सीकेल कोरनूटम | Secale Cornutum

सीकेल कोरनूटम | Secale Cornutum

दुबली-पतली चिड़चिड़े स्वभाव की दुर्बल एवं रुग्ण दिखाई देने वाली स्त्रियों के लिये उपयोगी, चिड़चिड़ा, स्नायविक स्वभाव, पीला धँसा हुआ

चेहरा । अत्यधिक वृद्ध, जीर्ण तन, दुर्बल व्यक्ति । अत्यधिक ढीले पेशी तन्तु वाली स्त्रियां, प्रत्येक वस्तु ढीली और खुली हुई प्रतीत होती है; क्रिया विहीन; वाहिकायें शिथिल निष्क्रिय रक्तस्त्राव, पतले, काले, पनीले रक्त का प्रचुर परिमाण में स्राव; कोषाणु नष्ट हो जाते हैं ।

रक्तस्रावी प्रवणता, हल्की-सी चोट से भी कई सप्ताहों तक रक्तस्राव होता रहता है (लैके, फास्फो); रक्ताम्बु एवं तरल रक्त बहने से साथ पूतिता की सबल प्रवृत्ति हाथ-पैरों में झनझनाहट होने के साथ भारी दुर्बलता, विशेष रूप से जब दुर्बलता पहले कभी नष्ट हुए द्रव्यों के कारण नहीं होती ।

प्रदरस्त्राव – हरा, कपिश, दुर्गन्धित ।

फोड़ेछोटे-छोटे दर्दनाक होने के साथ हरी पीव से भरे हुए, अत्यन्त मन्द गति से पकते हैं और इसी तरह धीरे-धीरे ही ठीक भी होते हैं; भारी दुर्बलता उत्पन्न करने वाले ।

चेहरा – पीला, सिकुड़ा हुआ, क्षारवत, धँसा हुआ, हिप्पोक्रेट जैसा खिचा हुआ, साथ ही धँसी हुई आखें नेत्रों के चारों ओर नीले छल्ले ।

अस्वाभाविक राक्षसी भूख यहाँ तक कि थका देने वाले अतिसार के साथ भी अम्ल पदार्थों एवं नींबू के सेवन की अदम्य इच्छा रहती है ।

अतिसार – प्रचुर पनीला, पीब जैसा, कपिश वर्णं, तीव्र वेग से निकलता है (गम्बो, क्रोटे) अत्यधिक थका देने वाला, दर्दहीन, निरंकुश, मलद्वार खुला हुआ (एपिस, फास्फो) ।

असंयतमूत्रता – बूढ़े व्यक्तियों की, मूत्र पीला, पनीला अथवा रक्तिम मूत्र दबा हुआ ।

जलन – शरीर के प्रत्येक भाग में, जैसे रोगी के ऊपर आग की चिनगारियां गिर रही हों (आर्से) ।

कोथ – शुष्क, वृद्धावस्था का, वाह्य ताप देने से वृद्धि ।

दीर्घाकार नीलांछन, रक्त फफोले, प्रायः कोथ की प्रारम्भिक अवस्था ।

विसूचिका रोग में निपात, त्वचा ठण्डी, फिर वस्त्र नहीं ओढ़ सकता (कंम्फ) ।

स्पर्श करने से त्वचा ठण्डी लगती है, फिर भी रोगी ओढ़ना सहन नहीं कर सकता; निम्नांगों की शीतलता ।

ऋतुस्राव – अनियमित, प्रचुर, काला द्रव्य, साथ ही दबाब, उदर के अन्दर दबाव मारती हुई, प्रसव सदृश पीड़ा, अगले ऋतुस्राव तक पनीला रक्त निरन्तर बहता रहता है ।

गर्भपात की आशंका, विशेष रूप से तीसरे महीने (सेबाइना) चिरस्थायी, निम्नाभिमुखी दबाव, सशक्त पीड़ा।

प्रसव के दौरान – अनियमित पीड़ा, अत्यन्त दुर्बल, कमजोर अथवा रुक- रुक कर प्रत्येक वस्तु ढीली-ढाली और खुली हुई प्रतीत होती है किन्तु शिशु बाहर नहीं निकल पाता; मूर्छा ।

प्रसवोत्तर दर्द – चिरस्थायी, अत्यन्त कष्टदायक, जरायु की अनियमित सिकुड़न ।

स्तनों का दूध दबा हुआ, दुबली-पतली, चिड़चिड़े स्वभाव वाली, क्लांत स्त्रियों में स्तनों में दूध भली-भान्ति नहीं भरता ।

नाड़ी छोटी, द्रुत-गतिक, सिकुड़ी हुई और बहुधा रुक-रुक कर चलने, बाली ।

सम्बन्ध

  • प्रसवोत्तर रक्तस्राव में सिन्नामोन से तुलना कीजिये; यह प्रसव- पीड़ा को बढ़ाती है, प्रचुर परिमाण में होने वाले अथवा खतरनाक रक्तस्राव को रोकती है, सदैव अहानिकारक है जब कि अर्गट सदा ही खतरनाक है ।
  • आर्सेनिक के समान किन्तु शीत एवं ताप का विपरीत स्वभाव पाया जाता है ।
  • विसूचिका में काल्चिकम से मिलती-जुलती है।

रोगवृद्धिगर्मी से समस्त प्रभावित भागों को ढक कर गरमाई देने से समस्त रोगावस्थाओं में गर्मी से वृद्धि

रोगह्रास – ठण्डी हवा में; ठण्डक से; प्रभावित भागों को नंगा रखने से, मलने अथवा रगड़ने से ।

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