नक्स वोमिका | Nux Vomica

नक्स वोमिका | Nux Vomica

दुबले-पतले चिड़चिड़े सावधान, ईर्ष्यालु व्यक्तियों के लिये, जिनके काले केश रहते हैं एवं जिनकी पित्त अथवा रक्तप्रधान प्रकृति रहती है। झगड़ालू दूसरे से घृणा करने वाले, बुरी भावना से ओत-प्रोत स्नायविक एवं विषादग्रस्त ।

व्यभिचारी, जो दुबले-पतले रहते हैं तथा जिनका चिड़चिड़ा एवं स्नायविक स्वभाव होता है; अजीर्ण एवं रक्ताशों से पीड़ित रहने वाले (हल्के केशों तथा नीले नेत्रों वाले व्यक्ति – लोबेलिया) ।

नक्स उन उत्साही व्यक्तियों के लिये प्रमुख रूप से उपयोगी है जो चिड़चिड़े और अधीर स्वभाव वाले होते हैं तथा जिनमें क्रुद्ध होने की प्रवृत्ति पाई जाती एवं जो दूसरों से घृणाभाव रखते हैं अथवा दूसरों को धोखा देते हैं ।

अधीरता के साथ चिड़चिड़ापन तथा आत्महत्या करने की प्रवृत्ति, किन्तु मृत्यु से भय खाता है।

रोगाभ्रमि – साहित्यिक, कठोर अध्ययन करने वाले व्यक्ति जो अधिकाधिक समय घर में ही व्यतीत करते हैं, अतः शारीरिक व्यायाम के अभाव में कष्टों से घिरे रहते हैं, साथ ही पाचन एवं उदर पीड़ित रहते हैं; विशेष रूप से मदिरापान करने वाले व्यक्तियों में ।

अतिसम्वेदनशीलबाहरी प्रभावों के प्रति; शोरगुल, गन्ध, प्रकाश

अथवा संगीत के प्रति (नक्स-मास्के) हल्की-सी रोगावस्था भी असह्य (कमो) प्रत्येक अहानिकारक शब्द भी उसके असन्तोष का कारण बन जाता है (इग्ने)

अत्यधिक नियमबद्ध एवं सावधान व्यक्ति, किन्तु सहज ही उत्तेजित अथवा क्रुद्ध होने का स्वभाव वे इतने ढीठ होते हैं कि उन्हें किसी तरह ; भी सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता।

दुष्परिणाम – कॉफी, तम्बाकू, मदिरा, चटपटे मसालेदार अथवा गरिष्ठ भोजन किये जाने के; अधिक खाना खाने के (एण्टि-क्रुड) दीर्घकालीन एवं अत्यधिक मानसिक परिश्रम करने के; सीमित स्थान पर बैठे-बैठे काम करने के; जागते रहने के (कक्कू, काल्चि, नाइ-एसिड); सुगन्धित अथवा पेटेण्ट औषधियों के; ठण्डे पत्थरों पर बैठने के विशेष रूप से गर्म जलवायु में ।

ऐसे रोगियों की चिकित्सा आरम्भ करने में एक सर्वाधिक उपयोगी औषधि जिन्हें अनेक प्रकार की औषधियों के मिश्रण को विपुल मात्रा में सेवन कराया गया हो अथवा उन्हें कड़वी औषधियां जड़ी-बूटियों से निर्मित गोलियां, गुप्तीषधियाँ अर्थात नीम हकीमों द्वारा तैयार की गई दवाइयाँ, विशेष रूप से सुगन्धित अथवा ” गर्म औषधियाँ” दी गई हों, किन्तु तभी जब लक्षणों की सदृशता पाई जाय

आक्षेप, साथ ही चेतनावस्था (स्ट्रिक) क्रोध, मनोवेग, स्पर्श, गति, आदि से वृद्धि ।

दर्द चुभनशील, कोंचने वाले, कठोर, कसकपूर्ण, जिनमें गति एवं स्पर्श द्वारा वृद्धि होती है।

मूच्छित होने की प्रवृत्ति (नक्स-मास्के, सल्फ); गन्ध से; प्रातः काल खाने के बाद; प्रसव पीड़ा के बाद प्रत्येक बार ।

शाम को जब बैठा रहता है अथवा सोने से कई घण्टे पहले जब पढ़ता रहता है तो किसी तरह नींद नहीं रोक पाता (अतः सो जाता है), तथा प्रातः 3-4 बजे जागता है; भोर होते ही पुनः स्वप्निल निद्रा में डूब जाता है, जहां से उसे जगाना कठिन होता है, तदुपरान्त (जब जागता है तो स्वयं को) थका हुआ और दुर्बल महसूस करता है (पल्सा के विपरीत) ।

प्रतिश्याय – शिशुओं को आक्रान्त करने वाला, जिसमें वे नाक से बोलते हैं (एमो-कार्बो, सम्बू); नजला, रात को शुष्क, दिन में बहने वाला गर्म कमरे में बढ़ता है, खुली हवा में कम होता है; ठण्डे स्थानों तथा पत्थरों की सीढ़ियों पर बैठने से ।

डकारें – खट्टी, कड़वी; नित्य प्रातः काल मितली और वमन के साथ आत्म-नैराश्य; खाने के बाद ।

मितली – निरन्तर खाने के बाद प्रातःकाल धूम्रपान से और महसूस करता है, “यदि मैं वमन कर सकता तो मुझे कुछ आराम मिल जाता ।”

आमाशय – खाना खाने के 2-3 घण्टे बाद दबाब जैसे कोई पत्थर रखा हुआ हो (तुरन्त बाद काली-बाइ, नक्स मास्क अम्लिकोद्गार (Pyrosis), अकड़न, वस्त्रों को ढीला करना पड़ता है; भोजन के दो-तीन घण्टे बाद मानसिक कार्य नहीं कर सकता; रात का खाना खाने के बाद तन्द्रालु अधीरता चिन्ता, ब्रण्डी, कॉफी, औषधियों, रात्रि जागरण, उच्च जीवन-यापन से ।

मलबद्धता के साथ निरन्तर किन्तु निष्फल इच्छा, मल अत्यल्प मात्रा में निकलता है (ऊर्ध्व उदर में – इग्ने, बेराट्र); लगता है जैसे पूरा मल नहीं निकल पाया । मलत्याग की निरन्तर इच्छा; अधीर, निष्फल, मलत्याग के बाद थोड़ी देर के लिये आराम; प्रातः काल जागने पर; मानसिक परिश्रम के बाद (निष्क्रिय, इच्छा ही नहीं होती – ब्रायो, ओपि, सल्फ) | मलबद्धता एवं अतिसार का पर्यायक्रम (सल्फ, बेराट्र); ऐसे व्यक्तियों में, जिन्होंने आजीवन रोचक औषधियों का प्रयोग किया है ।

ऋतुस्राव – नियत समय से पहले, प्रचुर परिमाण में, बहुत दिनों तक गतिशील रहने वाला; अथवा कई दिनों तक गतिशील रहने के साथ, आरम्भ में अनेक कष्ट जो बाद में भी रहते हैं, हर दो सप्ताह बाद अनियमित, निश्चित समय पर कभी नहीं; रुक जाता है और पुनः आरम्भ हो जाता है (सल्फ) ; ऋतुस्राव के दौरान और बाद में पुराने लक्षणों में वृद्धि।

प्रसव पीड़ाप्रचण्ड, ऐंठनयुक्त; फलस्वरूप मल अथवा मूत्र त्याग की निरन्तर इच्छा; पीठ में अधिक गर्म कमरा चाहती है।

विपाशित आत्रच्युति (Strangulated hernia), विशेष रूप से नाभि की ।

पृष्ठवेदना – बैठना पड़ता है या करवट बदलनी पड़ती है; कटि वेदना; हस्तमैथुन के फलस्वरूप प्रकट होने वाले लैंगिक दौर्वल्य से ।

ठण्ड अथवा ठण्डी हवा से घृणा हल्की-सी गति करने से ही ठण्ड लगने लगती है; उघौड़ा रहने से; ज्वर की प्रत्येक अवस्था में वस्त्र ओढ़ कर रहना पड़ता है – शीत, ताप अथवा स्वेदन |

ज्वर – अत्यधिक गर्मी, सारा शरीर जलता हुआ गर्म (ऐकोना), चेहरा लाल और तपा हुआ (बेला), फिर भी रोगी न गति कर सकता है न उघोड़ा रह सकता है क्योंकि उसे इतनी अधिक ठण्ड महसूस होती है।

सम्बन्ध

  • लगभग समस्त रोगावस्थाओं में सल्फर से पूरक सम्बन्ध ।
  • -जिकम से प्रतिकूल सम्बन्ध है, अतः इसका प्रयोग न तो पहले करना चाहिये न बाद में।
  • आर्से, इपिका, फास्फो, सीपिया तथा सल्फर के बाद उत्तम क्रिया करती है।
  • इसके बाद ब्रायो, पल्सा और सल्फर की प्रभावी क्रिया होती है।

नक्स का प्रयोग विश्राम की तैयारी करते समय अथवा इससे भी बढ़कर, सोने से कई घण्टे पहले करना चाहिये; यह मन एवं शरीर की शान्त अवस्था के दौरान सर्वोत्तम क्रिया करती हैं।

रोगवृद्धि – प्रातःकाल प्रातः काल 4 बजे जागने पर; मानसिक परिश्रम; खाने या अधिक खाने के बाद; स्पर्श, शोरगुल, क्रोध, मसाले, मादक पदार्थ, शुष्क जलवायु; ठण्डी हवा में ।

रोगह्रास – शाम को, विश्राम करते समय लेटने पर तथा नमीदार भीगे मौसम में ।

नक्स मास्केटा | Nux Moschata

स्नायविक वातोन्मादी स्वभाव वाली स्त्रियों तथा बच्चों के लिए विशेष उपयोगी (इग्ने) ऐसे व्यक्तियों के लिये जिनकी शुष्क त्वचा रहती है और जिन्हें पसीना कदाचित ही हो पाता है । गर्भावस्था के दौरान प्रकट होने वाली रोगावस्यायें । वृद्धावस्था की दुर्बलता वृद्धों को होने वाला अग्निमांद्य । प्रकाश, श्रवण, गन्ध एवं स्पर्श के प्रति अत्यन्त सूक्ष्मग्राही ।

समस्त रोगावस्थाओं के साथ ऊँध और तन्द्रा (एण्टि-टार्ट, ओपि) अथवा हल्के से दर्द से भी मूच्छित होने की प्रवृत्ति (हीपर); वेदनाओं के कारण तन्द्रा घरे रहती है। जड़िमा और निश्चेतना; अजेय निद्रा । बुद्धिहीन सोच नहीं सकता प्रत्येक वस्तु से भारी विरक्ति । दुर्बलता और स्मरण शक्ति का अभाव (एनाका, लैक-कैना, लाइको) । पढ़ते समय, बात-चीत करते समय अथवा लिखते समय विचार-शक्ति का लोप गलत शब्दों का प्रयोग करता है सुपरिचित गल्तियों को नहीं पहचान पाता (कैना-इण्डि, लैके)

परिवर्तनशील स्वभाव; अभी हँसता रहता है, तो अगले ही क्षण रोना आरम्भ कर देता है (काक, इग्ने); गम्भीर अवस्था से एकाएक प्रसन्नता अथवा विनोदप्रिय अवस्था से गम्भीरता (प्लेटी) ।

नेत्रों की रूक्षता; नेत्र इतने अधिक शुष्क रहते हैं कि पलकों को बन्द नहीं किया जा सकता ।

मुख की अत्यधिक रूक्षता (एपिस, लैके); जिह्वा इतनी अधिक शुष्क रहती है कि तालु से चिपक जाती है; लार रुई जैसी प्रतीत होती हैं; कण्ठ शुष्क अकड़ा हुआ, प्यास का अभाव (पल्सा) । वास्तविक प्यास के बिना तथा जिह्वा की यथार्थ रूक्षता के बिना भारी रूक्षता की अनुभूति ।

शरीर के जिस किसी भाग का सहारा लेकर लेटता है उसमें ही भारी दुखन होने लगती है (बेप्टी, पाइरो); शय्याक्षत उत्पन्न होने की प्रवृत्ति ।

जरा-सा अधिक खाने से सिर दर्द हो जाता है; खाते समय अथवा खाते ही तुरन्त आमाशय के अन्दर दर्द एवं वेदना (काली-बाइ) । खाना खाने के बाद प्रत्येक उदर बुरी तरह फूल जाता है ।

अतिसार – ग्रीष्म ऋतु में; ठण्डे पेय पदार्थों के सेवन से, शरद ऋतु की महामारी में, श्वेत मल (काल्चि), उबाला हुआ दूध पीने से दन्तोदगम के दौरान गर्भावस्था के दौरान तन्द्रा और मूर्च्छा के साथ शरद ऋतु से, महामारी के दौरान, श्वेत, दुर्गन्धित (काल्चि) ।

ऋतुस्राव के दौरान प्रत्येक बार मुख, कष्ठ एवं जिह्वा अत्यन्त शुष्क, विशेष रूप से निद्रावस्था में।

ऋतुस्राव के बदले प्रदरस्राव (काक्कू) रोगी जब सोकर जागता है तो उसकी जिह्वा शुष्क रहती है (लैक); जरायुविस्फार (लेक-कैना, लाइको) ।

गर्भावस्था के दौरान दर्द, मितली और वमन; निरोध का प्रयोग करने से ।

कण्ठ की आकस्मिक कर्कशता, जो सामने से आती हुई हवा में चलने से बढ़ जाती है (यूफ्रे, हीपर)।

खाँसी विस्तरे की गर्मी से शरीर अत्यधिक तप जाने से, गर्भावस्था के दौरान (कोनि) नहाने से; पानी के अन्दर खड़े होने से ठण्डे नमीदार स्थानों पर रहने से (नेट्र-सल्फ्यू); खाने के बाद बलगम युक्त, पीने के बाद शुष्क ।

निद्रा – असहनीय ऊँघ, तन्द्रालु, उन्मत्त, जैसे शराब पी रखी हो; सन्यास (Coma ), शान्त लेटा रहता है, अचल, आँखें हर समय बन्द रहती हैं (खर्राटे दार श्वास के साथ – ओपि) |

आमवाती रोग – पैर भिगोने से तपी हुई अवस्था में ठण्डी हवा का झोंका लगने से (ऐको, ब्रायो) ठन्डे, भीगे मौसम में अथवा भीगे हुए वस्त्रों से वृद्धि (रस); बायें कन्धे का (फेरम ) ।

किसी वाहन की सवारी करते समय पृष्ठवेदना । थकान, हल्का-सा परिश्रम करने के बाद लेटना पड़ता है ।

सम्बन्ध – पारद की गन्ध सूंघने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले रोगों, सीसाजनित उदरशूल, तारपीन के तेल, स्पिरिट निर्मित मदिराओं तथा विशेष कर गन्दी यवसुरा के बुरे प्रभावों को नक्स मास्केटा नष्ट करती है।

रोगवृद्धि – शीतल, भीगा हुआ तेज हवादार मौसम (रोडो ) जलवायु परिवर्तन; ठण्डा भोजन, पानी और ठण्डे पानी से धुलाई करना; वाहन चलाना (काक्कू); पीड़ाग्रस्त पार्श्व के सहारे लेटना (पीड़ाहीन पार्श्व के सहारे लेटना – पल्सा) ।

रोगाह्रास – शुष्क धर्म जलवायु में गर्म कमरा; शरीर को गर्म वस्त्रों अच्छी तरह लपेटने से ।

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