रस टाक्सिकोडेण्ड्रान | Rhus Toxicodendron
आमवात प्रवण व्यक्तियों के लिये उपयोगी; भीग जाने का कुफल, विशेष रूप से जब शरीर अधिक तपा हुआ रहता है । ऐसे रोग जिनकी उत्पत्ति किसी मांसपेशी अथवा पुट्ठे पर मोच आ जाने अथवा शरीर के किसी भाग पर अधिक दबाव पड़ने के फलस्वरूप होती है (कल्के, नक्स) ।
अधिक भारी बोझा उठाने, विशेष रूप से हाथ को अत्यधिक लम्बा करते हुए दूर स्थित किसी वस्तु को निकालते समय नर्सों पर खिचाव पड़ने से, सीली जमीन पर ग्रीष्म ऋतु में लेटने से किसी झील या नदी में अधिक स्नान करने से ।
तन्तु ऊतकों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है (रोडो; सीरमी ऊतकों पर – ब्रायो); वाम-पार्श्व की अपेक्षा दक्षिण-पार्श्व अधिक प्रभावित ।
दर्द – जैसे मोच आ गई हो; जैसे कोई पेशी या पुट्ठा फट कर अपने स्थान से अलग हो गया हो; जैसे अस्थियों को चाकू से छील दिया गया हो; रात को तथा गीले, बरसाती मौसम में दर्द बढ़ता है; प्रभावित भाग स्पर्शकातर । विश्राम करने के बाद गति आरम्भ करने पर अथवा प्रातःकाल जागने पर खंजता, अकड़न और दर्द, टहलने, अथवा निरन्तर चलते रहने से आराम ।
अत्यधिक बेचैनी, अधीरता, भय (ऐकोना, आर्से); बिस्तरे में नहीं रह सकता, दर्द से आराम पाने के लिए बहुधा करवटें बदलता रहता है (मानसिक अधीरता से – आर्से) । बेचैन, अधिक समय तक एक स्थिति में नहीं रह सकता ।
पीठ – निगरण के दौरान दोनों कन्धों के बीच वाले भाग में पीड़ा; कमर के निचले भाग में दर्द और अकड़न, बैठने और लेटने से वृद्धि, गति करने अथवा किसी कठोर वस्तु पर लेटने से आराम ।
खुली हवा के प्रति भारी सम्बेदनशीलता बिछौने की चादर के नीचे हाथ देने पर खांसी होने लगती है (बैराइटा, हीपर) ।
पेशीवात, ग्रंधसी, वाम-पार्श्वी (कोलो) बाईं भुजा में कसक के साथ पीड़ा, साथ ही हृदय रोग ।
रात को को अत्यधिक भय; डरता है कि विष देकर उसकी हत्या कर दी जायेगी; बिस्तर में नहीं रह सकता ।
भ्रमि – खड़े रहने अथवा चलते समय लेटने पर वृद्धि (लेटने पर आराम – एपिस); लेटी हुई अथवा झुकी हुई स्थिति से उठने पर अधिक चक्कर आता है।
सिरदर्द – कदम बढ़ाते समय अथवा सिर को हल्का सा झटका देते समय मस्तिष्क ढीला प्रतीत होता है; मस्तिष्क के अन्दर पानी गिरने जैसी ध्वनि; जड़ कर देने वाला; जैसे सिर फट गया हो; यवसुरा पीने से हल्का-सा असन्तोष होने पर पुन: लौट आता है; बैठने तथा लेटने से और ठण्ड में वृद्धि; गरमाई तथा गति से ह्रास ।
भारी परिश्रम किये जाने के सपने नाव खेने, तैरने, अपने दैनिक जीवन सम्बन्धी कठोर परिश्रम किए जाने के (ब्रायो ) ।
मुख के दोनों किनारे व्रणग्रस्त, मुख के चारों ओर तथा ठोड़ी पर बुखार के छाले ।
जिह्वा – शुष्क, दाहक, लाल, फटी हुई त्रिकोणक लाल चोंच दन्त चिन्हों से अंकित (बेलिडो, पोडो) । अत्यधिक प्यास, साथ ही जिह्वा, मुख और कण्ठ शुष्क ।
बाह्य जननांग प्रवाहित, विसर्पमय, शोकग्रस्त ।
सविराम ज्वर में शीत से पहले और उसके दौरान सूखी, तंग करने वाली खांसी; खांसी के साथ जीभ का रक्तिम स्वाद । जब तरुण रोगों का झुकाव आंत्रिक ज्वर की ओर होता दिखाई देता है ।
अतिसार – आंत्रिक ज्वर आरम्भ होने के साथ; निरंकुश, साथ ही भारी थकान; मलत्याग के दौरान हाथ-पैरों के पिछले भाग में नीचे की ओर फाड़ने वाला दर्द ।
पक्षाघात – प्रभावित भागों की सुन्नता के साथ; गीली जमीन पर लेटने के कारण भीग जाने से शारीरिक श्रम करने, प्रसव होने, अत्यधिक सम्भोग करने, विषमज्वर अथवा आंत्रिक ज्वर के बाद; हाथ-पैरों का आंशिक पक्षाघात ।
विसर्प, बायें से दायें; फफोलेदार, पीली फुन्सियाँ, अत्यधिक सूजन, प्रदाह, जलन, खुजली, दंशज पीड़ा ।
संबन्ध –
- ब्रायोनिया से पूरक सम्बन्ध ।
- एपिस से विपरीत सम्बन्ध, इसका प्रयोग न तो पहले किया जाना चाहिए न बाद में ।
- आर्निका, ब्रायो, रोडो, नेट-सल्फ्यू, सल्फ से तुलना कीजिए ।
रोगवृद्धि – तूफान से पहले; ठण्डे भोगे हुए बरसाती मौसम में; रात को, प्रमुखतया आधी रात के बाद; पसीने से तर शरीर भीगने से; विश्राम करते समय ।
रोगह्रास – गर्म, शुष्क जलवायु में; शरीर को भली-भांति लपेटने से गर्मी अथवा गर्म पदार्थों से; चलने-फिरने, स्थिति परिवर्तन करने तथा पीड़ित भागों को गतिशील रखने से ।
कुछ परिस्थितियों को छोड़कर रस की प्रमुख चारित्रिकता है इसके दर्द में विश्राम के दौरान वृद्धि होती है और चलने-फिरने अथवा गति करने से आराम आता है ।
रस की खुजली और जलन को सीपिया से बहुत जल्दी आराम आता है, फुन्सियां कुछ दिनों में ही सूख जाती हैं।