सेनीक्यूला | Sanicula
निम्नाभिमुखी गति का भय (बोरे) । बच्चा ढीठ, दुःसाध्य रोता है और लात मारता है; जिद्दी, चिड़चिड़ा किन्तु सहज ही हँसने लगता है; नहीं चाहता कि कोई उसका स्पर्श करे।
अपना व्यवसाय निरन्तर बदलता रहता है ।
निद्राकाल में बच्चों की गर्दन पसीने से तर हो जाती है; दूर-दूर तक तकिया भीग जाता है (कल्के, साइली ) ।
खोपड़ी, भौंहों तथा दाढ़ी पर प्रचुर पपड़ीदार रूसी । कानों के पीछे दुखन होने के साथ श्वेत भूरे चिपचिपे द्रव्य का स्राव (ग्रैफा, सोरा)।
जिह्वा – दीर्घाकार; थुल-थुली ज्वलनकारी, ठण्डा करने के लिये उसे मुख के अन्दर से बाहर की ओर फैलाना पड़ता है; जिह्वा के ऊपर दाद (नेट्र- म्यूरि) ।
मोटरकार अथवा किसी वाहन की यात्रा करने से मितली और वमन ।
प्यास बार-बार पानी पीता है किन्तु अल्प मात्रा में; जैसे ही पानी आमाशय के अन्दर पहुँचता है वैसे ही उसका वमन हो जाता है (आर्से, फास्फो) । लक्षणों में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है (लैक-कैनी, पल्सा) ।
निरंकुश मूत्रोत्सर्जन एवं मलोत्सर्जन गुदासंकोचिनी अविश्वसनीय (एलो); अधोवायु से मलत्याग की इच्छा, फलस्वरूप मल स्वतः बाहर निकलने के भय से एक टांग को दूसरी टांग के ऊपर भींच कर रखना पड़ता है।
मलबद्धता – जब तक बहुत सारा मल एकत्र नहीं हो जाता तब तक मलत्याग की इच्छा ही नहीं होती; बहुत जोर लगाने के बाद गुदा से मल थोड़ा बाहर की ओर निकलता है, किन्तु पुनः अन्दर की ओर वापस चला जाता है। (साइली, थूजा)। अधिक परिमाण में छोटी-छोटी सूखी, भूरी गोलियां निकलती हैं जिन्हें गुदा के अन्दर उँगली डाल कर निकलना पड़ता है (सेली) ।
मल – कठोर, जिसे बाहर निकालने में कठिनाई होती है, भूरी सफेद गोलियाँ, जैसे जला हुआ चूना हो; गुदा के पास आते ही टूट जाता है (मैग्नी-म्यूरि); सड़े पनीर जैसी गन्ध वाला ।
अतिसार – रूप और रंग में बदलता हुआ, सड़े हुए अण्डों जैसा, झागदार, घास जैसा हरा, कुछ देर रुकने के बाद हरा हो जाता है; मेंढकों के पोखरे की सेवाल जैसा; खाना खाने के बाद खाते ही उठ कर मलत्याग के लिये भागना पड़ता है। नहाने के बाद भी मल की दुर्गन्ध नहीं जाती (सल्फ) ।
गुदा के पास वाली त्वचा छिल जाती है (सल्फ); छिलन मूलाधार से होती हुई जननेन्द्रिय तक फैल जाती है ।
प्रवरस्त्राव – जिसमें सड़ी हुई मछली जैसी तीखी गन्ध आती है (मलांत्र से टपकने वाले स्त्राव में सड़े हुए अण्डे जैसी गंध – कल्के; कान से सड़ी हुई मछली जैसा स्राव – टेलूरि) । दुर्बलता, नीचे की ओर दबाव देती हुई अनुभूति जैसे, गोणिका के अन्दर विद्यमान सारे पदार्थ बाहर निकल आयेंगे; चलने-फिरने, गलत कदम रखने अथवा झटका लगने से वृद्धि; विश्राम करने तथा लेटने से आराम; भाग के ऊपर हाथ रख कर दबाव देते रहने की इच्छा (लिलिय, म्यूरे); जरायु की दुखन ।
पैरों में पसीना – पैर की उँगलियों के बीच, फलस्वरूप उनमें दुखन होती है दुर्गन्धित (ग्रैफ, सोरा, साइली); पैरों के तलवों में, जैसे ठण्डे पानी में चला हो। पैरों के तलवों में जलन; उन्हें नंगा या किसी ठण्डे स्थान पर रखना पड़ता है (लैके, मेडोर, सेंग्वीने, सल्फ) । ठण्डे से ठण्डे मौसम में भी बच्चा वस्त्रों को लात मार कर फेंक देता है। (हीपर)।
कृशता, बढ़ती हुई; बच्चा वृद्ध जैसा, गन्दा, ग्रीस पोत दिये जाने जैसा तथा कपिश रंग का लगता है; ग्रीवा के इर्द-गिर्द की त्वचा झुर्रीदार दिखाई देती है, जा तहों में झूलती रहती है (एब्रोटे, आयोड, नेट्र-म्यूरि, सर्सा) ।
सम्बन्ध – इसका एब्रोटे, एलूमि, बोरे, कल्के, ग्रैफा, नेट्र-म्यूरि साइली एवं हमारी अन्य प्रमुख कच्छुविषनिरोधक औषधियों से सम्बन्ध है ।