अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ और उनका प्रभाव

अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ और उनका प्रभाव

हमारे शरीर में दो प्रकार की ग्रन्थियाँ हैं – एक वे हैं जो अपने में बनने वाले रस को नलिकाओं द्वारा शरीर के विशेष भागों तक पहुँचाती हैं और दूसरी वे हैं जो अपना विलक्षण रस नलिकाओं द्वारा नहीं अपितु सीधा रक्त द्वारा शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों तक पहुँचाती हैं ।

इन्डोक्राइन तथा हार्मोन ग्रीक भाषा के शब्द हैं जिनका अर्थ क्रमशः अन्तःस्त्राव तथा उत्तेजित करना है । इन ग्रन्थियों में उत्पन्न होने वाले उत्तेजक रस शरीर की वृद्धि, पोषण, यौन संतुलन, स्वाधीन मांसपेशियों के संचालन तथा अन्य ग्रन्थियों की क्रियाओं के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भाग लेते हैं । अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली में विकार आ जाने से शरीर में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है जिस कारण अनेक रोग हो जाते हैं।

गत कुछ वर्षों में पशुओं और रोगी मनुष्यों के शरीर से कुछ ग्रन्थियों को निकाल कर या उनकी कार्यप्रणाली को रोक कर जो परिणाम सामने आयें हैं, वे अत्यंत विचित्र हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इस खोज से अब यह निश्चित हो चुका है कि अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के उत्तेजक रस (hormones) की अधिकता या कमी से न केवल साहस, शारीरिक गठन तथा मानसिक योग्यता जैसे गुण घट जाते हैं बल्कि व्यक्ति का व्यवहार तथा चालचलन ही बदल जाता है।

ये छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ इतनी शक्तिशाली तथा प्रभावकारी हैं कि किसी भी स्त्री या पुरुष के जीवनक्रम में बहुत बड़ा परिवर्तन ला देती हैं एक या अनेक ग्रन्थियाँ कई स्त्री-पुरुषों में अधिक सक्रिय (overactive hyperactive) या फिर अशक्त (underactive hypoactive) हो जाती हैं।

कुछ साल पहले जब इन ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली के बारे में पूरा ज्ञान नहीं था तब यह कहा जाता था कि मनुष्य उतना ही तरुण होता है जितनी तरुण उसकी धमनियाँ होती हैं। पर अब यह कहा जाता है कि मनुष्य उतना ही तरुण होता है जितनी तरुण उसकी अन्तःस्रावी रसोत्पादक नलिकाहीन ग्रन्थियाँ हैं ।

अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों हमारे शरीर के विभिन्न भागों में नाक की सीध में लगभग मध्य भाग में स्थित होती हैं जैसाकि आकृति नं० 1 में दर्शाया गया है। इन ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों की स्थिति भी आकृति 1 में दिखायी गई है।

अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ और उनका प्रभाव
आकृति नं० 1

अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है, वे एक दूसरे की सहायक, पूरक (supplement and interact with each other) तथा संचालक हैं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम, उनकी शरीर में स्थिति, कार्यप्रणाली तथा उनसे सम्बन्धित रोग इस प्रकार हैं :-

पिट्यूटरी ग्रन्थि (Pituitary Gland)

सिर में मस्तिष्क के नीचे स्थित इस ग्रन्थि का आकार मटर के दाने से भी छोटा होता है परन्तु अपनी विशेषता के कारण इसे सब ग्रन्थियों का नेता तथा संचालक (Master Gland of the body) माना गया है। यह छोटी सी ग्रन्थि तीन भागों में विभक्त होती है और कई प्रकार के रस उत्पन्न करती है। कुछ रस दूसरी ग्रन्थियों को उत्तेजित करते हैं ताकि वे अपना कार्य ठीक प्रकार कर सकें।

शरीर की वृद्धि में इस ग्रन्थि का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह हड्डियों के विकास को वश में रखती है। इस ग्रन्थि द्वारा तरुणावस्था से पहले अधिक रस बनाने के कारण मनुष्य असाधारण रूप में आकार बड़ा हो जाता है। धड़ की लम्बाई तो साधारण होती है पर भुजाएँ, टाँगें तथा पैर अपेक्षाकृत बड़े होते हैं।

तरुणावस्था से पहले जब यह ग्रन्थि सुस्त पड़ जाती है अर्थात कम रस उत्पन्न करती है तो हड्डियों की वृद्धि सामान्य नहीं हो पाती और मनुष्य नाटा रह जाता है। अतः किसी भी व्यक्ति की ऊँचाई तरुणावस्था से पहले पिट्यूटरी ग्रन्थि की कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है।

यह ग्रन्थि अन्य ग्रंथियों की सहायता से शरीर में शक्कर के पाचन तथा चर्बी बनाने की क्रिया पर नियंत्रण रखती है। अगर यह ग्रन्थि ठीक प्रकार काम न करे तो मधुमेह का रोग बढ़ जाता है।

बच्चों का उत्पन्न होना, उनके शरीर में कैलसियम का बनना और उनकी हड्डियों की वृद्धि भी इसी ग्रन्थि के अधीन है। इस ग्रन्थि के रसस्त्राव से रक्त के दबाव, मानसिक प्रतिभा, जनन संस्थान की वृद्धि तथा स्त्री-पुरुषों की जननेन्द्रियों तथा यौन-लक्षणों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। स्त्रियों में प्रसूति के समय गर्भाशय में लचीलापन आना तथा दुग्ध स्त्राव का नियंत्रण भी इसी ग्रन्थि के अधीन है। पिट्यूटरी की अल्पक्रियता के कारण कमजोरी, अधिक प्यास लगना, अधिक पेशाब आना तथा बालों का झड़ना आदि रोग हो जाते हैं।

इस ग्रन्थि के प्रतिबिम्ब केन्द्र हाथों तथा पैरों के अँगूठों के अग्रभागों (tips) में होते हैं जैसाकि आकृति नं0 1 में दिखाया गया है. इस ग्रन्थि को सक्रिय करने के लिए बायें से दायें अर्थात (clockwise) प्रेशर देना चाहिए तथा इसकी कार्यगति कम करने के लिए दायें से बायें अर्थात (anti-clockwise) प्रेशर देना चाहिए।

पिट्यूटरी ग्रन्थि अपने हार्मोनस ठीक प्रकार बना रही है कि नहीं, एक विशेष विधि द्वारा खून की जाँच से यह पता लगाना अब बहुत आसान हो गया है। कौन सा हार्मोन ठीक प्रकार नहीं बन रहा, उसी अनुसार इलाज भी किया जाने लगा है। पर एक्युप्रेशर द्वारा बिना दवा, इस ग्रन्थि की कार्यविधि को ठीक किया जा सकता है।

थाइरॉयड ग्रन्थि (Thyroid Gland)

गहरे लाल रंग की यह ग्रन्थि कंठ के नीचे गले की जड़ में दो खण्डों में विभक्त होती है। इसे शक्ति प्रदान करने वाली ग्रन्थि कहते हैं क्योंकि यह शरीर में फुर्तीलापन प्रदान करती है। इसका पाचन क्रिया से सम्बन्ध है तथा शरीर में आक्सीजन के उपभोग को नियन्त्रित करके कार्बन डाइआक्साइड के निकास को प्रभावित करती है।

इस ग्रन्थि के अल्प स्त्राव (hyposecretion – hypothyroidism) की स्थिति में व्यस्कों में वजन बढ़ने लगता है तथा शरीर में कुछ सूजन भी आ जाती है जिसे मिक्सएडिमा कहते हैं। इसके अतिरिक्त शरीर की गतियाँ तथा सोचने व बोलने की क्रियाएँ मन्द पड़ जाती है, त्वचा स्थूल और शुष्क हो जाती है, केश गिरने लग जाते हैं, यहाँ तक कि गंजापन हो जाता है। शरीर का तापमान सामान्य से कम रहने लगता है।

थाइरॉयड ग्रन्थि के अतिस्त्राव (hypersecretion) की अवस्था में शरीर का तापमान सामान्य से अधिक रहने लगता है, वजन घटना शुरू हो जाता है, गर्मी सहन करने की क्षमता कम हो जाती है, जल्दी घबराहट होने लगती है तथा कई लोगों के हाथ-पैर कांपने लग जाते हैं। छोटी-छोटी बात पर उत्तेजित हो जाना भी इसका अन्य लक्षण है । नाड़ी की गति भी बढ़ जाती है।

यह ग्रन्थि दाम्पत्य जीवन में विशेष महत्व रखती है क्योंकि ऐसे पति-पत्नी जिनकी ये ग्रंथियाँ एक दूसरे के विपरीत हों अर्थात एक की साधारण तथा दूसरे की उत्तेजित, तो उनके स्वभाव में परस्पर तालमेल होना काफी कठिन हो जाता है।

कई बच्चों में थाइरॉयड ग्रन्थि बचपन से ही अशक्त होती है जिस कारण उनकी मानसिक वृद्धि नहीं हो पाती तथा उनकी जनेन्द्रियाँ पूर्णता विकसित नहीं हो पाती। ऐसे बच्चे प्रायः शारीरिक रूप से विकृत भी होते हैं ।

थाइरॉयड ग्रन्थि के सामान्य स्त्राव में आयोडीन की मात्रा रहती है पर ऐसे इलाके जहाँ पानी में आयोडीन की मात्रा कम रहती है वहां के लोगों को गलगण्ड हो जाता है। इस दशा में थाइरॉयड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है। ऐसे क्षेत्रों में आयोडीन की कमी पूरी करने के लिए लोगों को केवल आयोडाइजड नमक खाने को कहा जाता है।

थाइरॉयड ग्रन्थि का इतना महत्त्व है कि अगर इस ग्रन्थि का थोड़ा सा भाग काट कर निकाल दिया जाए या पूरी ग्रन्थि निकाल दी जाए तो उससे मनुष्य के स्वभाव, चालचलन तथा शरीर पर काफी प्रभाव पड़ता है।

थाइरॉयड के कई टैस्ट यथा T3, T4, FTI तथा TSH द्वारा अब यह जानना भी संभव हो गया है कि थाइरॉयड ग्रन्थि अपना कार्य ठीक प्रकार कर रही है कि नहीं। कई बार थाइरॉयड ग्रन्थि में कोई विकार नहीं होता पर पिट्यूटरी ग्रन्थि की निष्क्रियता के कारण भी थाइरॉयड ग्रन्थि अपना कार्य ठीक प्रकार नहीं कर पाती क्योंकि पिट्यूटरी ग्रन्थि, थाइरॉयड ग्रन्थि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन (thyroid-stimulating bormone – TSH) ठीक प्रकार नहीं बनाती। डाक्टर दवाइयों द्वारा दोनों ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली को सुधारने का कार्य करते हैं।

आकृति नं० 2

एक्युप्रेशर द्वारा बिना दवा, दोनों ग्रन्थियों की कार्यविधि को ठीक किया जा सकता है। थाइरॉयड तथा पैरा-थाइरॉयड ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्र हाथों तथा पैरों के अंगूठों के बिल्कुल नीचे तथा अँगूठों के ऊँचे उठे हुए भाग में होते हैं जैसाकि आकृति नं० 2 में दिखाया गया है। थाइरॉयड ग्रन्थि के अल्पस्नाव (hyposecretion – hypothyroidism) की स्थिति में इसकी कार्यक्षमता तेज़ करने के लिए प्रेशर बायें से दायें अर्थात घड़ी की सूई की भाँति (clockwise) देना चाहिए जबकि अतिस्राव (hypersecretion – hyperthyroidism) की स्थिति में इसकी कार्यक्षमता कम करने के लिए प्रेशर दायें से बायें (anticlockwise) देना चाहिए।

वैसे अगर clockwise तथा anticlockwise का अधिक ध्यान न करते हुए अँगूठे या किसी उपकरण से सीधा या मालिश की भाँति भी प्रेशर दिया जाए तो भी इस ग्रन्थि की कार्यप्रणाली सामान्य हो जाती है। थाइरॉयड ग्रन्थि का कार्य ठीक करने के लिए पिट्यूटरी ग्रन्थि के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी अवश्य प्रेशर देना चाहिए।

पैरा-थाइरॉयड ग्रन्थियाँ (Parathyroid Glands)

थाइरॉयड ग्रन्थि के पीछे दोनों ओर दो-दो अर्थात् कुल चार छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं जिन्हें पैरा-थाइरॉयड ग्रंथियाँ कहते हैं, इनमें वसा तो होती है पर आयोडीन नहीं। ये ग्रन्थियाँ शरीर की सबसे अधिक रक्तमय अंग हैं तथा रक्त के कुछ रासायनिक तत्त्वों को ठीक रखने में सहायक होती हैं । ये शरीर में कैलसियम के संतुलन को बनाये रखती हैं अन्यथा हड्डियाँ कमजोर पड़ जाएँ और शीघ्र टूट जाएँ। इन ग्रन्थियों द्वारा ठीक प्रकार काम न करने से जोड़ों के रोग हो भी जाते हैं तथा बढ़ भी जाते हैं तथा रक्त में कैलसियम की मात्रा अधिक हो जाने के कारण गुर्दों में कैलसियम जमने लगता है, फलस्वरूप गुर्दों में पथरियाँ (renal stones) बनने लगती हैं।

डाक्टरी जाँच द्वारा अब यह मालूम करना भी संभव हो गया है कि ये ग्रन्थियाँ अपना कार्य ठीक प्रकार कर रही हैं कि नहीं। दवाइयों के बिना एक्युप्रेशर द्वारा इन ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली में सुधार लाया जा सकता है। पैरा-थाइरॉयड ग्रन्थियों के हाथों तथा पैरों में वही प्रतिबिम्ब केन्द्र हैं जोकि थाइरॉयड ग्रन्थि के हैं जैसाकि आकृति नं० 2 में दिखाया गया है। थाइरॉयड तथा पैराथाइरॉयड ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों के अतिरिक्त पिट्यूटरी ग्रन्थि के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी जरूर प्रेशर देना चाहिए क्योंकि इनका आपस में घनिष्ट सम्बन्ध है।

थाइमस ग्रन्थि (Thymus Gland)

यह ग्रन्थि गर्दन के नीचे तथा हृदय से कुछ ऊपर स्थित होती है। यह अधिक से अधिक दो वर्ष की आयु में विकसित होती है और चौदह वर्ष की आयु तक इसके पिंड धीर-धीरे चर्बी में लुप्त होने लगते हैं। यह ग्रन्थि बालकों के शारीरिक विकास में सहायक होती है और जननेन्द्रियों के विकास पर नियंत्रण रखती है।

यदि यह ग्रन्थि युवावस्था तक लुप्त न हो तो मनुष्य में बड़ा विकार आ जाता है। छोटी सी चोट भी प्राणघातक सिद्ध हो सकती है। इस ग्रन्थि के प्रतिबिम्ब केन्द्रों की हाथों तथा पैरों में स्थिति आकृति नं0 1 में दिखायी गई है।

आड्रेनल उपवृक्क ग्रन्थियाँ (Adrenal or Suprarenal Glands)

 दोनों गुर्दों के ऊपर टोपी की भांति एक एक ग्रंथि होती है जिसे आड्रेनल या उपवृक्क ग्रंथियाँ कहते हैं । इन ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों की पैरों तथा हाथों में स्थिति आकृति नं० 3 में दर्शायी गई है।

आकृति नं० 3

ये ग्रन्थियाँ जनन संस्थानों की वृद्धि पर प्रभाव डालती हैं। इन ग्रन्थियों का रस जीवन तथा शक्ति के लिए आवश्यक है क्योंकि यह रक्त के दबाव तथा स्वतंत्र मांसपेशियों पर प्रभाव डालता है।

आड्रेनल ग्रन्थियों का रस ही मनुष्य को साहसी या डरपोक बनाता है। इन ग्रन्थियों द्वारा अधिक रस बनाने से रक्त का दबाव बढ़ जाता है, पेट में पित्त की अधिकता, गैस तथा मोटापा आदि के रोग हो जाते हैं।

अगर इसके बनने में कमी आ जाए तो मांसपेशियाँ निर्बल हो जाती हैं, रक्त का दबाव कम हो जाता है, शरीर में कमजोरी आ जाती है और नाड़ियों में विकार होने लगते हैं।

अग्न्याशय (Pancreas) ग्रन्थि

इस ग्रन्थि के बारे में विस्तृत वर्णन ‘मधुमेह’ से सम्बन्धित पोस्ट में किया गया है।

डिम्ब ग्रन्थियाँ (Ovaries)

ये स्त्रियों के प्रजनन अंगों का एक महत्त्वणीय भाग हैं। डिम्बग्रन्थियाँ अर्थात अण्डाशय दो होती हैं और गर्भाशय के दोनों ओर गर्भाशय नलिकाओं के नीचे स्थित होती हैं। इनमें अपरिपक्त डिम्ब होते हैं। जब लड़की लगभग 12 वर्ष की होती हैं तो उसकी किसी एक डिम्बग्रंथि से प्रतिमास एक डिम्ब पक कर किसी एक गर्भाशय नलिका में पहुँचता है। डिम्ब का पुरुष के शुक्राणु से मेल होकर नये जीव का आगमन होता है।

ऐसा अनुमान है कि लड़की के जन्म समय उसकी दोनों डिम्ब ग्रन्थियों में लगभग 350,000 अपरिपक्व डिम्ब होते हैं। रजोनिवृति (menopause) के समय तक इन में से लगभग 375 डिम्ब ही पक्क पाते हैं। जन्म के समय लड़की की डिम्बग्रन्थियों में इतनी बड़ी संख्या में अपरिपक्य डिम्ब क्यों होते हैं, इस रहस्य का ज्ञान अभी तक पता नहीं चल सका है। यह केवल प्रकृति ही जानती है।

डिम्ब का भंडार होने तथा डिम्ब पकाने के अतिरिक्त डिम्ब ग्रन्थियाँ दो प्रमुख हॉरमोनस बनाती हैं जिन्हे एस्ट्रोजन (estrogen) तथा प्रोजेस्ट्रोन (progesterone) कहते हैं। स्त्रियों की विचारबुद्धि, स्वरूप तथा शारीरिक विकास में इन हॉरमोनस का महत्त्वणीय योगदान है ।

पैरों तथा हाथों में डिम्ब ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों की स्थिति आकृति नं0 1 दी गई है।

अण्डकोष वृषण (Testes)

पुरुषों के शिश्न के दोनों और एक-एक अण्डकोष होता है, अर्थात् कुल दो अण्डकोष होते हैं। ये पुरुषों का जनन अंग है। इनमें शुक्राणों का निर्माण होता है तथा प्रत्येक अण्डकोष से पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टीरोन (testosterone) का अन्तःस्राव होता है। अण्डकोषों से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्रों की स्थिति आकृति नं० 1 में दर्शायी गई है।

पीनियल ग्रन्थि (Pineal Gland)

यह मस्तिष्क के भीतर अर्ध गोलाद्ध के पीछे होती है। जब तक मनुष्य काफी वृद्धावस्था को नहीं पहुँच जाता, यह मस्तिष्क की तरुणावस्था को बनाए रखती है। इस ग्रन्थि का जनन अंगों से भी सम्बन्ध रहता है। यह शरीर में पोटाशियम, सोडियम तथा पानी के अनुपात का सन्तुलन रखती है। इस ग्रन्थि के ठीक प्रकार कार्य न करने से शरीर काफी फूल जाता है। इस ग्रंथि के प्रतिबिम्ब केन्द्रों को आकृति नं० 1 तथा 2 में दर्शाया गया है।

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