कैक्टस ग़्रेण्डिफ्लोरस | Cactus Grandiflorus
रक्तप्रधान प्रकृति वाले व्यक्तियों में बहुरक्तसंचय (ऐकोना), फलस्वरूप रक्तस्राव की बहुलता रहती है; रक्तप्रधान अपसन्यास (sanguineous apoplexy) । मृत्यु का भय विश्वास कर लेता है कि उसका रोग असाध्य है (आर्से)।
रक्तस्राव – नाक से फुफ्फुसों से आमाशय से मलाशय से मूत्राशय से (क्रोटे, मिलिफो, फास्फो) ।
सिरदर्द – ऐसा दबाव महसूस होता है जैसे कपालशीर्ष के ऊपर कोई भारी बोझा रखा हुआ हो (दबाव से आराम-मेन्यान्थस) रजोनिवृत्तिकालीन (ग्लोना, लैके) । सिरदर्द एवं तंत्रिकाशूल; रक्तसंलयी, सावधिक, दक्षिणपार्श्वी, उग्र, धड़कनशील, स्पन्दी (pulsating) पीड़ा। लगता है जैसे सारा शरीर पिंजरे में बन्द हो और उस पिंजरे का प्रत्येक तार निरन्तर कसा जा रहा हो ।
सिकुड़न – कण्ठ की, वक्ष की, हृदय की, मूत्राशय की, मलाशय की, जरायु, की योनि की; बहुधा हरके से स्पर्श द्वारा भी इस सिकुड़न की अनुभूति हो जाती है ।
वक्षरोध, जैसे कोई भारी बोझा रखा हुआ हो; जैसे कोई लोहे की पट्टी उसकी सामान्य गति को रोक रही है। ऐसा अनुभव होता है जैसे वक्ष के निचले भाग में चारों ओर किसी रस्सी को कस कर बांध दिया गया हो, जिससे लगता है जैसे मध्यच्छद (diaphragm) वक्ष से जुड़ गया हो ।
हृदय – लगता है जैसे किसी लोहे के हाथ द्वारा जल्दी-जल्दी जकड़ा और छोड़ा जा रहा हो; जैसे जकड़ा हुआ हो “धड़कने के लिये स्थान का अभाव हो ।”
सारे शरीर में पीड़ा; बरमा घुमा दिये जाने जैसी, जंजीर की तरह उछलती हुई, बिजली की कौंध के समान और एक प्रकार की तेज, शिकंजे की जकड़न के साथ समाप्त होने वाली प्रत्येक बार ऐसी ही पुनरावृत्ति होती है ।
लेटने पर ऋतुस्राव बन्द हो जाता है (बोविस्टा, कास्टिकम)
धड़कन – दिन और रात टहलने तथा बाईं ओर लेटने से वृद्धि (लेके); ऋतुस्राव आरम्भ होने पर ।
प्रातःकाल 11 बजे तथा रात को 11 बजे ज्वरावेग पुनः प्रकट हो जाता है ।
सम्बन्ध – ऐकोना, डिजिटे, जेल्सी, काल्मिया, लैकेसिस, टैबकम से तुलना कीजिये ।