादा पौष्टिक, चिकनाई युक्त भोजन; केक पेस्ट्री, आदि खाने के बाद रोग ।

  • पल्साटिला 30, दिन में 3 बार

4. आइसक्रीम, बासी भोजन, या दूषित पानी पीने के बाद।

  • आर्सेनिक एल्ब 30, दिन में 3 बार

5. भूख न लगना, परन्तु खाना शुरू करने पर भूख का लौट आना ।

  • चाइना 30, दिन में 3 बार

6. थोड़ा सा खाने से ही पेट भर जाए, गर्म खाना-पीना अच्छा लगे । मीठा खाने की इच्छा, पेट में हवा भरी रहती है। इसलिए थोड़ा सा भी खाने से पेट भरा-भरा लगने लगता है ।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

7. मुंह से वायु निकलना; डकारें, हाथ पैर ठंडे, छाती में दर्द ।

  • कार्बो वेज 30, दिन में 3 बार, भोजन के आधे घंटे पहले

8. किसी बीमारी के बाद भूख न लगना ।

  • जैन्शियाना ल्यूटिया Q, की  10 बूंद पानी में मिलाकर दें

9. अल्फाल्फा टॉनिक खाना खाने से पहले दिन में 2-3 बार दें; खाना हल्का व सुपाच्य दें; घी या चिकनाई युक्त खाने से परहेज करें; दवा के अलावा हल्का व्यायाम व सुबह स्वच्छ वायु में टहलना लाभकारी है।

उल्टी व जी मिचलाना (Vomiting & Nausea )

1. जब जीभ साफ हो । लगातार मिचली व उल्टी हो ।

  • इपिकैक 30, दिन में 3 बार

2. प्यास जब थोड़े-थोड़े पानी के लिए बहुत जल्दी-जल्दी लगे । बेचैनी हो ।

  • आर्सेनिक 30, दिन में 3 बार

(पेट व आंतों की सूजन (gestroenteritis) में जब उल्टी व दस्त हों तो उपरोक्त दोनों दवाएं अदल बदल कर 1-2 घंटे के अंतर से दें )

3. जब उल्टी काफी मात्रा में हो ; ठंडा पानी पीने की इच्छा हो; रोगी ठंडा होने लगे ।

  • विरेट्रम एल्ब 30, दिन में 3 बार

4. अधिक या मसालेदार, गरिष्ठ भोजन करने से हुआ रोग ।

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 3 बार

5. गर्भावस्था में उल्टी आना ।

  • सिम्फोरिकारपस रेसि 30, दिन में 3 बार

6. यात्रा के दौरान (travel sickness) तकलीफ ।

  • कोकुलस इंडिका 30, दिन में 3 बार

6. अधिक अम्लता (acidity) के कारण रोग ।

  • नैट्रम फॉस 6 X, दिन 3 बार

7. गरिष्ट या चिकनाई युक्त भोजन खाने से रोग ।

  • पल्साटिला 30, दिन में 3 बार

पेट दर्द (Colic)

यह कई कारणों से हो सकता है : भारी चीज़ खाने, वायु, डकार का न आना, सर्दी लग जाना, पेट में कीड़े, कब्ज होने इत्यादि से । पेट दर्द का मूल कारण पाचन क्रिया की गड़बड़ है।

1. गर्म सेक से आराम आए ।

  • मैग्नेशिया फॉस 6X, दिन में 3 बार

2. जब रोगी दर्द के मारे दोहरा हो जाए, पेट को दबाने से आराम मिले ।

  • कोलोसिंथ 30, हर 2-3 घंटे बाद

3. जब अधिक चिकनाई युक्त पौष्टिक (मांसाहारी भोजन आदि) खाने के बाद पेट दर्द हो ।

  • पल्साटिला 30, दिन में 3 बार

4. पेट में अफारा, शाम के 4 बजे के बाद दर्द बढ़े।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

5. पेट फूलना, पित्त की उल्टी व मरोड़ के साथ दर्द ।

  • आइरिस वर्सि. 30 दिन में 3 बार

6. बदहजमी के कारण

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 3 बार

पीलिया (Jaundice)

जब यकृत या जिगर (Liver) में गड़बड़ी रहने के कारण पित्त (Bile) पूरी तरह जज़्ब नहीं हो पाता और खून में मिला रह जाता है तो यकृत को अपनी सामर्थ्य से अधिक जोर लगाना पड़ता है। यकृत बढ़ जाता है व कड़ा हो जाता है ।

लक्षण : त्वचा का रंग पीला पड़ जाना (यह खून में मिले पित्त के कारण होता है), आंख का सफेद हिस्सा, नाखून व पेशाब का पीला पड़ जाना । बुख़ार, दुर्बलता, सुस्ती आदि ।

1. इलाज शुरू करने के लिए सबसे पहले दें ।

  • सल्फर 30, की 3 खुराक हर 2-3 घंटे बाद

2. प्रथम अवस्था में जब उबकाई आए, उल्टी लगे; जीभ साफ हो (दूसरे लक्षण प्रकट न हुए हों) ।

  • इपिकैक 30, दिन में 3 बार

3. जब उल्टी, बेचैनी आदि लक्षण हों; प्यास जल्दी जल्दी लगे ।

  • आर्सेनिक एल्ब 30 दिन में 3 बार

4. जब उल्टी आदि बंद हो चुकी हो, पीलापन प्रकट हो जाए।

  • कारडुअस Q या 6 दिन में 3 बार

5. जब जिगर का दांया हिस्सा बढ़ा हो, आंखें पीली व पेशाब पीला ।

  • चैलिडोनियम 6, दिन में 3 बार

6. बहुत दिन तक बुख़ार रहने के बाद जिगर बढ़ जाये ।

  • चाइना 30 दिन में 3 बार

7. शराब पीने से हुई जिगर की बीमारी में ।

  • नक्स वोमिका Q या 6, दिन में 3 बार

8. जब पीलिया प्राणघातक (malignant) होने का डर हो, नकसीर आती हो ।

  • क्रोटेलस होर 30 दिन में 3 बार

9. पीलिया

  • कार्डुअस एम 30, चेलोडोनियम 30, बबेरिस व्लगे 30, पोडोफाइलम 6, बराबर मात्रा में मिला कर मिश्रण तैयार करे और उसकी 3 – 3 बूंद दिन में 3 बार सेवन करें ।
  • नैट्रम सल्फ 6X, 4 – 4 गोली दिन में 3 बार सेवन करें ।
  • नैट्रम फास 6X, 4 – 4 गोली दिन में 3 बार सेवन करें ।

10. यकृत वृधि

  • आर्सेनिक एल्बम 6, पोडोफायलम 6 दिन में 3 बार ।

11. होम्योपैथिक लिवर टॉनिक (लिव टी व जौंडिला ) फायदेमंद है, खाने में चिकनाई बिल्कुल न लें, सादा उबला खाना खायें जूस, पपीता, मीठे फल, गन्ने का रस, मूली आदि काफी मात्रा में लें नमक कम कर दें।

दस्त (Diarrhoea)

बार बार बहुत ज़्यादा या कम मात्रा में पतला पाखाना आने को दस्त कहते हैं ।

कारण : ज़्यादा मात्रा में खराब भोजन खाने से बहुत गर्मी से सर्दी लगने से, पसीना रूकने से, पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने से, दस्त होने लगते हैं ।

लक्षण : कभी बिना दर्द के या कभी पेट दर्द के साथ बार-बार पाखाना आना, कभी बिल्कुल पतला, कभी बिल्कुल पानी की तरह, कभी आंव के साथ ।

1. गरिष्ठ, मसालेदार या ज़्यादा भोजन खा लेने पश्चात् बार-बार पाखाना जाने की इच्छा हो, दूध सहन न होता हो ।

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 3 बार

2. अधिक चिकनाई युक्त भोजन, केक पेस्ट्री, आदि के बाद; प्यास कम, दस्तों का रंग अक्सर बदलता में रहे, दस्त रात में ज़्यादा हों ।

  • पल्साटिला 30, दिन 3 बार

3. दस्तों के साथ बहुत अधिक कमजोरी, बिना दर्द के पानी जैसा पतला दस्त, बहुत प्यास, सारे शरीर में पसीना ।

  • चाइना 30, दिन में 3 बार

4. गंदा पानी पीने की वजह से दस्त (Camp Diarrhoea) हल्के पीले रंग का, परिमाण में अधिक, बदबूदार दस्त, बड़े वेग के साथ आए ।

  • पोडोफाइलम 30, दिन में 3 बार

5. वायु निकलते सयम अनजाने में दस्त हो जाना, पाखाने की इच्छा होने पर वेग संभाला नहीं जाता, दस्त होने के बाद बहुत कमज़ोरी ।

  • एलो सोक 6 या 30 दिन में 3 बार

6. गहरे पीले रंग का, पेट दर्द के साथ, पतला आंव मिला दस्त, कभी-कभी पतला हल्के हरे रंग का दस्त, परिमाण में थोड़ा, खाने पीने के बाद दस्तों का बढ़ना।

  • कोलोसिंथ 30, दिन में 3 बार

7. चिड़चिड़े स्वभाव वाले बच्चों में दांत निकलने के समय दस्त होना । शौच से पहले पेट में ऐंठन, शौच के बाद आराम महसूस होना ।

  • कैमोमिला 30, दिन में 3 बार

8. चावल के धोवन की तरह दस्त लगातार, अनजाने में हो जाना, ठंडा पसीना, तेज प्यास, सारा शरीर ठंडा व नीला, पेट में ऐंठन ।

  • विरेट्रम एल्ब 30 दिन में 3 बार

9. रखा हुआ खाना, फल या खराब पानी पीने की वजह से दस्त । दस्त बहुत थोड़ी मात्रा में हों और दस्त होने के बाद बेहद कमज़ोरी व बेचैनी । थोड़ा-थोड़ा पानी पीने की इच्छा ।

  • आर्सेनिक 30, दिन में 3 बार

10. गोल मटोल (मोटे, थुलथुले) बच्चों में खट्टी बदबू वाले दस्त; सिर पर पसीना ।

  • कैल्केरिया कार्ब 30, दिन में 3 बार

11. पुराने दस्त, सुबह के समय ज़्यादा, रोगी को बिस्तर से उठते ही शौच के लिए भागना पड़े। चर्म रोग को दबा देने (suppression) की वजह से दस्त ।

  • सल्फर 30, दिन में 3 बार

12. अत्यधिक खट्टी बदबू वाले दस्त; बच्चे के शरीर से भी खट्टी गंध आए ।

  • रह्यूम 30, दिन में 3 बार

13. बच्चों को दूध पीने के बाद दस्त ।

  • मैग्नेशिया कार्ब 30 दिन में 3 बार

14. जब दस्त काफी वेग (gushing) से निकलें और जरा भी खाना पीना लेने से बढ़ें; पीले पतले दस्त, गर्म पानी पीने से आराम मालूम दे ।

  • क्रोटन टिग 30, दिन में 3 बार

15. बायोकैमिक औषधि

  • बायो नं0 8, दिन में 4 बार

पेचिश (Dysentery)

बड़ी आंत में घाव होकर मरोड़ के साथ खून एवम् आंव मिले व थोडे-थोड़े दस्त आने को पेचिश कहते हैं ।

कारण : अमीबा नामक जीवाणु या बैसीलस इसका कारण होते हैं ।

लक्षण : भूख न लगना, उल्टी या मिचली, पेट में तेज दर्द व बार बार दस्त, बुखार व दर्द के साथ पाखाना आए ।

1. रोग की प्रथम अवस्था में जब बुखार, बेचैनी, घबराहट व पेट में दर्द हो; ख़ास कर सर्दी लग कर रोग पैदा होने पर।

  • एकोनाइट 30, दिन में 3 बार

2. दस्त में खून की मात्रा बहुत ज़्यादा व मल की मात्रा कम हो । दस्त आने से पहले, साथ, और बाद में, (tenesmus), मुंह में लार भर जाना,

और फिर भी प्यास लगे । दस्त जाने के बाद भी मरोड़ बनी रहे ।

  • मर्क कौर 30, दिन में 4 बार

3. दस्त में खून की अपेक्षा आंव की मात्रा बहुत ज़्यादा हो ।

  • मर्क सौल 30, दिन में 3 बार

4. जब आंव के साथ उबकाई भी आए ।

  • इपिकैक 30, दिन में 3 बार

5. नमी वाली जगह पर रहने से या बरसात में रोग ।

  • रस टॉक्स 30, दिन में 4 बार

6. बायोकैमिक औषधि

  • बायो. नं0 9, दिनमें 4 बार

पतली और सुपाच्य चीजें भोजन में दें। चावल का पानी, सूप, जूस, मट्ठा, इत्यादि दें ।

कृमि (Worms)

कृमि या पेट में कीड़े तीन प्रकार के होते हैं।

i) छोटे सूत की तरह (small thread worms) : ये इकट्ठी मल द्वार के पास रहते हैं, कभी मूत्र नली या योनि में भी चले जाते हैं और वहां खुजली होने लगती है, जलन होती है ।

लक्षण : सांस में बदबू, पाखाने के समय तकलीफ, नाक में खुजली, नींद में दांत किटकिटाना, गुदा में बराबर खुजली रहने से नींद भी नहीं आती ।

ii) गोल कृमि (round worm) : ये केंचुवे की तरह सफेद होते हैं, छोटी आंत

में रहते हैं । कभी उल्टी के साथ, कभी पाखाने से निकलते हैं ।

लक्षण : पेट फूलना, पेट में दर्द, दांत किटकिटाना, नींद में चीखना, नाक खुजाना, चेहरा पीला, शरीर दुबला, भूख अधिक या खाने में अरूचि आदि।

iii) फीता कृमि (tape worms) : सफेद चपटे, यह कृमि छोटी आंत में रहता है।

1. कृमि रोग की मुख्य औषधि । यह हर तरह के कृमि के लिए इस्तेमाल होती है; बच्चों में चिड़चिड़ापन,  हमेशा खाते रहना चाहें ।

  • सिना 30, दिन में 3 बार

2. गोल कृमि की मुख्य दवा ।

  • सैन्टोनिन 1X या 3X साथ में मर्क डल 1X दिन में 4 बार

3. फीता कृमि की मुख्य दवा ।

  • क्यूप्रेम आक्सिडेटम् नाइग्रम 1X या 3X, दिन में 4 बार साथ में; नक्स वोमिका Q, ५-५ बूंद दिन में 3 बार

4. सूत कृमि की मुख्य दवा ।

  • सिना Q या 30, दिन में 4 बार

5. बायोकैमिक औषधि

  • नैट्रम फॉस 6x,  दिन में 4 बार

कृमि शरीर में पनपने ही न पाएं इसके लिए स्वास्थ्य के नियमों का पालन करके जीवनी शक्ति स्वस्थ रखना आवश्यक है। मांस, मछली व मीठा अधिक मात्रा में सेवन न करें।

कब्ज़ (Constipation)

मल साफ न आने को कब्ज कहते हैं ।

लक्षण : पाखाने की हाजत ही नहीं होती या रोगी कई बार थोड़ा-थोड़ा पाखाना करता हैं । पाखाना साफ नहीं होता ।

कारण : मानसिक उत्तेजना, नियमित रूप से परिश्रम न करना, ठीक-ठीक भोजन न करना, जिगर के रोग, आदि कारणों से कब्ज़ होता है ।

1. साधारण कब्ज़ में ।

  • नक्स वोमिका 30 रोज़ सोते समय सल्फर 30, रोज़ सुबह लें

2. जब मल बहुत कड़ा बकरी की मेंगनी की तरह का हो ।

  • एल्यूमिना LM3, दिन में 3 बार

3. मल बहुत कड़ा व बड़े बड़े लैंड के रूप में निकलता हो और आंव लिपटा हुआ हो।

  • ग्रेफाइट्स 30, दिन में 3 बार

4. बार-बार पाखाना जाने की इच्छा पर पाखाना होता नहीं; मल सूखा व कड़ा। बैठे रहने की अपेक्षा खड़े होने पर सहज ही में पाख़ाना होता है ।

  • कॉस्टिकम 30, दिन में 3 बार

5. जब कब्ज़ की वजह से पेट अंदर को धंसता सा महसूस हो ।

  • हाइड्रैस्टिस Q या 30, दिन में 3 बार

6. जब मलद्वार में डाट सी लगी हुई अनुभव हो ।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

7. जब आंतें काम न करती हों । मल खुश्क कड़ा और लंबे सुद्दे के रूप में हो। अंतड़ियों में स्राव की कमी व तेज प्यास ।

  • ब्रायोनिया 30, दिन में 3 बार

8. जब मल छोटी-छोटी गोलियों की तरह हो, शौच जाने की हाजत बिल्कुल न हो। कई कई दिन तक पाखाना न होने पर भी कष्ट नहीं होता ।

  • ओपियम 30, दिन में 3 बार

9. पुराने कब्ज की मुख्य दवा । हाजत होती है पर पाखाना बड़ी मुश्किल से होता है ।

  • प्लम्बम मैट 30, दिन में 3 बार

पानी बहुत मात्रा में पीयें, हल्का सादा भोजन करें, हरी सब्जियां, सलाद व फल प्रचुर मात्रा में खाएं तली हुई व महीन चीजों (मैदा से बने खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पेस्ट्री, बिस्किट आदि) का सेवन बिल्कुल न करें।

गैस्ट्रोएन्टराइटिस (Gastroenteritis)

अत्यधिक उल्टी व दस्त, जो जान लेवा भी हो सकते हैं।

1. प्रथम अवस्था में जब अत्यधिक प्यास एवं बेचैनी हो, उल्टी और दस्त बार-बार हों।

  • आर्सेनिक एल्ब 30 और इपिकैक 30, हर आधे घंटे बाद

2. यदि उल्टी और दस्त लगातार हों, बंद होने का नाम न लें, सारा शरीर ठंडा व नीला पड़ जाए, ठंडा पानी पीने की इच्छा हो ।

  • विरेट्रम एल्ब 30, दिन में 3-4 बार

3. अत्यधिक उल्टी व दस्त के बाद जब रोगी ठंडा पड़ने लगे और हमेशा पंखा करवाना चाहे ।

  • कार्बो वेज 30, दिन में 3-4 बार

जीवन रक्षक घोल (नमक, चीनी व पानी का मिश्रण), शिकंजवी, ग्लूकोज, या अन्य तरल पदार्थ रोगी को जल्दी जल्दी दें जिससे निर्जलन का उपचार हो ।

हैजा (Cholera)

हैजा-यानि दस्त और उल्टी जो एक विषैले जीवाणु के कारण होता है ।

लक्षण : चावल के मांड जैसा, झाग मिला, दस्त और उल्टी । प्यास, बेचैनी, ज़्यादा कमजोरी, पेशाब में रूकावट, शरीर में ऐंठन, ठंडापन, नाड़ी कमजोर व सुस्त । पानी हमेशा साफ, प्रदूषण मुक्त पीना चाहिए, विशेषकर बरसात में सड़ी गली चीज़ों के खाने, गंदा पानी पीने, आदि से ये जीवाणु शरीर में प्रवेश करते हैं। रोगी का बदन ऐंठने लगता है, पेशाब रुक जाता है; तुरन्त इलाज न होने पर निर्जलन भी हो सकता है और रोगी कुछ ही घंटों में मर सकता है।

1. हैजे की प्रथम अवस्था में जब शरीर में काफी ठंडक और शक्तिहीनता आने लगे।

  • कैम्फर Q, 2-3 बूंद, हर 10-1५ मिनट बाद

यदि कैम्फर Q से फायदा न हो तब दूसरी औषधियां देखें।

2. जब उल्टी और दस्त काफी मात्रा में हों और ठंडा पसीना आए ।

  • विरेट्रम एल्ब 30, हर 10-1५ मिनट बाद

3. जब उल्टी और दस्तों के साथ ऐंठन प्रबल हो ।

  • क्यूप्रम मैट 30, हर आधे घंटे बाद

4. यदि हैजे के रोगी में बेचैनी और जलन के लक्षण

प्रधान हों । दस्त काले और बहुत बदबूदार हों।

  • आर्सेनिक एल्ब 30 हर 10-1५ मिनट बाद

5. हैजे की आखिरी अवस्था में या उल्टी दस्त बंद होने की अवस्था में यदि रोगी ठंडा होने लगे, मगर हवा के लिए छटपटाए ।

  • कार्बो वेज 30 हर 10-1५ मिनट बाद

अजीर्ण, अधिक गैस बनना व अफारा आदि (Gastric complaints)

1. अधिक मात्रा में या देर से हज़्म होने वाला भोजन करने के कारण अधिक गैस बने । कब्ज रहे, बार बार पाखाना आए।

  • नक्स वोमिका 30, दिन में 3 बार

2. गैस बनने की प्रवृत्ति रोकने के लिए मुख्य दवा (intercurrent remedy)

  • सोराइनम 30, एक खुराक

3. गरिष्ट भोजन करने के बाद अधिक गैस बने; अनपचा भोजन पेट में पड़ा रहे। प्यास न हो या बहुत कम हो। जीभ पर गाढ़ी मैल की परत जमी हो ।

  • पल्साटिला 30, दिन में 3 बार

4. अधिक गैस के कारण अफारा । सारा पेट ढ़ोल की तरह फूल जाए । गैस निकलने से भी आराम न मिले । फल खाने से रोग बढ़े ।

  • चाइना 30, दिन में 3 बार

5. पेट में वायु के कारण अफारा आए। खासकर पेट का ऊपरी हिस्सा फूल जाए। डकार आने या गैस निकलने से आराम आए ।

  • कार्बो वेज 30, दिन में 3 बार

6. कब्ज़ या कड़े मल के साथ अफारा। खासकर पेट का निचला हिस्सा फूल जाए। खासकर शाम को 5 से 8 बजे तक ज़्यादा हो।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

7. पेट में अधिक वायु इकट्ठी होने के कारण अफारा । पेट में तरल पदार्थ गड़गड़ बोलें ।

  • असाफोइटिड़ा 30, दिन में 3 बार

8. जब वायु ऊपर या नीचे कहीं से भी न निकले, बहुत परेशानी हो । गर्म डकार आएं।

  • रैफेनस सैटाइवा 30,दिन में 3 बार

9. पेट में गैस के कारण खट्टी डकार आएं। खाना बनते समय की खुश्बू से उल्टी सी आए ।

  • स्टैनम मैट 30, दिन में 3 बार

10. वायु इकट्ठा होने के कारण पेट में दर्द हो । खाने की खूश्बू से मितली आए। साथ में जोड़ों में दर्द हो ।

  • कोल्चिकम 30, दिन में 3 बार

11. अजीर्ण

  • नक्स वोम 30, हाइड्रास्टिस 6, नैट्रम फास 30, बिस्मथ 30; बराबर मात्रा में मिला कर मिश्रण तैयार करे और उसकी 3 – 3 बूंद दिन में 3 बार सेवन करें ।

तिल्ली के विकार (Diseases of the Spleen)

पेट में बाईं ओर (नाभी के थोड़ा ऊपर की ओर ) तिल्ली होती है। बहुत दिन तक बुखार आने से यह बढ़ जाती हैं और सख्त भी हो जाती है।

1. तिल्ली के रोगों की मुख्य दवा ।

  • सिएनोथस दिन में Q 3 बार

2. मलेरिया बुखार के बाद तिल्ली के रोग ।

  • नैट्रम म्यूर 6x या 30 दिन में 3 बार

3. जब बेचैनी हो व आधिक प्यास लगे ।

  • आर्सेनिक एल्ब 30 दिन में 3 बार

4. मलेरिया ज्वर में क्विनिन का अधिक सेवन होने के बाद प्लीहा का बड़ जाना ।

  • आर्स आयोड 30 या 200 दिन में 2 बार

5. रक्त हीनता, अधिक कमजोरी, यकृत तथा प्लीहा दोनों ही बढ़े हुए हों।

  • फैरम आर्स 30 या 200 दिन में 3 बार

6. प्लीहा खूब बढ़ी हुई । ज्वर में रोगी को हमेशा ठण्ड लगे, शीत से रोगी मानो जम सा जाता है।

  • एरेनिया 30 या 200, दिन में 3 बार

7. प्लीहा पर इस औषधि की मुख्य क्रिया है ।

  • एण्डरसोनिया Q या 6, दिन में 3 बार

8. ज्वर के साथ प्लीहा का बढ़ना, इतना दर्द कि हाथ भी नहीं लगाया जाता । प्लीहा खूब बड़ी व कड़ी रहती है उस पर हाथ लगाने से उसकी तह कटी-कटी सी मालूम देती है ।

  • यूकेलिप्टस 30 या 200, दिन में 3 बार

अपेन्डिक्स की सूजन (Appendicitis)

पेट में दाई तरफ जहां छोटी और बड़ी आंत मिलती है वहां एक छोटा सा दुम जैसा अंग है जिसे ‘अपेन्डिक्स ‘ कहते हैं । जब इस अंग में किन्ही कारणों से सूजन हो जाती है तो यह रोग अपेन्डिक्स की सूजन कहलाता है।

लक्षण : पेट के निचले हिस्से में नाभी के दाई ओर भयंकर दर्द जी मिचलाना, उल्टी, बुखार, आदि ।

1. अपेन्डिक्स की प्रमुख दवा दर्द वाली जगह को छूने से दर्द बढ़े।

  • आइरिस टेनैक्स 30 हर 2 घंटे बाद

2. अचानक तेज बुखार, बेचैनी, घबराहट व मृत्यु भय ।

  • एकोनाइट 30, हर आधे घंटे बाद

3. दर्द के कारण चेहरा लाल दर्द अचानक उठे और अचानक समाप्त हो जाए।

  • बैलाडोना 30 हर आधे घंटे बाद

4. जब दर्द में दाहिनी ओर लेटने से आराम आए। कब्ज हो, अधिक प्यास व बुखार हो, हिलने-डुलने से दर्द बढ़े।

  • ब्रायोनिया 30 या 200, हर आधे घंटे बाद

5. जब अपेन्डिक्स की जगह कपड़ा तक छू जाने से भी दर्द हो ।

  • लैकेसिस 30 आवश्यकतानुसार

6. जब रोग दाहिनी और लेटने से बढ़े व मवाद पड़ने का डर हो।

  • मर्क सौल 30, हर 2 घंटे बाद

7. जब रोगी दर्द के मारे दोहरा हो जाए, पेट को दबाने से आराम आए ।

  • कोलोसिन्थ 30, हर 2 घंटे बाद

8. जब रोग पुराना हो जाए व अन्य दवाओं से फायदा न हो।

  • सल्फर 200 आवश्यकतानुसार

यदि रोग ज्यादा बढ़ गया हो तो दवा देकर मरीज को अनुभवी डॉक्टर को दिखाना चाहिए । अपेन्डिक्स सड़ जाने पर आपरेशन करवाना आवश्यक हो जाता है ।

पित्त की पथरी का दर्द (Gall Stone colic )

1. पित्त की पथरी के दर्द की प्रमुख दवा ।

  • कोलैस्ट्रीनम 3X, दिन में 3 बार

2. जब दर्द दाँए कन्धे के निचले हिस्से में हो । यकृत में दबाने से दर्द महसूस हो। चेहरा पीला, फीका सा लगे । उल्टियाँ आएं। पसीना पीला दाग छोड़े।

  • चैलिडोनियम 30, दिन में 3 बार

3. पित्त की पथरी । पीलिया । यकृत प्रदेश में बेचैनी एवम् भारीपन महसूस हो।

  • कार्डअस मैरिएनस Q या 6, दिन में 3 बार

4. पित्त की पथरी व पीलिया खाने की इच्छा न हो । ठण्ड लगे।

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 3 बार

5. जब रोगी को ठण्डे पेय पीने की तीव्र इच्छा हो।

  • फॉस्फोरस 200 सप्ताह में एक बार

6. प्रमुख दवा; जब पित्त की पथरी का दर्द बंधे समय पर आए (periodical) | यकृत में छूने एवम् दबाने से दर्द महसूस हो। खाने की इच्छा न हो जबकि भूख लगती हो। पाचन क्रिया मन्द हो ।

  • चाइना 6 या 30, दिन में 3 बार (2-3 महीने लगातार दें )

7. पित्त की पथरी का बनना रोकने के लिए। जब साथ में कब्ज भी हो।

  • चियोनेन्थस विर Q दिन में 3 बार

8. पित की थैली में पथरी

  • कोलेस्टेरिनम 3X, बार्बेरिस वल्गेरिस 3X, हाइड्रैस्टिस Q, आर्टिका यूरेन्स 3X बराबर मात्रा में मिला कर मिश्रण तैयार करे और उसकी 20 – 20 बूंद दिन में 3 बार सेवन करें ।

अमीबियासिस (AMOEBIASIS)

1. मल सीरे की तरह का, आंव मिला, हरे से रंग का लिसलिसा, या झागदार हो, साथ में नाभि पर खिंचाव सा हो, जीभ साफ़ हो

  • इपिकैक 30 या 0/5 (और उच्च), दिन में तीन बार

2. मल बार-बार आए, संतुष्टी न हो, पेट में ऐठन के साथ हरे से रंग का, रक्त-मिश्रित और लिसलिसा, रात में रोग वृद्धी

  • मर्क सोल 30, दिन में 3 बार

3. मल त्यागने के बाद बेहद कमज़ोरी हो, रोगी को लगे जैसे मल द्वार हमेशा खुला ही रहता है, हाजत होने के बाद मल अनचाहे ही निकल जाए, वायु विसर्जन के साथ दुर्गन्धित मल निकले

  • फॉस्फोरस 30, दिन में 3 बार

4. जब रोग के कारण वज़न कम होने लगे, रोगी धैर्यहीन, बैचेन एवम् निराश हो जाए

  • इमेटिन 30, दिन में 3 बार

5. बायोकैमिक औषधि

  • काली फॉस 6x, दिन में 3 बार

6. अन्य महत्वपूर्ण औषधियाँ

  • हाइड्रैस्टिस कैन, थूजा, सल्फर, एवम् बैसिलिनम, आदि ।

उल्टियां (Morning sickness)

1. जब उल्टियां शुरू हों। पेट में वायु हो, कब्ज़ हो, मुंह से खट्टा या कड़वा पानी आए। जीभ पर सफेद लेप हो ।

  • नक्स वोमिका Q व एन्टिम क्रूड 6, अदल बदल कर दें

2. जब उल्टियां रुकने का नाम न लें।

  • सिम्फोरिकार्पस रेसि 200

3. पेट में वायु हो, जबान साफ हो ।

  • इपिकैक 30

4. यात्रा के दौरान उल्टियां ज्यादा हों। खाने की गन्ध से मिचली बढ़े ।

  • कोल्विकम 30

5. खाते समय नींद आये। चलते समय मिचली हो ।

  • काली कार्ब 30

6. पानी को देखने से उल्टियां बढ़ें नहाते समय रोगिणी आंखें बन्द करके नहाए ।

  • फॉस्फोरस 30

यात्रा के दौरान उल्टी (Travel Sickness)

कई व्यक्तियों को रेल, बस, नाव, जहाज, आदि में यात्रा करने पर जी मिचलाने लगता है। पहाड़ों की यात्रा में, बस या रेल से यात्रा करने पर जी मिचलाना व उल्टी हो जाती है । सबको यह कष्ट नहीं होता, परंतु कुछ लोगों को ये कष्ट होता है। यात्रा के दौरान नींबू चूसना या इलायची मुंह में रखना लाभदायक है ।

1. कार, बस या जहाज़ में यात्रा करने से उल्टी ।

  • कोकुलस इण्डिका 30, हर 1 घंटे बाद

2. सिग्रेट का धुंआ बुरा लगे, चक्कर आयें व जी मिचलाए ।

  • स्टेफिसगेरिया 30 हर आधे घंटे बाद

3. आंख वद करने, पानी पीने, व पानी की ओर देखने से उल्टी |

  • थेरिडियोन 30, 3-4 खुराक

4. खट्टी उल्टी कम सोने के कारण कष्ट बढ़े।

  • नक्स वोमिका 30, दिन में 3 बार

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