मेडोरहीनम | Medorrhinum
प्रमेह रोग की दुचिकित्सा किए जाने तथा रोग को दबा दिए जाने के फलस्वरूप शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव, जब सुनिर्वाचित औषधि न आराम देती है न स्वास्थ्य में स्थाई सुधार ही लाती है । ऐसे व्यक्तियों के लिए, जो गठिया, अवात, तंत्रिकाशूल तथा मेरुदण्ड एवं उसकी झिल्लियों को आक्रान्त करने वाले रोगों से पीड़ित रहते हैं – यहाँ तक कि आंगिक विक्षतियां भी पक्षाघात का रूप ले लेती हैं, जो प्रमेह मूल की पाई जाती हैं।
ऐसी स्त्रियों के लिए, जो जीर्ण डिम्बाशयशोथ, डिम्बवाहिनीशोथ (salpingitis), वास्तिकोशों के प्रवाह, मांसवृद्धि, पुटियों तथा जरायु एवं डिम्बग्रंथियों के अन्य रोगजनक गुल्मों से पीड़ित रहती हैं, विशेष रूप से जब लक्षण दुर्दमता की ओर उन्मुख पाए जाते हैं चाहे उनका मूल कारण प्रमेह विष हो अथवा नहीं ।
सूत्रण रोग, कार्सिनोमा अथवा कैंसर के लिए, चाहे वे अपने विकास में तरुण हों या जीर्ण, जब लक्षणों की सदृशता पाई जाय और प्रमेह विष का इतिहास मिलता हो । ।
चर्म एवं श्लेष्म कलाओं की जीर्ण रोगावस्थाओं में जिस प्रकार सोराइनम की क्रिया होती है, ठीक उसी प्रकार मेरुदण्ड एवं सम्वेदी स्नायु प्रणाली की प्रमेहमूलक जीर्ण रोगावस्थाओं में इस औषधि की गूढ़ क्रिया पाई जाती है ।
बच्चे – पीले, बालास्थि-विकार से पीड़ित बौने और विकास-रहित (बैरा- कार्बो); मानसिक रूप से मन्द एवं दुर्बल भारी गर्मी और दुखन, साथ ही सारे शरीर में लसीका ग्रंथियों का विवर्धन । यक्ष्मामूलक सुस्ती: थकान; जीवनीशक्ति की भारी अवसन्नता ।
दर्द – सन्धिवाती, आमवाती, प्रमेह विष दबा दिए जाने का कुपरिणाम (डैफ-ऑड, क्लिमै); सिकुड़न युक्त, जैसे सारे शरीर को कसा जा रहा हो
(कैक्ट) सारे शरीर में दुखन, जैसे कुचल दिया गया हो (आनि, यूपाटो) ।
सारे शरीर में कम्पन – ( स्वानुभूत), तीव्र स्नायविकता और गहन क्लान्ति । निपात की अवस्था, चाहता है उस पर हर समय पंखा झला जाता रहे (कार्बो-बेजि) ताजी हवा चाहता है; त्वचा ठण्डी, फिर भी ओढ़ना फेंक देता है (कैम्फ, सीकेल); ठण्डा और ठन्डे पसीने से तर (बेरा) ।
मन – स्मरण शक्ति की दुर्बलता; नामों, शब्दों अथवा प्रथम अक्षरोंका स्मरण नहीं कर सकता; घनिष्ट से घनिष्ट मित्र का नाम भी पूछना पड़ता है। अपना नाम भी भूल जाता है। ठीक-ठीक वर्णविन्यास नहीं कर सकता; सुपरिचित नाम लिखते हुए भी सोचता है । बात-चीत का सिलसिला बार-बार भूल जाता है।
अपने लक्षणों का वर्णन भारी कठिनाई के साथ करती है, बार-बार प्रश्न करना पड़ता है क्योंकि वह उपयुक्त, उत्तर देना भूल जाती है । बिना रोए नहीं बोल सकती। अपनी मृत्यु का पूर्वानुमान करती है; सदैव आशंकित रहती है, घटनायें घटने से पहले ही उनका अनुमान लगा लेती है और उसका अनुमान प्रायः सच्चा निकलता है । छोटी-छोटी बातों से चिढ़ जाती है; दिन के समय चिड़चिड़ापन रहता है। किन्तु रात को प्रसन्न चित्त रहती है।
अत्यन्त अधीर; चिड़चिड़ा । अधीर, स्नायविक, अत्यधिक असहिष्णुः हल्की-सी ध्वनि होते ही चौंक पड़ता है । समय बहुत धीरे-धीरे बीतता है (एलूमि, आज-नाइ, कैना-इण्डि) । जल्दी में रहती है; जब कोई काम करती है तो उसे करने में इतनी शीघ्रता करती है कि थक जाती है ।
बहुत से लक्षणों में तब वृद्धि होती है जब उनके बारे में सोचा जाता है (दर्दों के बारे में सोचते ही वे पुनः लौट आते हैं – आक्जै-एसिड) ।
सिर – मस्तिष्क के अन्दर तीव्र जलन और पीड़ा; अनुमस्तिष्क में अधिक; नीचे मेरुदण्ड तक फैल जाती है । सिर भारी लगता है और पीछे की ओर खिच जाता है । कसाव और सिकुड़न की अनुभूति; नीचे की ओर सम्पूर्ण मेरुदण्ड तक फैल जाती है। मोटरकारों का झटका लगने से सिरदर्द और अतिसार ।
कण्ठ – लगता है जैसे उसे भारी ठण्ड लग गई हो, साथ ही अस्थियों में बेचैन कर देने वाली कसक और पीड़ा होती है कण्ठ के अन्दर दुखन और सूजन, तरल अथवा दोनों प्रकार के पदार्थों का निगरण असम्भव (मर्क्यू) । पृष्ठ नासारन्धों से कण्ठ के अन्दर निरन्तर गाढ़ा, भूरा अथवा रक्तिम श्लेष्मा भरता रहता है (हाइड्रे) ।
क्षुधा – खाना खाते ही तुरन्त राक्षसी भूख जाती है (सीना, लाइको, सोरा)।
अविराम प्यास, स्वप्नों में भी पानी पीती रहती है ।
अतृप्त इच्छा – शराब पीने की, जिससे वह पहले घृणा करती थी (एसार); नमक खान की (कस्के, नेट्रम); मिष्ठान खाने की (सल्फ); यवसुरा, बर्फ, अम्ल-पदार्थ, संतरे, कच्चे फलों के सेवन की ।
आन्ते – मल चिपचिप, कीचड़ जैसा, ढीला, मलांत्र की स्थानच्युति की अनुभूति होने से कांख नहीं सकता (एलूमि) । आन्तों की सिकुड़न एवं निष्क्रियता के साथ गोलाकार मल (लैके) ।
पीछे की ओर अधिक झुकने पर ही मल निकास हो पाता है; अत्यन्त पीड़ाप्रद, लगता है जैसे गुदा संकोचिनी की पिछली सतह पर कोई पिण्ड हो; इतनी अधिक पीड़ा होती है कि आंसू आ जाते हैं। मलद्वार से पानी टपकता रहता है, जिससे सड़ी हुई मछली जैसी गन्ध आती है (कास्टि, हीपर) |
मूत्रांग – वृक्क प्रदेश में उग्र पीड़ा (पृष्ठवेदना), प्रचुर परिमाण में मूत्रोत्सर्जन होने से आराम (लाइको) । वृक्कशूल: मूत्रनलियों में तीव्र पीड़ा होने के साथ पथरी निकलने की अनुभूति (बर्बे, लाइको, ओसीम) बर्फ खाने की उत्कट इच्छा ।
रात्रिकालीन निरंकुशमूत्रता – रात को विस्तरे में रोज नौसादर जैसे, तेज रंग का मूत्र प्रचुर मात्रा में निकलता है; अधिक कार्य करने या अधिक खेलने से, अत्यधिक गर्मी या ठण्ड से वृद्धि; जब सुनिर्वाचित औषधि असफल पाई जाती है; साथ ही प्रमेह का इतिहास । मूत्रत्याग करते समय मूत्राशय एवं आन्तों के अन्दर पीड़ाप्रद कूथन ।
जननांग – ऋतुस्राव: विपुल परिमाण में अत्यधिक काला, थक्केदार; वस्त्र पर पड़ा हुआ दाग कठिनाई से ही निकल पाता है (मैग्नी-कार्बो) ।
अत्यार्तव – रजोनिवृत्ति के दौरान कई सप्ताहों तक विपुल परिमाण में, नाव काला, थक्केदार, दुर्गन्धित हिलने-डुलने से पिचकारी के वेग के समान; साथ ही जरायु का सांघातिक रोग । तीब्र ऋतुशूल, साथ ही घुटनों का ऊपर की ओर खिचाव तथा नीचे की ओर दबाव मारती हुई प्रसव वेदना जैसी भयंकर पीड़ा प्रसूता के समान पैरों को दबा लेती है । भग एवं योनि की तीब्र खुजली, जिसके बारे में सोचने से वह बढ़ती है ।
स्तन एवं चूचुक – दाहक एवं स्पर्शकातर । स्पर्श करने पर स्तन और विशेष रूप से चूचुक बर्फ जैसे ठण्डे लगते हैं, शेष सारा शरीर गर्म रहता है (ऋतुस्राव के दौरान) ।
श्वासयंत्र – दमा; उपजिह्वा की दुर्बलता अथवा ऐंठन से घुटन महसूस होती है स्वरयंत्र बन्द हो जाता है, फलस्वरूप वायु अन्दर प्रविष्ट नहीं हो पाती, चेहरा नीचे रख कर लेटने तथा जिह्वा को बाहर की ओर फैलाने से ही आराम आता है। स्वरयंत्र के अन्दर दुखन, जैसे व्रणग्रस्त हो । श्वासकष्ट एवं सिकुड़न की अनुभूति; श्वास को अन्दर की ओर सहजतापूर्वक खींच सकता है किन्तु उसे बाहर निकालने की शक्ति नहीं रहती (सैम्बू) ।
खांसी – शुष्क, अविच्छिन्न उम्र दर्दनाक, जैसे स्वरयंत्र की श्लेष्म-कला फट गई हो; गहरी, खोखली, जैसे किसी पीपे के अन्दर खाँस रहा हो; रात को, मिष्ठानों से लेटने से आराम आता है।
थूक – अन्नसार जैसा, झागदार; अल्प, हरा, कड़वे से चिपचिपा जिसे कठिनाई के साथ बाहर निकाला जा सकता है। यक्ष्मा की प्रारम्भिक अवस्था; मध्य खण्डों में उम्र पीड़ा।
पीठ और हाथ-पैर – स्कन्धास्थियों के मध्य पीठ में पीड़ा ऊपर से नीचे तक सारे मेरुदण्ड में स्पर्श करने से दुखन (चिनि-सल्फ्यू) ।
तीव्र ज्वलनकारी ताप, जो ग्रीवा-सन्धि पर आरम्भ होकर नीचे मेरुदण्ड की ओर फैलती है, साथ ही सिकुड़नयुक्त अकड़न, शरीर फैलाने से वृद्धि । स्कन्धशीर्ष एवं भुजा में आमवात; दर्द उँगलियों तक फैल जाता है, गति करने से आराम (दाय – सैंग्वी; बायाँ – फेरम) ।
कटि-कशेरुकायें दर्दनाक और स्पर्शकातर । त्रिकास्थि, गुदास्थि एवं नितम्ब के पिछले भाग में पीड़ा जो नीचे टांगों तक फैल जाती है । टांगों में दर्द, कूल्हों से लेकर घुटनों तक केवल चलते समय ।
टांगों का भारीपन, सीसा जैसे भार की अनुभूति टांगें इतनी अधिक भारी रहती हैं कि चलने में कठिनाई होती है; टांगें जबाब दे देती हैं । सारी रात टांगों में दर्द होता है, फलस्वरूप नींद नहीं आती । अत्यधिक बेचैनी और टांगों तथा पैरों की स्वचल गति (जिंक) ।
बिजली चमकने के साथ आने वाले तूफान के दौरान टांगों और भुजाओं में तीव्र जलन होती है । टांगों की कसकपूर्ण पीड़ा, साथ ही उन्हें बिरतरे में शान्त रखने की अक्षमता; स्वयं पर नियंत्रण खो देने, विश्राम करने तथा सोने का प्रयत्न करने पर वृद्धि । टांगों तथा पैरों एवं हाथों और अग्र भुजाओं की शीतलता ।
घुटनों के पीछे वाली शिराओं और टखनों में खिचाव और सिकुड़न की अनुभूति पिण्डलियों और पदतलों में मरोड़ें (क्यूप्र) । चलते समय टखने सहज ही मुड़ जाते हैं (कार्बो-एमी, लीडम ) ।
हाथों और पैरों की जलन, उन्हें ढककर रखना चाहता है और पंखा करना चाहता है (लैके, सल्फ) । टांगों और भुजाओं में स्नायु-शक्ति का लगभग पूर्ण अभाव; हल्का-सा श्रम करने पर भी थकान हो जाती है ।
शरीर की प्रत्येक सन्धि में दर्दनाक अकड़न । उंगलियों के जोड़ों की विकृति दीर्घाकार, फूले हुए पोर (knuckles); टखनों की सूजन और दर्दनाक अकड़न पैर की एडियों तथा ऊंगलियों की नोकों में भारी पीड़ा; समस्त सन्धियों की सूजन; सन्धियाँ गुब्बारे की तरह फूली हुई थीं ।
सम्बन्ध –
- रूखी खाँसी में इपिकाक से सल्फ से तुलना कीजिये ।
- निपात की अवस्था में कैफ, सीकेल, टेबाक एवं बेराट्र से तुलना कीजिये ।
- चलने-फिरने की अक्षमता में पिक एसिड एवं जेल्सी तुलना कीजिये ।
- प्रातःकालीन अतिसार में एलो एवं सल्फ से तुलना कीजिये ।
मेडी हीनम में सल्फर के पैरों की जलन तथा जिंकम में पाई जाने वाली पैरों की स्वचल गति दोनों ही पाई जाती हैं।
रोगवृद्धि – रोग के बारे में सोचने पर (हेलोनि, आक्जै-एसिड) गर्मी, ओढ़ना, शरीर फैलाना; तूफान; अल्पतम गति मिष्ठान; सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक (सिफली के विपरीत) ।
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रोगह्रास – समुद्र के किनारे (नेट के विपरीत); पेट के बल लेटने पर; नम जलवायु (कास्टि, नक्स) ।