बर्बेरिस वल्गेरिस | Berberis Vulgaris
वृक्क अथवा मूत्र सम्बन्धी लक्षणों की प्रमुखता । मेरुदण्ड के निचले भाग में पीड़ा; वृक्क प्रदेश स्पर्श के प्रति अतिसम्वेदनशील; बैठने तथा लेटने पर, झटका लगने तथा क्लान्ति से कष्ट बढ़ जाता है। वृक्क प्रदेश में जलन और दुखन, वृक्क एवं कटि प्रदेश में सुन्नपन, अकडन एवं खंजता के साथ कष्टदायक दबाव ।
चेहरा पीला, मिट्टी के रंग जैसा, साथ ही गाल बैठे हुए और खोखले, आंखों के चारों ओर नीले छल्ले । आमवाती एवं गठियाबाती रोगोपसर्गों के साथ मूत्रांगों के रोग ।
पित्ताश्मरियों के फलस्वरूप होने वाला उदरशूल । पित्तशूल, जो कामला रोग (jaundice ) के बाद होता है; मिट्टी के रंग जैसे मल; गुदानाल व्रण (fistula in ano) अथवा भगन्दर, साथ ही पित्त-विकार एवं प्रभावित भागों की खुजली; खुसखुसी खाँसी तथा वक्ष-विकार, मुखतया भगन्दर की शल्य चिकित्सा के बाद (कल्के-फास्फो, साइली ) ।
बायें वृक्क से लेकर मूत्रवाही नली से होता हुआ मूत्राशय एवं मूत्रनली. एक सुई की चुभन जैसा, काटता हुआ दर्द (टेबाकम; दायाँ वृक्क – लाइको) । बुक्क-शूल (renal colic), बाई ओर अधिक (टेंबाकम; दोनों ओर, साथ मूत्रावेग एवं मूत्रकृच्छ्रता – कैन्थ) । वृक्कों में बुलबुले फटने जैसी अनुभूति (मेडौर) । मूत्र हरा, रक्तिम लाल होने के साथ गाढ़ा, चिपचिपा श्लेष्मा; पारदर्शक, लाल अथवा लप्सी जैसे तलछट के साथ । गति करने से मूत्र-विकार उत्पन्न हो जाते हैं या बढ़ जाते हैं ।
सम्बन्ध –
- वृक्कशूल में केन्थरिस, लाइको, सार्सा, टॅबाक के समान ।
- आमवाती रोगों में आर्निका, ब्रायो, काली-बाइ, रस-टा, सल्फ के बाद उत्तम क्रिया करने वाली ।
रोगवृद्धि – गति करने, चलने-फिरने अथवा वाहन की सवारी करने से; किसी प्रकार की आकस्मिक गति करने से।