यूपाटोरियम पर्फोलिएटम | Eupatorium Perfoliatum
वृद्ध व्यक्तियों को आकान्त करने वाले रोगों में उपयोगी जीर्ण-जर्जर तन, विशेष कर मतवालेपन से, शारीरिक क्षीणता, जो पित्तात्मक अथवा सविराम-ज्वरों के चिरस्थाई रहने या बारम्बार आक्रमण होने के फलस्वरूप पैदा होती है ।
सारे शरीर में कुचलन जैसी अनुभूति, जैसे टूट गया हो (आर्नि, बेलिस, पाइरो)। अस्थि-पीड़ा जो पीठ, सिर, वक्ष, हाथ-पैरों, विशेष रूप से कलाइयों को प्रभावित करती है, लगता है जैसे उनकी स्थानच्युति हो गई हो । यह अनुभूति जितनी ही बलवती एवं उग्र रूप में होगी उतनी ही स्पष्टता के साथ इस औषधि का निर्देश होगा (ब्रायो, मर्क्यू से तुलना कीजिये) ।
नेत्रगोलकों की कष्टदायक तुखन; नजला, प्रत्येक हड्डी में कसक और पीड़ा, इन्फ्लुएंजा की महामारी के दौरान अत्यधिक अवसन्नता (लेक-कैनी
दर्द यथाशीघ्र आता है ओर यथाशीघ्र चला भी जाता है (बेला, मैग्नी-फा, यूपा-पर्प्यू) ।
भ्रमि अथवा चक्कर – लगता है जैसे वह बाई ओर को गिर रहा है (गिरने के भय से सिर को बाईं ओर नहीं मोड़ सकता – कोलो) ।
खांसी – जीर्ण यक्ष्मा के साथ बलगमयुक्त; वक्ष में दुखन, उसे हाथों का सहारा देकर थामना पड़ता है (बायो, नेट्र-कार्बो) रात्रिकालीन वृद्धि रोमान्तिका अथवा सविराम-ज्वरों की दबी हुई अवस्था के बाद।
ज्वर – शीत का प्रकोप एक दिन प्रातः 9 बजे और अगले दिन दोपहर के समय प्रकट होता है; शीत का आवेग समाप्त होते ही कड़वा वमन; पानी पीने से ठण्ड बढ़ती है और उसके फलस्वरूप वमन होने लगता है; शीत के प्रकोप से पहले और बाद में अस्थि-पीड़ा। शीतावेग एवं ज्वरावस्था के दौरान अप्रतिहत प्यास; जान लेता है कि शीत का प्रकोप प्रकट होने वाला है क्योंकि यह अधिक पानी नहीं पी सकता।
सम्बन्ध –
- इस औषधि के बाद नेट्रम म्यूरि एवं सीपिया की उत्तम क्रिया होती है।
- कामला जैसी अवस्थाओं में बेलिडो, पोडो एवं लाइको से तुलना कीजिये ।
- समान गुण वाली औषधियों में ब्रायोनिया इसकी निकटतम औषधि है, जिसमें मुक्त रूप से पसीना होता है, किन्तु उसके दर्द रोगी को शान्त रहने के लिए बाध्य कर देते हैं, जबकि यूपाटो में बहुत कम पसीना होता है और दर्द के कारण रोगी बेचैन हो जाते हैं ।