एलियम सेपा | Allium Cepa

एलियम सेपा | Allium Cepa

बहुत ज्यादा स्त्राव होने के साथ श्लैष्मिक झिल्लियों का प्रतिश्यायी प्रदाह । प्रतिश्यायजनित मन्द मन्द सिरदर्द के साथ ही नजला शाम के समय बढ़ता है और खुली हवा में घटता है; गर्म कमरे में वापस आने पर बढ़ जाता है (यूफ्रेशिया और परसाटिला से तुलना कीजिए)।

आर्तवस्त्राव के दौरान सिरदर्द बन्द हो जाता है किन्तु स्त्राव बन्द होते पुनः लौट आता है (लैकेसिस, जिकम) ।

नेत्र – आंखों में धुआं लगने जैसी जलन, दांतों से काट दिये जाने जैसी पीड़ा और चसचसाहट होती है, मजबूर होकर आँखों को मलना पड़ता है, आंखें तर और फूली हुई रहती है, केशिकायें लाल रहती हैं और अत्यधिक अश्रुपात होता है ।

नजला – नाक से विपुल परिमाण में पनीला और तीखा स्राव होता है; साथ ही आंखों से विपुल परिमाण में सौम्य अश्रुपात होता है (नेत्रों से विपुल परिमाण में तीखा स्त्राव, नाक से सोम्य और पतला स्त्राव – यूफ्रेशिया) । नाक की नोक से तीखा, पनीला स्त्राव टपकता रहता है (आर्सेनिक, आर्से-आयो); बसन्त ऋतु के दौरान प्रकट होने वाला नजुला – उत्तर पूर्वी तर हवा लगने के बाद ; स्त्राव नाक और ऊपर वाले होंठ में जलन पैदा कर देता है और उनकी त्वचा छील देता है।

परागज ज्वर – हर साल अगस्त के महीने में; बिस्तरे से उठने पर बहुत जोर की छींकें आती हैं; सतालुओं (Peaches) का रख-रखावे करने से ।

नासाबुर्द (नाक के भीतर का गूमड़ – (मैरम-वेण, सेग्वीनेरिया, नाइट्रि, सोराइनम) ।

प्रतिश्यायजनित स्वरयन्त्र का प्रदाह; खाँसी आने पर रोगी को बाध्य होकर स्वरयन्त्र को हाथ से कसकर पकड़ना पड़ता है; ऐसा महसूस होता है जैसे खाँसी उसे फाड़ डालेगी !

उदर शूल (colic) – पैर भीगने के कारण सर्दी लग जाने से बहुत ज्यादा खा लेने से, खीरा, ककड़ी या सलाद खाने से बवासीर के कारण। बच्चों का उदरशूल – दर्द बैठे रहने पर बढ़ जाता है और या इधर-उमर घूमने पर घट जाता है।

मुखमण्डल, मस्तकं, ग्रीवा और वक्ष में एक लम्बे धागे जैसी अनुभूति के साथ गतिशील रहने वाला स्नायुशूल ।

चोटमूलक जीर्ण तंत्रिकाशोथ शल्यक्रिया के बाद अवशिष्ट घाव पर होने वाला स्नायुशूल; जलन और वंशज पीड़ा।

अंगुलबेढा – जिसमें ऊपर की ओर भुजाओं तक लाल-लाल रेखायें पड़ जाती है दर्द के कारण निराशा घेर लेती है; प्रसूतिकावस्था के दौरान।

पैरों पर खासकर एड़ी में रगड़ पड़ जाने के कारण यंत्रापूर्ण और खाल उधड़े दाग; जब पैर रगड़ खाकर यंत्रणापूर्ण हो जाते हैं, उस समय खास तौर से लाभप्रद – डायस्फोराइडिस ।

शिरा-प्रदाह प्रसवोत्तर, विशेषतः जब यंत्रों की सहायता से प्रसव कराया गया हो ।

सम्बन्ध

  • फास्फोरस, पल्साटिल्ला, थूजा पूरक औषधियाँ हैं ।
  • नासिकाबुर्द में कल्केरिया और सिलीका से पहले उपयोगी है ।
  • यूफ्रेशिया के सदृश है, परन्तु नाक की सर्दी और आंसुओं में पूर्ण विरोधाभास है।
  • भीग जाने के दुष्परिणाम में रस टाक्स के समान है ।

रोगवृद्धि – विशेषकर सन्ध्या के समय और गर्म कमरे में (पल्साटिल्ला; खुली हवा में यूफ्रेशिया) ।

रोगहास – शीतल कमरे में और खुली हवा में (पल्साटिल्ला) ।

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