पिकरिक एसिड | Picric Acid

पिकरिक एसिड | Picric Acid

बहुधा दुर्बल एवं जर्जर शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली स्नायु अवसाद का एक स्पष्ट चित्रण (काली-फास्फो) । उन्नत, सांघातिक रक्ताल्पता; तंत्रिकावसाद ।

मनोभ्रान्ति – साहित्यकारों अथवा व्यापारियों की; अल्पतम उत्तेजना, मानसिक परिश्रम अथवा कार्य की अधिकता से सिरदर्द हो जाता है, फलस्वरूप मेरुदण्ड में जलन पैदा हो जाती है (काली-फास्फो) ।

सिरदर्द – विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा अत्यधिक कार्यनिरत व्यापारियों का; शोक अथवा अवसादी मनोवेगों से पश्चकपालीय ग्रीवा प्रदेश में (नेट्र-म्यूरि, साइली) अल्पतम गति अथवा मानसिक भ्रम से वृद्धि अथवा उसके फलस्वरूप ।

कष्टकर लिंगोत्थान, साथ ही मेरुदण्ड की रुग्णता; लिंगोत्थान प्रबल, दीर्घस्थायी; विपुल वीर्यपात पुरुषों में कामोन्माद (कैन्थ, फास्फो) ।

शरीर के किसी अंश में छोटे-छोटे फोड़े, किन्तु विशेष रूप से वाह्य श्रवण नली में नहीं।

मेरुदण्ड में जलन तथा मेरुदण्ड और पीठ की भारी दुर्बलता मेरु-रज्जु की कोमलता (फास्को, जिंक) ।

थकान, जो गति करने पर हल्की-सी क्लान्ति की अनुभूति के साथ बढ़ती है और पूर्ण पक्षाघात में परिवर्तित हो जाती है।

सारे शरीर में थकान और भारीपन की अनुभूति, विशेष रूप से हाथ पैरों की शारीरिक श्रम से वृद्धि ।

सम्बन्ध – आज-नाइ, जेल्सी, काली-फास्फो, फास्को-एसिड, फास्फो, पेट्रोलि एवं साइली से तुलना कीजिये ।

रोगवृद्धि – हल्का-सा मानसिक श्रम करने, हिलने-डुलने अध्ययन करने से भीगे मौसम में ।

रोगह्रास – ठण्डी हवा और ठण्डे पानी से ।

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