ऐकोनाइटम नेपेलस | Aconitum Napallus

ऐकोनाइटम नेपेलस | Aconitum Napallus

इस औषधि का प्रयोग उन युवा व्यक्तियों, विशेषतया उन पूर्ण, रक्तबहुल प्रकृति की युवतियों को आकान्त करने वाले तरुण अथवा नूतन रोगों में किया जाता है, जो शारीरिक श्रम नहीं करतीं अथवा इसका उपयोग ऐसे व्यक्तियों के लिये किया जाता है जिन पर जलवायु परिवर्तन का तुरन्त प्रभाव पड़ता है; जिनके केश और नेत्र काले तथा पेशी तन्तु कठोर होते हैं।

रूखी और ठण्डी हवा, सूखी उत्तरी या पश्चिमी हवा के अनावरण द्वारा अथवा स्वेदन काल में ठण्डी हवा लग जाने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग; पसीना रोक दिये जाने का कुफल ।

बहुत ज्यादा भय और मानसिक अधीरता के साथ भारी स्नायविक उत्तेजना; घर के बाहर निकलने तथा ऐसी भीड़-भाड़ में जाने का भय जिसमें किसी प्रकार का उत्तेजित वातावरण हो अथवा बहुत से लोग हों; सड़क पार करने का भय ।

चेहरे से ही पता लग जाता है कि वह डरा हुआ है; भय के कारण जीवन दूभर हो जाता है; पक्का विश्वास कर लेता है कि उसका रोग घातक सिद्ध होगा ; अपनी मृत्यु के दिन की भविष्यवाणी कर देता है; गर्भावस्था में के दौरान मृत्यु का भय बना रहता है।

बेचैन, अधीर, प्रत्येक कार्य में शीघ्रता करता है; स्थिति परिवर्तन के लिये बहुधा बाध्य होना पड़ता है। हर चीज से चौंक पड़ता है।

दर्द – ऐसा होता है कि जिसको रोगी सहन नहीं कर पाता, दर्द से पागल-सा हो जाता है; बेचैन हो उठता है; रात को ज्यादा दर्द अनुभव करता है ।

हैनीमैन कहते हैं – जब कभी होम्योपैथिक सदृश-विधान के अनुसार ऐकोनाइट का निर्देश होता है तो आपको सबसे पहले मानसिक लक्षणों पर ध्यान देना चाहिये और भली-भांति आश्वस्त हो जाना चाहिये कि यह उससे पूर्ण सदृशता रखती है। इससे मन और शरीर की तड़पन, अनस्थिरता, एवं अशान्ति को ही प्रशमित नहीं करना चाहिये ।

मानसिक अधीरता, चिन्ता, और भय जैसी अवस्थायें हल्के से हल्के उपसर्ग के साथ भी गतिशील रहती हैं।

संगीत सहन नहीं होता, यह रोगिणी को उदास कर देता है (सेबाइना ऋतुस्राव के समय – नेट्रम-कार्बो)

लेटी हुई अर्थात् अर्द्धशायित अवस्था से उठने पर लाल चेहरा मुर्दे की तरह पीला पड़ जाता है या रोगी बेहोश हो जाता है या उसका सिर चकरा जाता है और वह गिर पड़ता है, और वह सिर को पुनः ऊपर उठाने से भय खाता है ; इसके साथ ही बहुधा देखने की शक्ति समाप्त हो जाती है और वह बेहोश हो जाता है ।

रक्तबहुल प्रकृति की युवा लड़कियों में अनार्तव की स्थिति; डर जाने के बाद ऋतुस्राव रुक जाने जैसी अवस्था को दूर करने के लिये यह अमोघ है।

प्रदाह की रक्तसंचयी अवस्था का किसी एक स्थान पर केन्द्रित होने से पहले प्रयुक्त की जाने वाली औषधि ।

ज्वर : त्वचा शुष्क एवं तप्त – चेहरा लाल या पर्यायक्रम से पीला और लाल; ठण्डे पानी की अत्यधिक प्यास, जिसमें रोगी पानी अधिक मात्रा में पीता है; तीव्र स्नायविक व्याकुलता, अनस्थिरता, कष्ट के मारे छटपटाया करता है; शाम के वक्त और सोते समय व्याकुलता एकदम असहनीय हो जाती है।

आक्षेप – दांत निकालते हुए बच्चों की अकड़न एकल पेशियों में गर्मी, झटके और स्फुरण बच्चा अपनी मुट्ठी दांतों से काटता है, चिढ़ता है और चीखता-चिल्लाता है; त्वचा सूखी और गर्म अत्यधिक रहती है तथा शरीर अत्यधिक तपा हुआ अर्थात् उच्च तापमान युक्त ज्वर ।

खांसी, क्रुप; सूखी, आवाज बैठ जाती है, दम घुटता है, जोर की आवाज होने के साथ रूसी कर्कश आवाज निकलती है; कठोर खांसी, जिसमें घण्टी या सीटी बजने की तरह आवाज आती है; श्वास छोड़ने पर (कास्टिक श्वास लेने पर स्पांजिया) सूखी, ठण्डी हवा या हवा के झोंके लग जाने के कारण ।

ऐकोनाइट का प्रयोग मात्र ज्वर रोकने के लिये कभी नहीं करना चाहिये । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये कभी किसी दूसरी औषधि के साथ पर्यायकम इसका प्रयोग कभी नहीं करना चाहिये। अगर रोगी को एकोनाइट की ही आवश्यकता होगी तो कभी किसी दूसरी औषधि की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी; ऐकोनाइट ही उस रोगी को आरोग्य कर देगी।

इसका निर्देश जब तक किसी उत्तेजक कारणं से नहीं होता, तब तक टाइफायड की प्रारम्भिक अवस्था में यह लगभग हमेशा नुकसान पहुँचाती है ।

रोगवृद्धि – सन्ध्या और रात में दर्द सहन नहीं होता; गरम कमरे में; बिछावन से सोकर उठते समय; रोगग्रस्त पार्श्व के सहारे लेटने पर (हीपर, नक्स – मास्के) ।

रोगहास – खुली हवा में (एलूमिना मैग्नी-कार्बो, पल्सा, सेबाइना) ।

सम्बन्ध :

  • ज्वर, अनिद्रा, असह्य पीड़ा में काफिया की अनुपूरक
  • चोट में अर्निका की और
  • सभी रोगों में सल्फर की पूरक;
  • जिन ज्वरों में उद्भेद निकलते हैं, उनमें शायद ही कभी इसका निर्देश होता है ।
  • जिन नयी बीमारियों में ऐकोनाइट का प्रयोग होता है उनकी जीर्णावस्थाओं में सल्फर का व्यवहार होता है तथा प्रदाहक अवस्थाओं में दोनों ही एक दूसरे की पूरक हैं।

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