हमामंलिस वर्जीनिका | Hamamblis Vigrinica
इस झाड़ी में सितम्बर से नवम्बर तक फूल खिलते हैं, जब उसके पत्ते झड़ते हैं। बीज अगली गर्मी में पकते हैं ।
यह शरीर के प्रत्येक द्वार से होने वाले शिराजन्य रक्तस्राव के लिए उपयोगी है, जैसे नाक, फुफ्फुस, आन्तें, जरायु और मूत्राशय ।
शिरापरक रक्तसंचय – निष्क्रिय, त्वचा एवं श्लेष्म कलाओं का; शिराशोथ; शिरा-विस्फार; व्रण, शिरास्फीति, साथ ही दंशज, चुभनशील पीड़ा; रक्तार्थं ।
ऐसे रोगी, जो शिरा – विस्फार से पीड़ित रहते हैं; जिन्हें मामूली सी हवा का झोंका लगने से ठण्ड लग जाती है, विशेष रूप से जब गर्म व नमीदार हवा हो । यह शिरा-केशिका प्रणाली की ऐकोनाइट है।
प्रभावित अंगों की कुचलन जैसी दुखन (आर्नि); सन्धियों एवं पेशियों का आमवात ।
रक्तवमन – कण्ठ की गुदगुदी के साथ होने वाली खांसी, साथ ही रक्त अथवा गन्धक का स्वाद; शिराजन्य, बिना किसी चेष्टा या खाँसी के; कभी-कभी प्रतिमाह वर्षों तक ।
विपुल सत्राव, जो रक्तस्राव को बढ़ाता है तथा उग्र रक्तक्षय के समान शरीर में नाली सी बना देता है ।
रक्तार्श – जिनसे विपुल मात्रा में रक्तस्राव होता है; साथ ही जलन, दुखन, भारीपन, जैसे कमर टूट जायेगी; मलत्याग की निरन्तर इच्छा; नील वर्ण, मलद्वार में दुखन और छिल जाने की अनुभूति होती है।
आर्तव – नाव काला और विपुल परिमाण में साथ ही उदर के अन्दर दुखन डिम्बाशय पर चोट लगने या गिर जाने के बाद ऋतुस्राव के दौरान समस्त रोगावस्थाओं में वृद्धि (एक्टि, पल्सा) ।
जरायु से होने वाला सक्रिय अथवा निष्क्रिय रक्तस्त्राव ऊँचे-नीचे रास्ते में घुड़सवारी करते समय उछलने पर कमर में नीचे की ओर दबाव मारती हुई पीड़ा ।
अर्श से रक्तस्त्राव होने के बाद, इतनी अधिक दुर्बलता महसूस होती है जैसे बहुत सारा रक्त निकल गया हो (हाइड्रै) । रक्तस्त्राव के दुष्परिणाम (सिन्को) ।
सम्बन्ध –
- रक्तसाव एवं रक्तस्रावी प्रवणता में फेरम से पूरक सम्बन्ध है ।
- चोट लगने तथा अन्तः नेत्रीय रक्तस्राव के द्रुत अवशोषणार्थ आर्नि एवं कैलेण्ड से तुलना कीजिए।