सेबाइना | सेबाडिल्ला | सेम्बूकस नाइग्रा

सेबाइना | Sabina

स्त्रियों को आक्रान्त करने वाले जीर्ण रोग सन्धिवाती दर्द: गर्भस्राव की प्रवृत्ति प्रमुखतया तीसरे महीने । संगीत सहन नहीं होता, स्नायविकता उत्पन्न करता है, अस्थि एवं मज्ज को झकझोर देता है (रुलाई आ जाती है – थूजा) । कमर के निचले भाग में खिचावदार पीड़ा, त्रिकास्थि से जघनास्थियों तक, लगभग सभी रोगों में (पीछे से शरीर से घूमता हुआ जघनास्थियों तक – वाइ-ओपू) ।

ऐसे रोग जिनकी उत्पत्ति गर्भपात अथवा अपरिपक्व प्रसव के बाद होती है, जरायु से रक्तस्राव, स्राव कुछ पीला-लाल, कुछ थक्केदार; अल्पतम गति से वृद्धि (सीकेल); चलने-फिरने से बहुधा आराम; दर्द त्रिकास्थि से जघनास्थियों तक फैलता है।

ऋतुस्राव – नियत समय से बहुत पहले, प्रचुर परिमाण में दीर्घस्थायी; कुछ तरल, कुछ थक्केदार (फेरम); ऐसी स्त्रियां जिन्हें यौवन काल से पूर्व ही ऋतुस्राव हो गया हो, स्राव दौरों में; साथ ही उदरशूल और प्रसव जैसी पीड़ा; दर्द त्रिकास्थि से जघनास्थियों तक । दो ऋतुओं की मध्यवर्ती अवधि में भी स्राव गतिशील रहने के साथ कामोत्तेजना (अम्बरा) ।

जरायु की अशक्तता के कारण आँवलनाल की अवरुद्धता; तीब्र प्रसवोत्तर पीड़ा (कौलो, सीकेल) ।

अत्यार्तव – रजोनिवृत्ति के दौरान उन स्त्रियों में जो पहले गर्भपात की शिकार रही हैं; साथ ही प्रथम ऋतुस्राव नियत समय से पूर्व ही हो जाने का इतिहास | गर्भपात अथवा अपरिपक्व प्रसव के बाद डिम्बग्रन्थियों अथवा जरायु का प्रदाह जरायु से मांस-पिण्डों अथवा वाह्यशल्यों को बाहर निकालने में सहायक (कैंथरिस) ।

अंजीरी मस्से, जिनमें तीव्र सुजली और जलन होती है; प्रचुर कणांकुर (थूजा, नाइ-एसिड) ।

सम्बन्ध

  • थूजा से पूरक सम्बन्ध ।
  • कल्के, क्राक, मिलिफो, सीकेल एवं ट्रिलि से तुलना कीजिये ।
  • मांसांर्बुदों एवं प्रमेहविषज रोगों में इसके बाद थूजा की उत्तम क्रिया होती है।

रोगवृद्धि – अल्पतम गति करने से (सीकेल); गर्म हवा या गर्म कमरे में (एपिस, पल्सा) ।

रोगह्रास – ठण्डी, खुली, ताजी हवा में ।

सेबाडिल्ला | Sabadilla

हल्के केशों वाले, गौरवर्ण व्यक्तियों के लिये उपयोगी, जिनका पेशीजाल

दुर्बल और ढीला रहता है । बच्चों के कृमि रोग (सीना, साइली, स्पाइ) ।

स्नायु रोग; स्फुरण, आक्षेपमय कम्पन निस्पन्दवात (catalepsy); कृमिजन्य (सीना, सोरा) ।

मिथ्याभ्रम – कि वह बीमार है; अंग मुरझाये हुए कि वह गर्भवती है, – जब कि बायु से पेट मात्र फूला हुआ रहता है कि वह किसी भयंकर कण्ठ रोग से पीड़ित है जो घातक सिद्ध होगा।

सविराम ज्वरों के दौरान प्रलाप (पोडो) ।

ऐंठनयुक्त दौरों में छींकें; तदुपरान्त अश्रुप्रवाह नाक से विपुल परिमाण में पनीला स्राव; चेहरा गर्म तथा पलकें लाल और ज्वलनकारी ।

रोहिणी, गलतुण्डिकाशोथ; गर्म भोजन अधिक सहजता के साथ निगल सकता है, सुई जैसी चुभन एवं अन्य लक्षण, प्रमुखतया कण्ठ के उपसर्ग, बाई ओर से दाईं ओर को जाते हैं (लेके, लेक-केनी) । लगता है जैसे कण्ठ के अन्दर चमड़े का कोई टुकड़ा ढीला होकर लटक रहा है, उसे निगल लेना चाहिए।

सिर दर्द – अत्यधिक सोचने से, अत्यधिक ध्याननिमग्न रहने से (आर्जे-नाइ); कृमिजन्य ।

गलतोरणिका एवं कण्ठ की रूक्षता ।

त्वचा की चिमड़े कागज जैसी रूक्षता ।

सम्बन्ध

  • तुलना कीजिए कोलो, काल्चि से ।
  • जहाँ शाम को 4 बजे से 8 बजे तक रोगवृद्धि हो – लाइको से तुलना कीजिए ।
  • खुली हवा में आराम आने पर – पल्सा और सेबाइन से तुलना कीजिए ।
  • फुफ्फुसावरणशोथ में इसके बाद ब्रायो एवं रैनन-बल्बो उत्तम क्रिया करती हैं, तथा जब ऐकोना एवं ब्रायो सफल नहीं हुईं तो इसने आरोग्य प्रदान किया है ।

सेम्बूकस नाइग्रा | Sambucus Nigra

कण्ठमालाग्रस्त बच्चों को आक्रान्त करने वाले रोगों के लिए उपयोगी, जो वायु मार्गों को प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं। ऐसे व्यक्ति, जो पहले हृष्ट-पुष्ट और मांसल थे, किन्तु अचानक दुर्बल हो गये (आयोड, टुबर) |

प्रचण्ड मनोवेगों का दुष्प्रभाव; अधीर, शोक सन्ताप अथवा अत्यधिक सम्भोग किये जाने का कुफल (फास्फो-एसिड, काली-फास्फो) ।

शरीर के विभिन्न अंगों, विशेष रूप से टांगों, पैर की उँगलियों के अन्दरूनी भागों तथा पैरों में शोफमय सूजन ।

शिशुओं का सूखा नजला; नाक शुष्क एवं पूर्णतया अवरुद्ध, फलस्वरूप श्वास लेने और दूध पीने में रुकावट पैदा होती है (एमो-कार्बो, नक्स) ।

श्वासकष्ट – दम घुटने के कारण बच्चा एकाएक जाग पड़ता है, चेहरा नीला, बिस्तरे में उठकर बैठ जाता है; नीला पड़ जाता है, श्वास लेने के लिए छटपटाता है, जिसे अन्ततः पा जाता है; दौरा रुक जाता है किन्तु पुनः प्रकट हो जाता है। बच्चा अन्दर की ओर श्वास तो खींच लेता है लेकिन श्वास छोड़ नहीं सकता (क्लोरिन, मेफाइ) आक्रमण के दौरान ही सो जाता है (लैके)। बच्चों के श्वास रोग में एरम-ड्रेक से तुलना कीजिये ।

खाँसी – दम घोट देने वाली, रुदनशील बच्चों के साथ; लगभग आधी रात के समय अधिक; खोखली, गहरी कूकरकास जैसी, साथ ही वक्ष की ऐंठन; साथ ही नियमित प्रश्वास किन्तु दीर्घ निःश्वास । खांसी गहरी, शुष्क, ज्वरावेग से पहले।

ज्वरजब सोता है तो सूखी गर्मी; निद्रावस्था के दौरान लेटने के बाद; प्यास का अभाव, अधौड़ा रहने से डरता है (प्रत्येक अवस्था में वस्त्र ओढ़ना चाहता है – नक्स) । जागृतावस्था के दौरान सारे शरीर में प्रचुर पसीना; नींद आते ही सूखी गर्मी वापस आ जाती है (जैसे ही सोने के लिये आँखें बन्द करता है वैसे ही पसीना आने लगता है – सिन्को, कोनि) ।

सम्बन्ध –

  • सिन्को, क्लोरि, इपिका, मेफाइ, सल्फ से तुलना कीजिये ।
  • भयातुर होने के दुष्प्रभावों को नष्ट करने में ओपियम के बाद प्रभावी क्रिया करती है।
  • आर्सेनिक के अपव्यवहार से उत्पन्न रोगों में आराम देती है।

रोगवृद्धि – विश्राम के दौरान फल खाने के बाद ।

रोगह्रास – बिस्तरे में बैठने पर; गति करने से; बहुत सी वेदनायें विश्राम के दौरान प्रकट होती हैं और गति करने पर गायब हो जाती हैं (रस) ।

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