क्राकस सैटाइवस | Crocus Sativus

क्राकस सैटाइवस | Crocus Sativus

अनुभूतियों में निरन्तर एवं चरम परिवर्तन; अत्यधिक प्रफुल्लता से एका-एक गहन निराशा (इग्ने, नक्स-मास्के) । अत्यन्त प्रसन्नचित्त, प्रेमाभिभूत प्रत्येक व्यति का चुम्बन करना चाहता है; अगले ही क्षण कोध से परिपूर्ण ।

शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव, रक्त काला, चिपचिपा, थक्केदार, जो लम्बी-लम्बी काली डोरियों का रूप ले लेता है और ये डोरियाँ रक्तस्राव होने वाले स्थान से नीचे की ओर लटकती रहती हैं (इलैप्स) ।

सिरदर्द – रजोनिवृत्ति के दौरान, चमचमाता हुआ, स्पन्दनशील; नियमित आर्तवस्त्राव के दौरान दो-तीन दिन तक; ऋतुस्राव से पहले उसके गतिशील रहने पर अथवा बाद में स्नायविक अथवा ऋतुस्रावी सिरदर्द (लैके, लिलिय, सीकेल) ।

नेत्र – लगता है जैसे कमरे के अन्दर धुआँ भरा हो; जैसे वह रोया हो; जैसे आँखों के आर-पार ठण्डी हवा प्रवाहमान हो; पलकों को दृढ़तापूर्वक बन्द करने से आराम महसूस होता है ।

नकसीररक्त काला, चिपचिपा, डोरी जैसा, प्रत्येक बूंद धागे के रूप में बदल जाती है; साथ ही माथे पर ठण्डे पसीने की बड़ी-बड़ी बूँदें (ठण्डा पसीना, किन्तु चाहता है कि उस पर कोई पंखा झलता रहे; साथ ही चमकता हुआ लाल रक्त – कार्बो-वेजि) बच्चों में जिनका विकास तेजी से होता है (कल्के-फास्फो) ।

कष्टार्तव (dysmenorrnhoea) – स्राव काला, डोरी जैसा, धक्केदार (अस्टि) ।

ऐसी अनुभूति होती है जैसे पाकाशय, उदर, जरायु, भुजाओं अथवा शरीर के अन्य अंगों में कोई सजीव वस्तु चल-फिर रही है (सैबाइ, थूजा, सल्फ); साथ ही मितली और मूर्च्छा ।

लास्य (chorea) एवं वातोन्माद (hysteria) के साथ भारी उल्लास, गाना और नाचना (टारेण्ट); विषाद एवं क्रोध में बदलने वाला । पेशियों के एकल गुच्छों में ऐंठनयुक्त सिकुड़न और स्फुरण (एगारि, इग्ने, जिक)।

सम्बन्ध

  • लगभग समस्त रोगावस्थाओं में काकस के बाद नक्स, पल्सा अथवा सल्फ की उत्तम क्रिया होती है ।
  • ऋतुस्राव की अनियमित अवस्थाओं में अस्टि के साथ तुलना कीजिये ।

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