आँखों के रोगों का एक्युप्रेशर से उपचार
ज्ञानेद्रियों आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा में आँखों का सर्वोच्च स्थान है क्योंकि आँखों की ज्योति के बिना जीवन कष्टकर बन जाता है अतः आँखों को प्रत्येक आयु में पूर्ण रूप से स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है।
आँखों की बनावट
नेत्र आकृति में जितने ही छोटे हैं उनकी बनावट उतनी ही सूक्ष्म है। नेत्रों के बारे में सामान्य रूप से यह जानना आवश्यक है कि नेत्रों की रचना तीन भागों में विभाजित है। नेत्र का बाहरी भाग कुछ मोटा होने के कारण अन्दर के सूक्ष्म भागों की रक्षा करता है। इस भाग को नेत्र का श्वेत मंडल (sclera) कहते हैं। इस हिस्से से जुड़ा हुआ कनीनिका या स्वच्छ मण्डल (cornea ) होता है जिसकी पाँच तहें (layers) होती हैं। यह पारदर्शक होती हैं। नेत्र दान करने की अवस्था में नेत्र बैंक यही कनीनिका (cornea ) ज़रूरतमंद लोगों की आँखों में लगाते हैं।
श्वेत भाग के बाद दूसरा वह भाग है जिसमें छोटी-छोटी रक्तशिराओं का जाल बिछा होता है। इसी भाग से जिसे हम कोरायड (choroid) कहते हैं, आँखों को रक्त मिलता है। मध्यपटल में उपतारी (iris) होता है । इसके साथ तीसरा भाग होता है जिसे हम छायापट (retina) कहते है।
आँखों के विभिन्न रोग
आँखे आकार में बहुत छोटी है पर इनके रोग अनेक हैं बचपन, जवानी और बुढ़ापा प्रत्येक अवस्था में आँखों के रोग हो सकते हैं। यहाँ हम आँखों के उन रोगों का वर्णन करेंगे जोकि एक्युप्रेशर द्वारा पूरी तरह ठीक हो सकते है या इस पद्धति द्वारा इन रोगों में काफी लाभ पहुँच सकता है।
आँखों के विभिन्न रोगों में दूर-दृष्टि की कमजोरी (myopia – short sight) ऐसा रोग है जिसमें दूर से वस्तुओं की ठीक पहचान नहीं हो पाती। यह रोग प्रायः अधिक पढ़ाई-लिखाई करने वाले लोगों को होता है। नजदीक की दृष्टि की कमजोरी (hypermetropia hyperopia – long sight) वह रोग है जिसमें रोगी को नजदीक की वस्तुएँ ठीक स्थिति में नहीं अपितु धुंधली दिखती है। यह रोग कई बच्चों को जन्म से ही होता है।
दीर्घदृष्टता बुढ़ापे का रोग है जिसमें दूरदृष्टि तो ठीक रहती है पर नजदीक से पढ़ने में कठिनाई आती है (आमतौर पर यह रोग 40 वर्ष की आयु के बाद होता है), अनियमित दृष्टि (astigmatism-distorted vision caused by uneven curvature of the cornea) रोग में बिना चश्मे के वस्तुओं को देखने के लिए आँखों की मांसपेशियों पर काफी दबाव देना पड़ता है इस रोग में प्रयत्न करने पर भी कई रोगियों को धुंधला बिंब और कइयों को विकृत बिंब दिखाई पड़ता है ।
ग्लोकोमा (glaucoma) का रोग बहुधा 40 वर्ष की ऊपर की आयु के व्यक्तियों को होता । इस रोग में नेत्र गोलक के अंदर तनाव बढ़ने के साथ नजर धुंधली तथा सिरदर्द रहने लगता । अगर समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो अन्धापन हो जाता है।
वृद्धावस्था में बहुत कम लोग ही मोतियाबिंद (cataract) ये बच पाते हैं। मोतियाबिंद के रोग में आँख का पारदर्शी लेन्स (lens) धीरे-धीरे अपारदर्शी बन जाता है। यह रोग प्रायः दोनों नेत्रों में एक साथ होता हैं, कभी यह एक नेत्र में पहले और दूसरे में बाद में पक सकता है। मोतियाबिंद जब बिलकुल पक जाता है तो ऑपरेशन के बाद अधिक शक्ति के लेन्स वाला चश्मा ही रोगी को पुनः देखने की शक्ति लौटा सकता है।
रतौंधी (night-blindness) का ऐसा रोग है जिस में रोगी को रात को दिखाई नहीं देता। इस रोग का मुख्य कारण पौष्टिक आहार की कमी माना गया है। दिनौंधी (day- blindness) में रोगी को दिन के समय देखने में कठिनाई आती है।
डिपलोपिया (diplopia) वह रोग है जिसमें रोगी को एक वस्तु की दो-दो वस्तुएँ दिखती हैं। इसी प्रकार रंगों का अन्धापन (colour blindness) रोग में रंगों की ठीक पहचान नहीं हो पाती।
आँखों के अन्य प्रमुख रोगों में आँख आना (conjunctivitis), रेटिना में सूजन (retinitis), आँख की नस का दर्द (optic neuritis) आँख की नस का सूखना (optic atrophy), आँखों की पलकों की सूजन (blepharitis), आँखों से आँसू सूख जाना (dry eyes), आँखों से पानी बहना (watering eyes), आँखों की ऊपरी पलकों का नीचे गिरना अर्थात् पलकों का लकवा (ptosis) पुतली की सूजन (iritis), ट्रेकोमा – कुकरे (trachoma), पलक के नीचे फुंसी-गुहांजनी (stye), बक्र दृष्टि-भेंगापन (squint) तथा रोशनी सहन न होना (photophobia) इत्यादि आँखों का सूज जाना, आँखों में दर्द, नजर का कोई काम करने के बाद सिर दर्द, नेत्रों में खुजली, आँखें लाल होना, आँखों के किसी भाग में मांस का उभर आना, आँखों के सामने मक्खियाँ उड़ना या काले धब्बे प्रतीत होना, प्रकाश के चारों ओर रंग-बिरंगे घेरे दिखलाई देना तथा अन्थापन आँखों के आम रोग हैं।
रोग के कारण
आँखों के रोग अनेक कारणों से होते हैं। मुख्यतः यह रोग बहुत गर्म वस्तुओं और नशीले पदार्थों के सेवन, धूल और धुएँ की परिस्थितियों में घंटों भर काम करने, चिंता तथा लगातार किसी परेशानी, दिमाग पर चोट लगने, अधिक रोने, अधिक वीर्यपात, दोषपूर्ण तरीके अथवा कम रोशनी या काफी तेज बल्ब की रोशनी में पढ़ने, लगातार कई घंटे पढ़ने, अधिक समय तक तथा बहुत नजदीक से सिनेमा अथवा टी० वी० देखने, मूत्र या मधुमेह रोगों के कारण, पुरानी कब्ज, समय पर निंद्रा न करने से या बहुत कम निंद्रा करने से कम प्रकाश वाले स्थानों में रहने, कुछ उद्योग-धंधों में आँखों की पूरी तरह देखभाल न करने से और भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी इत्यादि के कारण होते हैं।
कुछ रोग पैतृक भी हो सकते हैं और कुछ रोग छूत हो जाते हैं। अगर गर्भ में बच्चे की पूरी तरह देखभाल न की जाए तो भी कई बच्चे जन्म से अन्धें, कम नेत्र ज्योति वाले और भैंगे होते हैं। अगर गुर्दे (kidneys) अपना कार्य ठीक प्रकार न कर रहे हों तो ऐसी अवस्था में भी आँखों के अनेक रोग हो जाते हैं।
रोग निवारण
आँखों के विभिन्न रोगों की रोकथाम के लिए बहुत जरूरी है कि आँखों को धूल और धुएँ से बचा कर रखा जाए। भोजन में विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’ (यह भी आँखों के लिए उपयोगी है) की पर्याप्त मात्रा ली जाए, नशीली वस्तुओं का सेवन न किया जाए और कब्ज न होने दी जाए।
विटामिन ‘ए’ सभी सब्जियों, पीले फल, टमाटर, घी, मक्खन, दूध, अण्डे की जर्दी, मछली का तेल तथा विटामिन ‘डी’- दूध, कलेजी, अण्डे तथा मछली के यकृत का तेल में काफी मात्रा में मिलता है।
आँखों को स्वस्थ रखने के लिए यह आवश्यक है कि पढ़ते समय पर्याप्त रोशनी में ठीक ढंग से पढ़ा जाए, फलों और सब्जियों का अधिक सेवन किया जाए, नेत्रों को दिन में दो-तीन बार विशेषकर सवेरे तथा रात्रि को सोते समय ठंडे जल से धोया जाए और नियमित रूप से सैर की जाए ।
आँखों में गुलाब जल डालना बहुत गुणकारी है। इतना अवश्य ध्यान रखें कि गुलाब जल बिल्कुल साफ हो। आँखों की किसी तकलीफ में डाक्टर की सलाह के बिना आँखों में कोई दवा न डालें।
सब्जियों में गाजर आँखों के लिए उत्तम है। कच्ची गाजर खाने तथा गाजर का रस पीने से नजर की कमजोरी दूर होती है तथा आँखों के कई अन्य रोग दूर होते हैं। आँखों के रोगों में मूँग की दाल, पालक, दही तथा छाछ भी बहुत लाभदायक हैं। नेत्र रोगों में सिर एवं शरीर की मालिश भी गुणकारी रहती है। मालिश के समय नेत्रों को अधिक खोलना नहीं चाहिए और न ही दृष्टि को किसी वस्तु पर लगातार केन्द्रित करना चाहिए।
आँखों के रोगों का एक्युप्रेशर से उपचार
एक्युप्रेशर द्वारा आँखों के अनेक रोगों का सफल उपचार किया जा सकता है। इतना अवश्य है कि आँखों के कई रोग तो केवल कुछ दिनों में दूर हो जाते है और कई महीनों भर का समय ले लेते हैं। अगर आँखों में साधारण प्रकार का दर्द रहता है तो वह थोड़े दिनों में ठीक हो जाता है पर नजर की कमजोरी इत्यादि रोग दूर करने में कई महीने लग जाते हैं। इस प्रति निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता कि आँखों का अमुक रोग दूर करने में एक महीने का समय लगेगा, दो, तीन या अधिक।
यह जरूर है कि लगभग 10-15 दिन के प्रेशर के बाद आशाजनक परिणाम सामने आने लगते हैं। यहाँ यह समझ लेना भी आवश्यक है कि एक ही तरह का रोग दूर करने में दो व्यक्तियों को एक सा समय नहीं लगता, किसी को थोड़ा कम तो किसी को थोड़ा अधिक । अतः आँखों के रोग दूर करने के लिए थोड़ा धैर्य जरूर रखना चाहिए।
आँखों से सम्बन्धित प्रमुख प्रतिबिम्ब केन्द्र
आँखों से सम्बन्धित प्रमुख प्रतिबिम्ब केन्द्र दोनों पैरों तथा दोनों हाथों में अँगूठों के साथ वाली दो अँगुलियों के उस भाग में होते है जहाँ अँगुलियाँ तलवों तथा हथेलियों से क्रमशः मिलती हैं जैसाकि नीचे चित्र में दर्शाया गया है।

प्रेशर रबड़ या लकड़ी के किसी उपकरण से भी दिया जा सकता है। रोग की अवस्था में तथा आँखों को स्वस्थ रखने के लिए इन केन्द्रों पर नियमित रूप से प्रेशर देना चाहिए।
आँखों से सम्बन्धित सहायक प्रतिबिम्ब केन्द्र
आँखों के अनेक रोग दूर करने के लिए ऊपर दर्शाये गए प्रमुख केन्द्रों के अतिरिक्त कई सहायक केन्द्र भी हैं जो कि काफी महत्वपूर्ण हैं। प्रमुख केन्द्रों के साथ अगर कुछ या सब सहायक केन्द्रों पर भी प्रेशर दिया जाए तो कई रोग शीघ्र दूर हो सकते हैं।
आँखों तथा मस्तिष्क का घनिष्ट सम्बन्ध है, अतः मस्तिष्क से सम्बन्धित दोनों पैरों तथा दोनों हाथों की सारी अँगुलियों के अग्रभागों (tips) पर भी प्रेशर देना चाहिए ।

गर्दन के ऊपर वाले हिस्से से ही आँखों का पोषण होता है, अतः पैरों तथा हाथों के अंगूठों के बाहरी, भीतरी तथा ऊपर वाले भागों पर भी प्रेशर देना चाहिए क्योंकि इन भागों में गर्दन से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्र होते हैं।
आँखों के कई रोग दूर करने के लिए गर्दन के पीछे जहाँ पर खोपड़ी गर्दन से मिलती है। (निम्न आकृति में प्वाइन्टस 1 से 7 ) तथा गर्दन के ऊपर प्वाइन्टस 1-2 एवं 3-4 के मध्य भाग पर, हाथ के अँगूठे से सीधा प्रेशर भी दे सकते हैं।

हाथों पर आख का अन्य केंद्र अंगूठे तथा पहली अंगुली के तिकोने भाग में स्थित होता है। सिर दर्द होने पर इस केंद्र पर प्रेशर देने से बहुत शीघ्र आराम मिलता है।

आँखों सम्बन्धी पैरों पर दो अन्य प्रतिबिम्ब केन्द्र है । पहला केन्द्र प्रत्येक पैर के ऊपर पहले चैनल में अँगुलियों की तरफ से दो अँगूठों के अन्तर पर स्थित होता है। जबकि दूसरा केन्द्र उस मध्य भाग में होता है जहाँ पर पैर और टाँग आपस में मिलते हैं।

दमा तथा श्वास प्रणाली से सम्बन्धित विभिन्न रोगों में केन्द्र नं० 2 पर प्रेशर देने से भी काफी आराम मिलता है। प्रत्येक केन्द्र पर 10 से 15 सेकंड तक प्रेशर देना चाहिए ।
कानों के निचले भाग पर भी आँखों सम्बन्धी तीन महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं। आँखों के प्रत्येक रोग में इन केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए।

भौंहों (eyebrows) को अँगूठों तथा अँगुलियों से पकड़ कर धीरे-धीरे पाँच-सात बार हलका हलका दबाने से भी आँखों के अनेक रोगों में लाभ पहुँचता है। इसी प्रकार आँखों को बंद करके पुतलियों (eyelids) के ऊपर, नाक की तरफ से कान की तरफ अँगुलियों से हलका हलका पाँच-सात बार दबाव देने से भी आँखों के कई रोग दूर करने में सहायता मिलती है। आँखों की ज्योति बढ़ने के लिए ये काफी लाभदायक तरीके हैं।
यदि आँखे लाल रहती हों, आँखों पर सूजन हो या आँखों का कोई अन्य गम्भीर रोग हो तो भौंहों तथा पलकों पर प्रेशर न दें।
आँखों के अग्रभाग पर भी प्रेशर देने से नेत्रों की ज्योति ठीक होती है तथा आँखों के कई रोग दूर होते हैं। इन केन्द्रों की स्थिति निम्न चित्र में दिखाई गई है।

नेत्रों की थकावट, भारीपन, दर्द तथा दृष्टि के विभिन्न रोग दूर करने के लिए पामिंग (नेत्र ढकना) एक बहुत अच्छा व्यायाम है। नेत्रों को हथेलियों द्वारा बिना दबाव डाले ढ़कने की क्रिया को पामिंग कहते हैं। प्रतिदिन 5-10 मिनट तक पामिंग करनी चाहिए। पामिंग करते समय आँखों के आगे बिल्कुल काला रंग ध्यान में लाना चाहिए, कोई अन्य रंग नहीं।
रंगों के अंधेपन (colour blindness) तथा आँख की नस सूखने (atrophy of optic nerve) की स्थिति में आँखों सम्बन्धी विभिन्न प्रतिविम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देने के साथ गुर्दों (kidneys) तथा स्नायु संस्थान (nervous system) सम्बन्धी केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त आँखों के समस्त रोगों में पैरों तथा हाथों के अंगूठों में मस्तिष्क (brain) सम्बन्धी केन्द्रों, लसीका तन्त्र (lymphatic system), जिगर (liver) तथा प्लीहा – सप्लीन (spleen) सम्बन्धी केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए। आँखों की दृष्टि को ठीक रखने तथा संक्रमण से बचाने में जिगर, लसीकातंत्र तथा स्पलीन का बहुत बड़ा योगदान है।
जिगर विटामिन ‘ए’ को स्टोर करता है तथा विभिन्न अंगों को देता है जो रात्रि में दृष्टि के लिए बहुत जरूरी है। लसीकातंत्र कनीनिका (cornea ) को स्वच्छ रखता है। स्पलीन संक्रमण रोकने के लिए विशेष रस (antibodies) पैदा करता है।
जैसाकि पहले बताया गया है कि आँखों के कई रोग कब्ज (constipation), मधुमेह (diabetes) तथा रक्त में कैलशियम की बहुत अधिकता (hypercalcemia – abnormally high concentration of calcium in the blood), उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क पर दबाव तथा गुर्दों के रोगों की अवस्था में होते हैं, इसलिए आँखों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों के अतिरिक्त पैरों तथा हाथों में सारे केन्द्र दबा कर देख लेना चाहिए कि कहीं कब्ज, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, रक्त या गुर्दे के रोग तो नहीं।
अगर ये रोग भी हों तो उनसे सम्बन्धित केन्द्रों पर भी नियमिति रूप से प्रेशर देना चाहिए ताकि आँखों के रोगों के साथ-साथ मूल रोग भी दूर किए जा सकें। ऐसा करने से आँखों के विभिन्न रोगों से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है।
जहाँ तक मोतियाबिंद का सम्बन्ध है, यह आम धारणा है कि यह बालों के सफेद होने की तरह है और इसको रोकने का कोई उपाय नहीं है। वस्तुतः ऐसा नहीं है अगर मोतियाबिंद शुरू होने की अवस्था में ही ऊपर बताई गई विधि द्वारा आँखों से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर नियमित रूप से प्रेशर देना शुरू कर दिया जाए तो मोतियाबिंद से छुटकारा पाया जा सकता है।
अगर मोतियाबिंद के लिए ऑपरेशन करने के बाद आँखों में लाली आ जाये और कोई दवाई गुणकारी प्रतीत न हो रही हो तो पैरों में आँखों सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देने से लाली दूर हो जाती है। ऐसी स्थिति में प्रेशर बहुत धीरे-धीरे देना चाहिए। मुझे कई लोगों ने सूचित किया है कि उन्होंने एक्युप्रेशर द्वारा शुरू की अवस्था का मोतियाबिंद दूर किया है। इतना अवश्य है कि अगर मोतियाबिंद पक जाये तो उसके लिए ऑपरेशन जरूरी हो जाता है।
ऐनक से छुटकारा पाएँ
उपरोक्त बताई गई विधियों द्वारा नियमित रूप से प्रेशर देने से दूर एवं नजदीक की दृष्टि ठीक करके वर्षों से लगी ऐनक उतारी जा सकती है। इतना अवश्य है कि इस कार्य में काफी धैर्य की आवश्यकता है क्योंकि दृष्टि रोग दूर करने में कई महीनों का समय लग जाता है।
इसमें यह बात महत्त्व रखती है कि चश्मे का नम्बर कितना है, व्यक्ति का भोजन कैसा है, पढ़ाई-लिखाई का कितना काम है, टी० वी० कितने घंटे देखते हैं, कितने अंतर पर बैठ कर देखते हैं, नींद पूरी लेते हैं कि नहीं, अधिक चिंता तो नहीं रहती, घर का वातावरण कैसा है, कोई अन्य रोग तो नहीं तथा क्या माता-पिता को भी चश्मा लगा हुआ है इत्यादि । पर निराश होने की आवश्यकता नहीं, सफलता अवश्य मिलती है।
साधारण रूप में भी प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को ऊपर बताई गई विधियों द्वारा प्रतिदिन आँखों से सम्बन्धित केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए। ऐसा करने से आँखों को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखा जा सकता है ।