मधुमेह | शूगर का एक्युप्रेशर से उपचार

मधुमेह शूगर का एक्युप्रेशर से उपचार

एक्युप्रेशर द्वारा मधुमेह रोग के उपचार की विधि जानने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि मधुमेह रोग क्या है, इसके लक्षण क्या हैं तथा शरीर के कौन-कौन से अंग इससे सम्बन्धित हैं।

मधुमेह-डायबिटीज़ मेलिटस (Diabetes Mellitus) की गणना उन रोगों में की जाती है जिनसे आधुनिक युग में बहुत बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हैं। मधुमेह के बारे में यह प्रायः कहा जाता है कि यह रोग बुद्धिजीवियों और अमीरों का रोग है क्योंकि यह अधिकांशतः लेखकों, वकीलों, अध्यापकों, पत्रकारों, चिकित्सकों, इन्जीनियरों, दफ्तरों में काम करने वाले अधिकारियों तथा व्यापारियों को होता है क्योंकि वे वांछित शारीरिक व्यायाम नहीं कर पाते। पर ऐसी धारणा पूरी तरह ठीक नहीं है।

अनेक रोगियों का परीक्षण करने के बाद देखा गया है कि यह रोग केवल चिंतनशील तथा अमीर व्यक्तियों को ही नहीं अपितु बड़ी संख्या में गरीब तथा अल्पपोषण वाले लोगों के अतिरिक्त बच्चों को भी होता है।

मधुमेह का रोग आधुनिक युग की देन नहीं है अपितु यह तो प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। संस्कृत के पुरातन ग्रंथों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि इस रोग की जानकारी सर्वप्रथम भारतवर्ष के चिकित्सकों ने ही प्राप्त की थी ।

पुरातन विख्यात चिकित्सक चरक ने कहा था कि जिसको मधुमेह का रोग हो उसके मूत्र पर चीटियाँ आ जाती हैं। कई चिकित्सकों का यह विचार है कि चीन, मिस्र तथा भारतवर्ष में इस रोग की जानकारी पुरातन काल से ही उपलब्ध थी जहाँ से यह अन्य देशों में पहुँची । एक अनुमान के अनुसार इस समय भारतवर्ष में 3 करोड़ से अधिक लोग शूगर के रोगी हैं। यह बीमारी प्रत्येक आयु के व्यक्ति को हो सकती है।

रोग के लक्षण

इस रोग में प्रायः अधिक भूख लगती है, काफी प्यास और बार-बार पेशाब जाना पड़ता है, पेशाब साधारण अवस्था में जितना आता है मधुमेह की स्थिति में उसकी मात्रा तीन से लेकर बारह-तेरह गुणा तक बढ़ जाती है, कई रोगियों का वज़न काफी कम हो जाता है, दिन-प्रतिदिन शरीर की शक्ति कम होती जाती है, थोड़ा सा काम करने पर भी काफी शारीरिक तथा मानसिक थकावट व कमजोरी अनुभव होती है, शरीर में दर्द रहने लगता है, सिरदर्द, मांसपेशियों का दर्द, मचलाहट तथा कै की भी शिकायत हो जाती है। चमड़ी सूखने लगती है और जैसे ही वजन कम होने लगता है यह सिकुड़ने भी लगती है।

इस रोग में टाँगों की वातनाड़ियों में एक कष्टकारी विकार पैदा हो जाता है जिस कारण दर्द, ठिठुरापन (numbness) तथा खुजली (itching) इत्यादि हो जाते हैं जोकि सामान्यतः रात्रि को अधिक होते हैं प्रायः फोड़े भी हो जाते हैं। शरीर में मधुमेह के कारण जिन अंगों में खुजली, फोड़े या अन्य विकार हो सकते हैं वे हैं पैरों के अँगूठे, पैरों की अँगुलियों के नीचे का भाग, एड़ियाँ, कुहनियाँ, मुँह पर गालों के आसपास, टाँगों का अग्रिम तथा कोने वाला भाग, कूल्हों, स्तनों के नीचे तथा मूत्र अंगों के आसपास ।

मधुमेह का रोग नियंत्रण से बाहर (uncontrolled diabetes) या फिर काफी बढ़ जाने की अवस्था में कई तरह के रोग लग सकते हैं यथा स्नायु सम्बन्धी विकार, गुर्दों के कई रोग, शरीर के किसी अंग का सुन्न हो जाना या सड़ना शुरू हो जाना (gangrene), चोट लगने की अवस्था में जख्म शीघ्र ठीक न हो पाना, छाती में जलन तथा क्षयरोग (pulmonary tuberculosis) हो जाना, चमड़ी के रोग, मस्तिष्क को रक्त संचार सम्बन्धी रोग (cerebrovascular disease), दृष्टिपट के रोग, नजर खराबी की हालत में चश्मों के नम्बर बार-बार बदलने की जरूरत पड़ना यहाँ तक कि अन्धापन होने का भय रहना तथा गर्भपात या फिर निर्धारित समय से अधिक समय तक शिशु (fetus) का माता के गर्भ में रहना इत्यादि ।

मधुमेह रोगी माताएँ अधिकांशतः सामान्य से अधिक वजन वाले बच्चों को जन्म देती हैं। ऐसे बच्चों का वजन प्रायः 10 पौंड से अधिक होता है। कई बार ऐसी माताओं के बच्चे मृत अवस्था में जन्म लेते हैं या फिर उनकी नसें काफी फूली हुई होती हैं या उनमें पानी भरा होता है। मधुमेह रोगी माताओं को गर्भकाल में रोग को नियंत्रण में रखने के लिए विशेष सावधानी से काम लेना चाहिए और पर्याप्त आराम करना चाहिए। ऐसा भी देखा गया है कि जो स्त्रियाँ कई बार गर्भवती रहीं हों वे भी मधुमेह रोग ग्रस्त हो जाती हैं।

चिकित्सकों की खोज के अनुसार मधुमेह रोग के कारण नसें ( arteries) संख्त हो जाती हैं तथा रक्त संचार व धमनियों सम्बन्धी (peripheral vascular disease) आदि कई रोग हो जाते हैं । मधुमेह रोग की अवस्था में जिगर (liver) की सामान्य कार्यप्रणाली पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। कई मधुमेह रोगी नपुंसकता के भी शिकार हो जाते हैं । मधुमेह रोगियों को प्रायः पैदल चलने में काफी कष्ट होता है।

मधुमेह रोग भी दो प्रकार का अर्थात् हलका (mild) तथा तीव्र (severe) होता है । हलका या साधारण मधुमेह प्रायः अधेड़ (middle-aged) व्यक्तियों अर्थात 40 से 60 वर्ष की आयु में होता है और खुराक आदि में परिवर्तन से नियंत्रित किया जा सकता है। तीव्र (servere) प्रकार का मधुमेह भी दो प्रकार का होता है। एक तो प्रचण्ड (acute) तथा दूसरा पुराना (chronic) । यह प्रायः नौजवान व्यक्तियों को होते हैं और शीघ्र चिंताजनक अवस्था धारण कर लेते हैं।

ऐसा भी देखा गया है कि कुछ जाति के लोगों को यह रोग अधिक होता है। मांसाहारियों की अपेक्षा यह रोग शाकाहारियों में अधिक पाया गया है क्योंकि वे भोजन में कार्बोहाइड्रेटस की मात्रा अधिक सेवन करते हैं। जो व्यक्ति चीनी, आलू, चावल तथा शराब का अधिक सेवन करते हैं और अधिक धूम्रपान करते हैं उनमें यह रोग अधिक देखा गया है।

मधुमेह कोई एक रोग नहीं अपितु पाचन सम्बन्धी बहुत से रोगों का समूह कहा जा सकता है जोकि इंसुलिन की कमी से सम्बन्धित होते हैं। इस अवस्था में शरीर में रक्त- ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। बहुत से केसों में कीटोन बढ़ जाता है जिससे खतरा पैदा हो जाता है। इसके अतिरिक्त रक्तवाहिनियों सम्बन्धी अनेक रोग भी लग जाते हैं जिससे लम्बी अवधि का रोग बन जाता है।

अग्न्याशय (Pancreas) : उदरगुहा (abdominal cavity) में स्थित अग्न्याशय (pancreas) एक दोहरी ग्रन्थि होती है जिसका एक भाग (exocrine part) पाचक रस (digestive pancreatic juice) पैदा करता है तो दूसरा भाग जोकि पूँछ (tail) सा है तथा indocrine part कहलाता है, वह इंसुलिन (insulin) नामक उत्तेजक रस (harmone) बनाता है । इस ग्रन्थि की आकृति J अक्षर की तरह होती है। इसका सिर डुओडेनम (duodenum) के वक्र (curve) में, इसका मध्य का भाग आमाशय के पीछे तथा इसकी पूँछ स्पलीन (spleen) तक जाकर बायें गुर्दे के सामने तक होती है। अग्न्याशय का एक व्यस्क व्यक्ति में वजन लगभग 90 ग्राम तथा चौड़ाई 6 से 8 इंच तक होती है। दूसरा भाग जिसे endocrine part कहते हैं, अनेक लैगरहैंस के आइलेटस (islets of langerhans) से बना होता है जिनकी गिनती एक वयस्क व्यक्ति में 2 लाख से 17 लाख तक होती है। यही आइलेटस वस्तुतः इंसुलिन बनाते हैं ।

इंसुलिन शर्करा को ग्रहण करने में सहायता करता है और शरीर में शर्करा की मात्रा को कंट्रोल में रखता है। जब किसी विकार के कारण शरीर में पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनता तो रक्त में शर्करा की मात्रा ज्यादा हो जाती है जो गुर्दों की कार्यक्षमता से कहीं अधिक होती है। फलस्वरूप वह मूत्र द्वारा शरीर से बाहर जाने लगती है। यही रोग मधुमेह कहलाता है।

कुछ चिकित्सकों का यह भी विचार है कि अग्न्याशय (pancreas) के अतिरिक्त आड्रेनल ग्रन्थियाँ (adrenal glands), पिट्यूटरी ग्रन्थि (pituitary gland), थाइरॉयड ग्रन्थि (thyroid gland) तथा जिगर (liver) द्वारा अपना कार्य भलीभाँति न करने से भी यह रोग बढ़ता जाता है। जिन लोगों के परिवार में मधुमेह का रोग चला आ रहा हो ऐसे लोगों को यह रोग मानसिक तनाव या विशेषकर जवानी के प्रारम्भ में, तथा स्त्रियों को गर्भ की अवस्था में व रजोनिवृति की स्थिति में हो जाता है।

मधुमेह रोग में अग्न्याशय (pancreas) में विकार तो प्रमुख कारण होता ही है पर यह रोग मूलरूप से पैतृक, मोटापा, संक्रामक तथा मानसिक तनाव आदि कारणों से होता है।

मधुमेह के बारे में यह कहा जा सकता है कि इस रोग में शक्तिवर्धक तत्त्व कार्बोहाइड्रेट (carbonydrate) जोकि पाचन क्रिया द्वारा ग्लूकोज (sugar) में बदल कर रक्त प्रणाली द्वारा सारे शरीर में जाता है, इंसुलिन की कमी या फिर इंसुलिन की अक्षमता ( ineffectiveness) के कारण वह पूर्ण रूप से शरीर के सैलों के उपयोग के योग्य नहीं बन पाता और न ही जिगर (liver) ग्लूकोज़ को भलीभाँति और समूचित रूप से ग्लाइकोजिन (glycogen) में बदल कर अपने पास स्टोर कर सकता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर फिर ग्लूकोज़ में बदल कर शरीर के सैलों तक पहुँचा सके ।

इसके अतिरिक्त मधुमेह की अवस्था में शरीर ग्लूकोज़ को विभिन्न अंगों में वसा (fat) के रूप में नहीं रख पाता जैसाकि स्वस्थ शरीर की अवस्था में होता है। अतः ग्लूकोज़ पूर्ण रूप से शरीर में ग्रहण नहीं हो पाता, जब यह रक्त प्रणाली द्वारा गुर्दों तक पहुँचता है तो मूत्र प्रणाली द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। साधारण अवस्था में यह शरीर में शक्ति प्रदान करता है और शरीर अपनी आवश्यकता के लिए इसे स्टोर करके भी रखता है।

डायबिटीज़ का ग्रीक भाषा के अनुसार अर्थ ‘निकल जाना’ है तथा मेलिटस का लैटिन भाषा के अनुसार अर्थ शहद (honey) है, अतः डायबिटीज़ मेलिटस का अर्थ मिठास (glucose) का शरीर से बाहर निकल जाना है।

यह समझ लेना भी आवश्यक है कि शरीर की वृद्धि और शरीर को स्वस्थ अवस्था में रखने के लिए तीन प्रमुख तत्त्वों – प्रोटीन (protein), वसा (fat) तथा कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) की जरूरत होती है। जब इनमें से कोई भी या सारे तत्त्व शरीर को ठीक मात्रा में आहार में नहीं मिलते या फिर शरीर उन्हें ठीक रूप में ग्रहण नहीं कर पाता तो शरीर स्वस्थ नहीं रह पाता और कई रोग हो जाते हैं।

जब शरीर कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज़ के रूप में अपने अन्दर समा नहीं पाता और उसका भलीभाँति उपयोग नहीं कर पाता तो मधुमेह का रोग हो जाता है।

अनेक रोगियों के परीक्षण के बाद यह देखा गया है कि कई रोगियों के पेशाब में शर्करा के साथ खनिज तथा जल में घुलनशील विटामिन निकलने शुरू हो जाते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि कई रोगियों के पेशाब में शर्करा नहीं लेकिन रक्त में शर्करा की मात्रा काफी अधिक होती है |

मधुमेह के नियन्त्रण के लिए यह आवश्यक है कि डाक्टर की सलाह के अनुसार नियमित रूप से मूत्र की जाँच कराई जाए ताकि शर्करा का स्तर पता लगता रहे। इसके साथ ग्लूकोज, कोलेस्ट्रोल (cholesterol) तथा यूरिया आदि का स्तर व मात्रा जानने के लिए भी छः मास में एक बार अवश्य रक्त की जाँच कराई जाए।

भोजन, व्यायाम एवं अन्य सावधानियाँ

मधुमेह रोग के बारे में ऐसा प्रचलित है कि जिसको यह रोग एक बार हो जाए वह आयु भर मधुमेहका रोगी रहता है- (once diabetic, always diabetic) अर्थात इस रोग का कोई स्थाई उपचार नहीं है। केवल भोजन के नियन्त्रण, व्यायाम (exercise) या इंसुलिन द्वारा यह रोग कंट्रोल में रखा जा सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि इंसुलिन मधुमेह को कंट्रोल करने में एक चमत्कारी औषधि सिद्ध हुई है क्योंकि यह रक्त शर्करा स्तर को सामान्य रखती है पर यह इस रोग को जड़ से उखाड़ देने की औषधि नहीं बन पाई है। यह मधुमेह के कारण हुए रोगों यथा अन्धापन (blindness), नपुंसकता (impotence) तथा गर्भावस्था सम्बन्धी समस्याएं (pregnancy problems) को दूर नहीं कर सकी हैं।

इसके साथ डाक्टरों का यह भी मत है कि इंसुलिन का लगातार प्रयोग शरीर को नुकसान पहुँचाता है। मोटे मधुमेह रोगियों को इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि इंसुलिन की मात्रा जितनी कम लें उतना अच्छा है क्योंकि इंसुलिन से रक्त शर्करा स्तर कम होने से भूख अधिक लगती है। अधिक भोजन खाने वजन और बढ़ेगा।

मधुमेह रोगियों को अपने भोजन की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। मधुमेह के रोगी वैसे तो कोई भी वस्तु खा सकते हैं पर उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरीज़ नहीं लेनी चाहिए। साधारण काम करने वाले मधुमेह रोगी को दिन में लगभग 1,500 से 2,000 कैलोरीज़ की जरूरत पड़ती है पर गर्भवती स्त्रियों तथा जवान बच्चों को इससे कुछ अधिक कैलोरीज़ की जरूरत होती है। इसलिए मधुमेह रोगियों को कोई ऐसे पदार्थ नहीं लेने चाहिए जिनमें कार्बोहाइड्रेट तत्त्व अधिक हों। उन्हें आलू, शकरकंद, आम, सीताफल, अंगूर, केले, चीकू, शहद, चीनी, पेड़े, पेस्टरी, दूध व खोए से बनी मिठाइयाँ, खीर, हलवा, ठंडे पेय पदार्थ (soft drinks), तली हुई वस्तुएँ, चाय, काफी, शराब इत्यादि तथा अधिक चपातियाँ खाने से परहेज करना चाहिए। तम्बाकू आदि भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे पाचन क्रिया पर बुरा असर पड़ता है।

मधुमेह रोग में व्यायाम बहुत अच्छा है क्योंकि व्यायाम करने से रक्त में मौजूद शूगर की अधिक मात्रा को मांसपेशियाँ इंसुलिन की क्रिया के बिना सीधे इस्तेमाल कर लेती हैं। इस तरह शरीर में बनी इंसुलिन की कम मात्रा से भी सारी शर्करा शरीर में प्रयोग हो जाती है। हलका व्यायाम अर्थात सैर करनी चाहिए।

मधुमेह रोगियों को जामुन तथा करेले का अधिक सेवन करना चाहिए । कुछ करेले कूटकर उसका पानी पीना अधिक गुणकारी है। सलाद में धनियाँ की चटनी बना कर खानी चाहिए। कच्ची ताजी भिंडी खाना इस रोग में लाभकारी है। सवेरे टमाटर, संतरे तथा जामुन का नाश्ता लेना बहुत अच्छा है। पाँच काली मिर्च, पाँच नीम के पत्ते तथा पाँच तुलसी के पत्ते, इन तीनों को इकट्ठे कूट कर खाने से भी मधुमेह रोग कंट्रोल में रहता है। अच्छी शिलाजीत का सेवन भी गुणकारी बताया जाता है।

प्रतिदिन सवेरे तथा रात्रि को सोने से पहले एक पाव दूध के साथ थोड़ी सी शुद्ध शिलाजीत लेने से इस रोग में काफी लाभ पहुँचता है। ताजे आँवलों के रस में कागजी नींबू का रस और शहद मिलाकर पीना भी इस रोग में अच्छा है। तीन-चार आँवलों का रस, आधा या एक नींबू का रस तथा 2 चम्मच शहद एक समय काफी रहते हैं।

मधुमेह रोग कंट्रोल करने तथा दूर करने में मेथी के दाने काफी गुणकारी पाये गये हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए मेथी के दाने रामबाण दवा है। मेथी के दाने कड़वे जरूर हैं लेकिन मधुमेह रोग पर काबू पाने

बहुत ही असरदार होते हैं।

वैज्ञानिकों ने अध्ययन से पता लगाया है कि कढ़ी या सूप या फिर चपाती अथवा डबलरोटी जैसे रोजमर्रा के भोजन में 25 से 100 ग्राम तक मेथी मिलाकर खाने से मुधमेह नियन्त्रित किया जा सकता है।

मेथी युक्त भोजन लेने के बाद मधुमेह के रोगियों में खून का ग्लूकोज़, पेशाब में चीनी और कोलेस्ट्रोल स्तर काफी कम हो जाता हैं। इस व्यापक क्षेत्र में ये सामान्य लक्षण होते हैं । मेथी में प्रोटीन और लाइसाइन पर्याप्त मात्रा में होता है, इसलिए भोजन में दालों का आदर्श विकल्प है। संस्थान के अध्ययन से पता चला है कि मधुमेह के रोगी को 21 दिन तक 25 ग्राम मेथी दिए जाने से प्लाज्मा ग्लूकोज़ में उल्लेखनीय सुधार आया और इंसुलिन स्तर कम पाया गया है। मेथी में पाया जाने वाला 50 प्रतिशत तक फाइवर अंश मधुमेह होने के अवसर कम करता है । वैज्ञानिकों का कहना है कि मेथी मिले भोजन से यकृत में पित्त निर्माण को उत्तेजना मिलती है और वह कोलेस्ट्रोल को पित्तीय अम्लों में भी बदलती है ।

उपरोक्त बताई वस्तुओं में से एक समय केवल एक या दो वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए। सब वस्तुओं को एक साथ खाना ठीक नहीं।

मधुमेह रोगियों को विभिन्न भोजन पदार्थों के बारे में यह जानना भी जरूरी है कि गेहूँ, चावल, बाजरा इत्यादि अनाजों में कोर्बोहाइड्रेट की मात्रा 70 से 80 प्रतिशत, दालों में 56 से 60 प्रतिशत, विभिन्न प्रकार की पत्तेदार सब्जियों में 3 से 5 प्रतिशत, बिना पत्ते की सब्जियों में 6 से 15 प्रतिशत तथा दूध में 5 प्रतिशत होती है। फलों में यह मात्रा 5 से 35 प्रतिशत तक होती है, मांसाहार पदार्थ यथा मांस, मछली तथा अंडे इच्छानुसार लिए जा सकते हैं क्योंकि इनमें शर्करा नहीं होती।

मधुमेह रोगियों को एक समय के आहार में लगभग 200 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 60 ग्राम प्रोटीन तथा थोड़ा सा वसा लेना चाहिए जिससे प्रतिदिन कैलोरियों की संख्या नियन्त्रण में रहे । मधुमेह रोगी को भरपेट कभी नहीं खाना चाहिए। जहाँ तक हो सके भोजन के साथ पानी नहीं पीना चाहिए।

वयस्क मधुमेह रोगियों को अपने आहार पर नियन्त्रण रखना चाहिए पर मधुमेह रोगी बच्चों का आहार सीमित नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्हें वृद्धि के लिए पौष्टिक एवं सन्तुलित भोजन चाहिए इतना अवश्य करना चाहिए कि बच्चों को अधिक मिठाई, अधिक खोए वाली वस्तुएँ तथा अधिक चीनी वाले पदार्थ खाने को नहीं देने चाहिए ।

मधुमेह रोगियों को एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि अधिक मात्रा में व्यायाम, अधिक मात्रा में इंसुलिन और कम मात्रा में भोजन यह तीनों एक साथ नहीं होने चाहिए अन्यथा ब्लड शूगर का सामान्य स्तर काफी गिर जाएगा जिसे निम्न ब्लड शूगर (low blood sugar) कहते हैं। ऐसा होना भी शरीर के लिए हानिकारक है। इस अवस्था में अधिक भूख लगती है, काफी पसीना आता है और कमजोरी प्रतीत होती है। अगर इसी प्रकार रोग बढ़ता रहे तो अचानक बेहोशी की अवस्था में पहुँच कर रोगी की मृत्यु हो सकती है।

मधुमेह रोग की अवस्था में चमड़ी और विशेषकर पैरों की पूरी देखभाल करनी चाहिए अन्यथा कोई भी घाव गहरा होकर चिरकालिक बना रह सकता है। मधुमेह रोगी को अगर कोई घाव हो तो उसे नियमित रूप से साफ करना चाहिए। अगर पाँवों में बार-बार तथा अधिक पसीना आता हो तो पाँवों को धोकर कोई अच्छा सा पाऊडर दिन में दो-तीन बार डालना चाहिए। कोई भी ऐसा जूता नहीं डालना चाहिए जो पाँव को काटे मधुमेह रोगियों को नंगे पाँव नहीं चलना चाहिए क्योंकि चोट लगने की अवस्था में पाँव जल्दी-जल्दी ठीक नहीं हो पाता ।

मधुमेह रोग से बचने के लिए वजन को बढ़ने नहीं देना चाहिए क्योंकि अधिक वजन के कारण अग्न्याशय (pancreas) ग्रन्थि पर अधिक बोझ पड़ता है जिस कारण वह अपना कार्य ठीक प्रकार नहीं कर पाती और पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाती भावी सन्तान के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए दो मधुमेह रोगियों को आपस में विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे भी निसंदेह मधुमेह के रोगी होंगे।

मधुमेह रोगियों को टेढ़ा-मेढ़ा बैठना, उठना या सोना नहीं चाहिए। जहाँ तक हो सके शरीर को सीधा अर्थात ठीक अवस्था में रखना चाहिए। ऐसे लोगों को सप्ताह में एक दिन अवश्य उपवास रखना चाहिए क्योंकि इससे पाचन सम्बन्धी अंगों को आराम भी मिलेगा और रक्त में से विशाक्त पदार्थ (toxins) बाहर चले जाएँगे। उपवास के दूसरे दिन साधारण दिनों से अधिक भोजन नहीं खाना चाहिए।

एक्युप्रेशर द्वारा मधुमेह का उपचार

मधुमेह को कंट्रोल में रखने के लिए डाक्टर सीमित आहार तथा इंसुलिन का प्रयोग बताते हैं। ऐसा करने से निश्चय ही मधुमेह को कंट्रोल में रखा जा सकता है पर यह रोग को दूर करने का उपाय नहीं है। जैसाकि पहले बताया गया है इंसुलिन का अधिक प्रयोग शरीर के लिए हानिकारक होता है। एक्युप्रेशर द्वारा मधुमेह को बिना दवा कंट्रोल में रखा जा सकता है और अगर कुछ मास तक लगातार इस पद्धति से इलाज किया जाए तो मधुमेह रोग दूर भी हो सकता है।

मधुमेह रोग में शरीर के ये अंग मुख्य रूप से सम्बन्धित होते हैं-अग्न्याशय (pancreas), जिगर (liver), आमाशय (stomach), अंतड़ियाँ (intestines), गुर्दे (kidneys), तथा मूत्राशय (urinary bladder) | मधुमेह की अवस्था में अग्न्याशय ग्लूकोज़ को ग्रहण करने के लिए वांछित इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर जितनी इंसुलिन बनती है वह प्रभावकारी कार्य नहीं कर पाती। इस रोग में जिगर तथा गुर्दों को अपनी सामान्य समर्था से अधिक कार्य करना पड़ता है या फिर वे अपना कार्य ठीक प्रकार नहीं कर पाते। आमाशय तथा अंतड़ियाँ भी पाचन में पूरा सहयोग नहीं दे पाते।

ऐसी हालत में अग्न्याशय, जिगर, गुर्दों, आमाशय तथा अंतड़ियों की कार्यक्षमता बढ़ाने की जरूरत होती है। यह कार्य केवल एक्युप्रेशर द्वारा प्राकृतिक रूप में किया जा सकता है। जिगर से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्र केवल दायें पैर तथा केवल दायें हाथ में होते हैं जबकि अग्न्याशय, गुर्दों, आमाशय तथा अंतड़ियों से सम्बन्धित केन्द्र दोनों पैरों तथा दोनों हाथों में होते हैं। इन अवयवों से सम्बन्धित सारे प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए। पैरों तथा हाथों में इन केन्द्रों की स्थिति नीचे आकृति में दर्शायी गई है ।

मधुमेह शूगर का एक्युप्रेशर से उपचार
आकृति नं० 1

इस रोग में कुछ दिनों तक प्रेशर देने के बाद काफी अच्छे नतीजे मिलने शुरू हो जाते हैं। प्रेशर देने से अग्न्याशय, गुर्दों, जिगर, आमाशय तथा अंतड़ियों के अनेक रोग दूर होकर उनकी कार्यक्षमता बढ़ने लगती है। अगर अग्न्याशय पूरी मात्रा में इंसुलिन बनाना शुरू कर देगा तथा इंसुलिन पहले से अधिक प्रभावकारी कार्य शुरू कर देगी तो निश्चय ही कार्बोहाइड्रेट तत्त्वों का शरीर पूर्णरूप से उपयोग कर पाएगा। जिगर ग्लूकोज़ को भलीभाँति और ठीक मात्रा में ग्लाइकोजिन (glycogen) में बदलने की क्षमता प्राप्त कर सकेगा। गुर्दे पहले से अधिक सशक्त हो जाएँगे और उन पर काम का अधिक बोझ नहीं पड़ेगा। आमाशय तथा अंतड़ियाँ पाचन क्रिया में पूरा योगदान देंगे।

जैसाकि पहले बताया गया है मधुमेह केवल एक रोग नहीं अपितु मधुमेह की अवस्था में शरीर में कई विकार शुरू हो जाते हैं। अच्छा तो यह है कि रोग की अवस्था में पैरों तथा हाथों में सारे प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर नियमित रूप से प्रेशर दिया जाये ।

आकृति नं० 2
आकृति नं० 3

इसके अतिरिक्त स्नायु संस्थान (nervous system) सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए जैसाकि आकृति नं० 2 तथा 3 में स्पष्ट किया गया है।

अगर मधुमेह का रोगी मोटा हो तो मोटापा कम करने के लिए भी प्रेशर देना चाहिए। एक्युप्रेशर द्वारा इलाज के दौरान इन्सुलिन लेना बिल्कुल बन्द नहीं करना चाहिए। जैसे पहले वर्णन किया गया है प्रेशर देने से निःसंदेह अग्न्याशय ग्रन्थि की क्रिया में सुधार और वह पहले से अधिक इन्सुलिन पैदा करेगी, इसलिए समय-समय पर डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए और डाक्टर के परामर्श अनुसार ही इन्सुलिन की मात्रा कम करते रहना चाहिए।

इस पद्धति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इन्सुलिन के प्रयोग के बिना केवल प्रेशर द्वारा मधुमेह रोग को कंट्रोल में रखा जा सकता है।

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