बोरेक्स | Borax
प्रायः सभी रोगोपसर्गों में निम्नाभिमुखी गति का भय । निम्नाभिमुखी गति से भारी अधीरता; शय्या अथवा पालने में लिटाते समय बच्चा रोने लगता है और परिचारिका से चिपट जाता है; पालने में हिलाने डुलाने पर नाचते समय, झूलते समय, सीढ़ियों से नीचे उतरते समय अथवा पहाड़ी से जल्दी – 2 नीचे की ओर आते समय, घोड़े की पीठ पर सवारी करते समय भारी अधीरता और भय की स्थिति बनी रहती है (सैनीक्यूला से तुलना कीजिये) । बच्चे अचानक जाग पड़ते हैं, चीख मारते हैं और पालने के किनारों को पकड़ लेते हैं, यद्यपि इसका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं होता (एपिस, सीना, स्ट्रामो) ।
अत्यन्त स्नायविक, अल्पतम शोरगुल होने अथवा किसी अस्वाभाविक प्रकार की तीखी ध्वनि सुनाई देने, खांसने छींकने, चीखने, माचिस की तिल्ली जलाने, आदि से सहज ही भयभीत हो जाता है (असारम, कैलेडियम) ।
केश गन्दे हो जाते हैं और उलझ जाते हैं; बिखर जाते हैं; सिरे पर आपस में चिपक जाते हैं; यदि उलझें हुए गुच्छों को काट दिया जाय तो वे पुनः उलझ जाते हैं, सुविधापूर्वक कंधी नहीं की जा सकती (फ्लोरि-एसिड, लाइको, सोराइ, टुबर)।
आखों की बरौनियाँ – शुष्क होने के साथ भरी हुई गोंद जैसे निःस्राव से युक्तः प्रातःकाल चिपकी हुई पाई जाती हैं; अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं और आँखों, विशेष रूप से बाहरी कोणों में प्रदाह पैदा कर देती हैं; केशों के रूखा होते चले जाने की प्रवृत्ति ।
नासापक्षक (nostrils) अर्थात् नथुने पपड़ीदार, प्रवाहित नाक की नोक चमकीली लाल; युवा स्त्रियों की लाल नासिकायें (noses) । दायां नथुना बन्द, अथवा पहले दायां फिर बायां नथुना बन्द होने के साथ निरन्तर नाक बहते रहना (एमो-कार्बो, लैक-कैनी, मैग्नी-म्यूरि) ।
छाले – मुख के अन्दर जिह्वा के ऊपर, गालों के अन्दर खाते समय या स्पर्श करने पर उनसे सहज ही रक्तस्राव होने लगता है; बच्चा स्तनपान तक नहीं कर पाता; साथ ही तपनयुक्त मुख, रूक्षता एवं प्यास (आर्से) फटी हुई एवं रक्तस्रावी जिह्वा (एरम) लारमयता, विशेष रूप से दन्तोद्गम के दौरान। छालेदार दाहक मुख; स्पर्श करने, नमकीन पदार्थ खाने अथवा खट्टा भोजन करने से दुखन और जलन बढ़ जाती है; वृद्ध व्यक्तियों का बहुधा दन्त बीज से (एलूमेन ) ।
बच्चे को निरन्तर मूत्रत्याग की शिकायत बनी रहती है; मूत्रोत्सर्जन से पहले वह चीख मारता है (लाइसीन, सेनीक्यूला, सार्सापैरिल्ला)
श्वेतप्रदर – विपुल परिमाण में, अन्नसारमय; लसलसा होने के साथ ऐसा महसूस होता है जैसे नीचे की ओर गर्म पानी बह रहा हो (बोविस्टा और कोनियम से तुलना कीजिये) ।
त्वचा – अस्वस्थ, हल्की-सी चोट भी पक जाती है (कैलेण्ड, हीपर, मर्क्यू, सिलीका) ।
सम्बन्ध –
- बोरेक्स के बाद कल्केरिया, सोराइनम, सैनीक्यूला और सल्फर की उत्तम क्रिया होती है ।
- आर्सेनिक, ब्रायो, लाइको, फास्फो एवं सिलोका के बाद बोरेक्स की उत्तम क्रिया होती है।
- विरोधी – असेटिक एसिड, सिरका और शराब से पहले तथा इनके बाद बोरेक्स का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए ।
रोगवृद्धि – निम्नाभिमुखी गति से, एकाएक हल्का-सा शोरगुल होने से; धम्रपान करने से, जो अतिसार की अवस्था उत्पन्न कर सकता है; नमीदार, ठण्डे मौसम में; मूत्रोत्सर्जन से पूर्व ।
रोगह्रास – दबाव देने से पीड़ाग्रस्त पार्श्व को हाथ से पकड़ने पर ।