मिलिफोलियम | Millefolium

मिलिफोलियम | Millefolium

ऐसे रोग, जिनकी उत्पत्ति अत्यधिक भारी बोझा उठाने, अत्यधिक परिश्रम करने अथवा गिरने के फलस्वरूप होती है ।

भ्रमि अथवा चक्कर – धीरे-धीरे टहलते हुए, किन्तु कठिन शारीरिक परिश्रम करते समय नहीं ।

रक्तस्राव – दर्दहीन, ज्वर रहित; चमकता हुआ लाल, तरल रक्त (ऐकोना, इपिका, सैवाइ) फुफ्फुसों, श्वास नलियों, स्वरयंत्र, मुख, नाक, आमाशय, मूत्राशय, मलाशय एवं जरायु से; यांत्रिक मूल का (आर्नि); घावों का (हेमा) | ऐसे घाव जिनसे विपुल परिमाण में रक्तस्राव होता है, विशेष रूप से गिरने के बाद (आर्नि, हेमा) ।

रक्तनिष्ठीवन (haemoptysis ) – चोट लगने के बाद, फुफ्फुस-क्षय की प्रारम्भिक अवस्था में; रक्तार्थ से पीड़ित रोगियों में; रक्त वाहिनी फटने से ।

दर्दहीन रक्तस्राव – नाक, फुफ्फुस एवं जरायु से; प्रसव अथवा गर्भपात के बाद; कठोर शारीरिक श्रम करने; गर्भपात होने के बाद । प्रसवोत्तर रक्तस्राव को रोकने वाली ।

ऋतुस्राव – नियत समय से पहले, विपुल परिमाण में दीर्घस्थायी रुद्ध, साथ ही उदर के अन्दर शूल प्रकृति की पीड़ा। अतानिक अवस्था के कारण बच्चों में प्रदरस्राव (कल्के ) ।

खाँसी – साथ ही चमकता हुआ लाल रक्त; ऋतुस्राव की दबी हुई अवस्था अथवा रक्तार्थ में; साथ ही वक्षरोध एवं धड़कन किसी ऊँचाई से गिरने के बाद (आर्नि); कठिन शरीरिक श्रम करने के बाद; साथ ही रक्त; नित्य सायं 4 बजे (लाइको) ।

सम्बन्ध –

  • नकसीर फूटने तथा रक्तनिष्ठीवन होने पर जब चमकता हुआ लाल रक्त हो तो एरेच से तुलना कीजिए ।
  • रक्तस्राव में ऐकोना तथा अर्निका के बाद इसकी प्रभावी क्रिया होती है।

म्यूरेक्स पर्च्यूरिया | Murex Purpurea

विषादी स्वभाव के व्यक्ति । रजोनिवृत्ति के दौरान प्रकट होने वाले कष्टों के लिए (लैके, सीपि, सल्फ) । गहन आत्म-नैराश्य । आमाशय के अन्दर डूबने और खालीपन की अनुभूति (सीपि) ।

गुप्तांगों के हल्के से स्पर्श से भी प्रबल कामोतोजना प्रकट हो जाती है। (अत्यधिक कामोत्तेजना के फलस्वरूप रोगी बाध्य होकर हस्तमैथुन करता है – ओपि, जिंक)। जननांगों में प्रचण्ड उत्तेजना तथा आलिंगन करने की तीव्र इच्छा (सीपि के विपरीत) ।

जरायु के अन्दर दाहक पीड़ा; उदर के अन्दर गर्भ भ्रूण होने की स्पष्ट अनुभूति (हेलोनि, लाइसि) । नीचे की ओर प्रसव जैसी दबाव मारती हुई अनुभूति, जैसे अन्तरांग बाहर निकल जायेगे, दबाव रोकने के लिए भुजाओं तथा टांगों को एक दूसरे के ऊपर, रख कर नीचे बैठना पड़ता है (किन्तु सम्भोग की इच्छा नहीं होती – सीप)

ऋतुस्राव – अनियमित, नियत समय से पहले, दीर्घस्थाई, बड़े-बड़े थक्के । प्रदरस्त्रव – मानसिक अवसाद से वृद्धिः स्राव गतिशील रहने पर हर्षोत्फुल्ल ।

सम्बन्ध

  • स्त्रियों को होने वाले कामोन्माद में लिलिय एवं प्लेटी से तुलना कीजिये ।
  • सम्भोग की अनिच्छा के साथ नीचे की ओर प्रसव जैसी दबाव मारती हुई अनुभूति में सीपि से तुलना कीजिये ।

म्यूरिएटिक एसिड | Muriatic Acid

ऐसे व्यक्तियों के लिए उपयोगी जिनके काले केश तथा काले नेत्र रहते हैं। और श्यामल चेहरा होता है। चिड़चिड़ा, तुनुकमिजाज, क्रुद्ध एवं नाराज होने का स्वभाव (नक्स); बेचनी और सिर में चक्कर। दुर्बलता लाने वाले रोग, साथ ही कराहना, मूर्च्छा और चिड़चिड़ापन । व्रणोद्भवन के साथ आंत्रपथ की कुकुरमुत्ता जैसी वृद्धि तथा उसके अन्दर अयथार्थ झिल्ली का जमाव ।

भारी दुर्बलता; जैसे ही वह नीचे बैठता है वैसे ही उसकी आंखें बन्द हो जाती हैं; अधोहनु नीचे की ओर लटक जाता है; बेचनी में इधर-उधर सर कता रहता है।

मुख एवं मलद्वार प्रमुख रूप से प्रभावित होते हैं; जिह्वा एवं गुदा संकोचिनी का पक्षाघात हो जाता है ।

मुख के दुर्दम रोग; व्रणों से आच्छादित, गहरे, वेधक आधार काला या गहरे रंग का असह्य दुर्गन्धित प्रवास महावसाद, रोहिणी, रक्तज्वर, कैंसर

मांस के बारे में सोचना या या उसे देखना सहन नहीं कर सकता (नाइ- एसिड) |

यदि मलद्वार अत्यन्त स्पर्शकातर हो, चाहे रक्तार्थ हों या न हों; ऋतुस्राव के दौरान मलद्वार में दुखन ।

रक्तार्शसूजे हुए, नीले, स्पर्शकातर और दर्दनाक, बच्चों में अचानक प्रकट हो जाते हैं; इतनी अधिक दुखन रहती है कि हल्का-सा स्पर्श भी सहन नहीं होता, यहां तक कि विस्तरे की चादर भी असुविधाजनक महसूस होती है; मूत्रत्याग के दौरान मलांत्र बाहर की ओर लटक जाती है ।

अतिसारमूत्रत्याग के दौरान तथा अधोवायु निकलने के साथ (एलो) मल स्वतः निकल पड़ता है; मलोत्सर्जन के बिना मूत्रत्याग कर ही नहीं,

सकता

मूत्र धीरे-धीरे निकलता है; मूत्राशय दुर्बल, बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है; दबाव देना पड़ता है और इसके फलस्वरूप गुदा बाहर की ओर फैल जाता है । जननांग पर हल्का-सा स्पर्श, यहाँ तक कि चादर का स्पर्श, भी सहन नहीं कर सकता (म्यूरे) ।

आंत्रिक ज्वर अथवा मोह-ज्वर, गहरी जड़वत् निद्रा; जागे रहने पर बेहोशी; और-जोर से कराहना अथवा बड़बड़ना; जिह्वा किनारों पर विलेपित, सिकुड़ी हुई, शुष्क, चर्मवत्, पक्षाघातग्रस्त, मूत्रत्याग के दौरान असंयत दुर्गन्ध भरे मल; बिस्तर में सरकते रहने की प्रवृत्ति; नाडी प्रत्येक तीसरी धड़कन में रुक जाती है ।

हृदय की धड़कन चेहरे पर महसूस होती है।

चेहरे पर छोटे-छोटे दाग; छाजन ।

सम्बन्ध

  • ब्रायो, मक्यूँ और रस के बाद प्रभावी क्रिया करती है।
  • अफीम एवं तम्बाकू का अत्यधिक सेवन करने के बाद उत्पन्न होने वाले पेशीदौर्बल्य से मुक्त करती है ।

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