मधुमेह, एनिमिया का होम्योपैथिक इलाज

मधुमेह, एनिमिया का होम्योपैथिक इलाज

बहुमूत्र या मधुमेह (Diabetes)

इस रोग में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है और मूत्र बार-बार होता है इसे ‘मधुमेह’ कहते हैं । मधुमेह में मूत्र के साथ चीनी भी मौजूद रहती है। मधुमेह में रोगी धीरे-धीरे दुर्बल हो जाता है । इस रोग के रोगी को जख्म हो जाएं तो जल्दी नहीं भरते । कभी-कभी सड़ भी जाते हैं । रोग बढ़ने पर भूख नदारद, दुबलापन, पैरों में सूजन, काम वासना का बढ़ना, क्षय, खांसी, फेफड़े की सूजन, दिन-रात में बहुत अधिक पेशाब, आदि लक्षण पाए जाते हैं।

1. प्रमुख दवा ।

  • सिज्रीजियम जैंबो Q, दिन में 4 बार

2. पेशाब में जलन व एल्बुमिन ।

  • टैरेबिंध Q, ८-10 बूंद दिन में 4 बार

3. हाथ पैरों में जलन, पित्त की अधिकता ।

सिफेलैण्ड्रा इण्डिका Q, दिन में 4 बार

4. बहुमूत्र के साथ जोड़ों में दर्द ।

  • लैक्टिक एसिड 3X या 6 दिन में 3 बार

5. बायोकैमिक औषधि

  • नैट्रम सल्फ 12X व नैट्रम फॉस 12X, दिन में 4 बार

रोगी को खाने में कड़ा परहेज रखना चाहिए। मिठाई और चीनी बिल्कुल बंद कर देनी चाहिए। बेल, मूली, पपीता, जामुन, करेला, मेथी, आदि फायदेमंद हैं। टहलना इस रोग में बहुत लाभदायक है ।

रक्तहीनता (Anaemia)

शरीर में खून की मात्रा कम हो जाये या रक्त कणों (red blood corpuscles) की कमी हो जाये, तब यह रोग हो जाता है। रोगी का चेहरा पीला या सफेद दिखता है।

कारण : सामर्थ्य से अधिक श्रम या विलासिता, भूखा रहना या अपुष्टिकर भोजन खाना नींद न आना या अधिक सोना अधिक खून निकल जाना या खून का न बनना । पाचन क्रिया की गड़बड़ी के कारण ताजा रक्त न बनना आदि ।

लक्षण : भूख कम लगती है ताकत घट जाती है, सिरदर्द, दुबलापन या थुलथुलापन, श्वास कष्ट ।

1. शरीर का रक्त, वीर्य, आदि नष्ट हो जाने के बाद रक्त की कमी हो जाने से बहुत कमजोरी, हाथ पैर ठण्डे ।

  • चाइना 6 या 30

2. थोड़ा बोलने या परिश्रम से रोगी हांफने लगता फैरम है। बेहद कमजोरी। चेहरा कभी लाल कभी पीला।

  • फैरम मैट 3X या 6

3. रति क्रिया की अधिकता की वजह से रक्तहीनता।

  • एसिड फॉस 30
  • बायोकैमिक औषधि: कैल्केरिया फॉस 6X

4. अत्यन्त ठंडा शरीर, रोगी मृत प्रायः पड़ जाता है। बदन पर ठंडा पसीना, धागे सी सूक्ष्म नब्ज ।

  • कार्बो वेज 30

5. बहुत दिन तक मलेरिया रोग भोगने के बाद रक्तहीनता, दुबलापन, शरीर की त्वचा सूखी और रूखी । अधिक नमक खाने की इच्छा ।

  • नैट्रम म्यूर 6, या 30

6. मासिक धर्म की गड़बड़ी की वजह से रक्तहीनता। रोगी को भीतर से बहुत ठंड लगती है पर फिर भी खुली हवा में अच्छा लगता है ।

  • पल्साटिला 30

7. चिड़चिड़ी व क्रोधित स्वभाव की रोगिणी किसी भी काम में दिलचस्पी न होना । दुर्बलता व कमजोरी ।

  • सीपिया 30

बुढ़ापे की ख़ास दवाएं

1. बुढ़ापे में बच्चों की सी हरकत करना बुद्धि हास ।

  • बैराइटा कार्ब 200, IM

2. जब 50 वर्ष की उम्र में ही 80 बर्ष की उम्र लगे, याददाश्त कम शरीर के अंगों का स्वतः हिलना।

  • ऐम्बरा ग्रिजिया Q, 30

 

हिचकी (Hiccough)

पेट की साधारण गड़बड़ी के कारण हिचकी या बच्चों में हिचकी चिन्ताजनक नहीं होती, परन्तु कष्ट अवश्य देती है। तेज बुखार, हैजा, तथा अन्य प्राणघातक बीमारियों में जटिलता के रूप में जो हिचकी पैदा हो जाती है; वह अगर जल्दी ही बंद न हों तो जानलेवा भी हो सकती है।

1. दुःख, निराशा, या मानसिक उद्वेग, बेचैनी और रोते-रोते हिचकी आने लगे । तंबाकू खाने और खाने- पीने के बाद हिचकी आए ।

  • इग्नेशिया 30, दिन में 3-4 बार

2. सब प्रकार की हिचकियों में रामबाण दवा ।

  • जिन्सेंग Q, ५-५ बूंद, हर आधे घंटे बाद

3. हिचकी के कारण सारे शरीर में झटका सा लगना; शाम के समय और खड़े होने पर हिचकी का बढ़ना ।

  • एगैरिकस 6 या 30, आवश्यकतानसार

4. भोजन या धुम्रपान के बाद बार-बार हिचकी और पेट फूलने का एहसास हो ।

  • लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार

5. कब्ज़ व अपच के कारण हिचकी; खाना खाने से बढ़े ।

  • नक्स वोमिका 30 दिन में 4 बार

6. खाने के बाद हिचकी आये ।

  • साइक्लेमन 30, दिन में 3 बार

7. बायोकैमिक औषधि

  • नैट्रम म्यूर 6X, में 3 बार

रोग के मूल कारण का पता लगा कर सही इलाज करें।

उबासियां (जम्हाई) (Yawning)

1. नींद न आए पर उबासियां लगातार आती रहें ।

  • एकोनाइट 30

2. खाना खाने के बाद उबासियां आयें ।

  • लाइकोपोडियम 30

3. सोकर उठने के बाद उबासियां इतनी ज़्यादा कि लगे जबड़ा ही हिल जाएगा ।

  • इग्नेशिया 30, 200

4. उबासियों के साथ शरीर में ठिठुरन महसूस हो।

  • नैट्रम म्यूर 30

4. उबासियों के साथ डकारें भी आयें।

  • सल्फर 30, 200

5. उबासियों के साथ अंगड़ाइयां आयें, लगे कि रोगी सारी रात सो नहीं पाएगा।

  • चैलिडोनियम 6, 30

6. कमर दर्द और बहुत बेचैनी के साथ लगातार उबासियां आयें ।

  • लैकेसिस 30

सूजन (जलोदर) (Dropsy)

किसी विशेष अंग जैसे सिर, हाथ, पेट पर सूजन होने को स्थानीय शोथ (oedema) कहते हैं। सारे शरीर पर सूजन होने पर सर्वांगीण शोथ (anasarca) कहते हैं ।

कारण : जिगर या तिल्ली का बढ़ना, मलेरिया, मासिक धर्म की गड़बड़ी, पुराना अतिसार, आदि । पसीना, पेशाब, या पाखाने का रूकना ।

लक्षण : सूजी हुई जगह नरम हो जाती है दबाने पर उस जगह गड्ढा पड़ जाता है जो धीरे-धीरे भरता है । प्यास, त्वचा खुश्क, अरूचि, पेशाब में लाली, सांस लेने में कष्ट, आदि ।

1. प्यास बिल्कुल नहीं। त्वचा खुश्क, पीली मोम जैसी; पेशाब बहुत थोड़ा। गर्मी में कष्ट बढ़ता है; ठंडक से आराम आता है । शरीर में डंक मारने जैसा दर्द ।

  • एपिस मैल 6 या 30

2. तेज प्यास, पर पानी पीते ही उल्टी हो जाती है। ठंड अच्छी नही लगती ।

  • एपोसाइनम Q

3. कहीं भी सूजन होने पर उपयोगी ।

  • थ्लास्पी बी. पी. Q

4. गुर्दे में विकार आने की वजह से सूजन ।

  • टैरेबिन्ध Q

5. बेचैनी, परेशानी प्यास ज़्यादा छाती दिल, जिगर, तथा गुर्दे की बीमारी की वजह से सूजन ।

  • आर्सेनिक एल्ब 30

6. हृदय रोग के कारण सूजन नाड़ी धीमी व कमजोर पेशाब थोड़ा काले रंग का एल्बुमिन मिला हुआ। ठंडा पसीना ।

  • डिजिटेलिस 30

7. पेशाब या तो बहुत थोड़ा आता है या आता ही है नहीं। मरीज बेहोशी में सोया रहता है; सब इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं।

  • हैलेबोरस 6 या 30

8. कमजोर करने वाली बीमारी के बाद सूजन ।

  • चाइना 6

9. किसी रूके या दबे हुए चर्म रोग के कारण सूजन।

  • सल्फर 30

दवाएं आवश्यकतानुसार दिन में 2-3 बार दी जा सकती हैं। नमक खाना बन्द कर देना चाहिए। हल्का और सादा भोजन लें।

धनुष्टंकार (Tetanus)

शरीर पीठ की ओर से धनुष की तरह टेढ़ा हो जाए। यह रोग एक प्रकार के जीवाणु के शरीर में घुसने के कारण होता है। यह जीवाणु प्रायः हाथ पैर में जंग लगे लोहे से कट जाने के कारण हुए घाव से शरीर में प्रवेश करते हैं ।

लक्षण : रोगी मुंह नहीं खोल पाता। गर्दन अकड़ जाती है। जबड़े बंद हो जाते हैं। शरीर प्रायः पीठ की तरफ से धनुषाकार में मुड़ जाता है। कभी कभी बच्चे की नाल काटते हुए जंग लगा गंदा औजार इस्तेमाल करने या गंदा कपड़ा बांधने से भी यह जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए बच्चे की नाल काटते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

1. मुख्य दवा

  • लीडम पैल 200

2. यदि कील आदि चुभने के बाद समय पर लीडम न दिया गया हो ।

  • हाइपैरिकम 200

आजकल काफी होम्योपैथ ऐसी चोट जो लोहे के औजार, कील, या सड़क पर रगड़ आदि के कारण हो आर्निका 200 लीडम 200 व हाइपैरिकम 200 तीनों दवाऐ देते हैं। ये दवाऐं 1M पोटेन्सी में भी दी जा सकती हैं।

लकवा (Paralysis)

यह स्नायु संस्थान (nervous system) का रोग है। यह दो तरह का हो सकता है । संवेदनात्मक पक्षाघात (sensory paralysis) या प्रतिरोधक पक्षाघात (motor paralysis) यह दोनों अलग अलग या साथ साथ भी हो सकते हैं।

संवेदनात्मक पक्षाघात : इसमें रोगी की संवेदन शक्ति, जानने पहचानने, काम करने की शक्ति जाती रहती है। स्पर्श का ज्ञान नहीं रहता। अंग अपने आप हिलता रहता है।

प्रतिरोधक पक्षाघात : इसमें रोगी अंगों को हिला डुला नहीं सकता, रोगी कुछ उठा नहीं सकता, चल फिर नहीं सकता।

1. सारे शरीर में कमजोरी, भारीपन, मांसपेशियों की शिथिलता, सुन्नपन । भिन्न भिन्न अंगों में समन्वय नहीं रहता। सारे अंग ढीले पड़ जाते हैं।

  • जल्सेमियम 30, दिन में 3 बार

2. पैरों में स्पर्श का अनुभव नहीं होता। पिन चुमने पर भी दर्द नहीं होता। टांगे इतनी भारी हो जाती हैं कि उन्हें घसीट कर चलना पड़ता है। बैठे बैठे टांगें भारी महसूस होती हैं। मेरूदंड के क्षय के कारण टांगों का पक्षाघात ।

  • ऐल्युमिना 30, दिन में 3 बार

3. जरा सा भी स्पर्श सहन नहीं होता। अंगों में डंक लगने और फाड़ने जैसी वेदनाएं। सुन्नपन, कुछ एक मांसपेशियों के पक्षाघात में उपयोगी, जैसे कलाई का झूल पड़ना (wrist drop), पैर का झूल पड़ना (foot drop) आदि। अत्यधिक कब्ज ।

  • प्लम्बम मैट 30, दिन में 3 बार

4. किसी भी प्रकार के पक्षाघात में उपयोगी। ज़्यादातर दाई तरफ का पक्षाघात ठण्डी हवा लगने से टायफॉएड या डिपिथरिया के बाद पक्षाघात।

  • कॉस्टिकम 200, 2-3 खुराक हफ्ते में एक बार

5. पक्षाघात जो क्रमशः नीचे से ऊपर के अंगों की तरफ जाता है। । आंख बंद करते ही रोगी को पसीना आने लगता है। सिर को इधर या उधर करने में चक्कर आता है।

  • कोनियम 30 हर 2 घंटे बाद

6. चोट लगने से पक्षाघात । काफी रोगी इस दवा से लाभ पाते हैं।

  • आर्निका 1M, 2–3 खुराक

7. अगर रयूमैटिज़्म (rheumatism) के कारण टांगों का पक्षाघात हो । बहुत बेचैनी हो व रोगी हरकत करते रहना पसन्द करे ।

  • रस टॉक्स 30, दिन में 3 बार

8. टांगों में बेहद अकड़ाहट । बैठते हुए रोगी टांग न फैला सके। पिंडलियां अत्यधिक तनी हुई । रोगी सामने झुक कर बैठता है। कठिनाई से ही तनकर सीधा हो सकता है।

  • लैथाइरस 6 या 30, दिन में 3 बार

9. आधे चेहरे का पक्षाघात रोगी बोल नहीं पाता। रोगी को अपने चेहरे पर मकड़ी का जाला साचिपटा अनुभव होता है।

  • ग्रेफाइट्स 30, दिन में 3 बार

तन्तु-ट्यूमर तथा कैंसर आदि (Fibroid and Cancer)

अक्सर प्रौढ़ावस्था में स्त्रियों को यह रोग हो सकते है । अगर शुरू में ही उपयुक्त होम्योपैथिक इलाज करायें तो बहुत लाभ होता है।

1. गर्भाशय की दीवार में फाइब्रोएड होने पर।

  • पल्साटिला 1M

2. पल्साटिला से आराम न होने पर दें। सारा गर्भाशय फाइब्रोएड से भरा रहता है।

  • काली आयोडाइड 3X, 30

3. डिम्ब कोष व गर्भाशय में ट्यूमर अथवा कैंसर में लाभदायक । स्तन में ट्यूमर होने पर। ट्यूमर जो बहुत कड़े हों व उनमें दर्द हो।

  • हाइड्रैस्टिस Q

4. कैंसर में दूसरी उपयोगी दवा ।

  • आर्सेनिक आयोडाइड 3X, 6

5. हर प्रकार के ट्यूमर में उपयोगी ।

  • कैल्केरिया आयोडाइड 3X, 30

6. बहुत सख्त ट्यूमर व कैंसर में उपयोगी ।

  • कोनियम 30, 200

7. हफ्ते में एक बार देने पर ट्यूमर व कैंसर में लाभ होता है।

  • कार्सिनोसिन IM

8. गर्भाशय के किसी भी प्रकार के विकार ट्यूमर व कैंसर के लिए ।

  • थूजा 200, 1M

लक्षणों के अनुसार अन्य दवाएं भी दी जा सकती हैं ।

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