एक्युप्रेशर से मानसिक रोगों का उपचार
सुख-दुःख, हार-जीत, सफलता-असफलता आदिकाल से ही मानव जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। जो व्यक्ति जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार करता है वह मानसिक तौर पर सबल तथा सुखी है पर जो संघर्ष, दुःख, हार तथा असफलता में अपना संतुलन खो देता है उसे मानसिक रोग लग जाते हैं। वैसे मानसिक रोग होने के कई अन्य कारण भी हैं।
मानसिक रोग भी कई तरह के हैं कुछ तो आंतरिक भावों के कारण होते हैं यथा डिप्रेशन आदि जिनका कारण प्रायः ज्ञात नहीं होता। कई मानसिक रोग कुछ पैतृक कारणों, दिमाग में कुछ रासायनिक परिवर्तनों तथा शारीरिक कमजोरियों के कारण होते हैं। इसके अतिरिक्त मानसिक रोग लगातार अधिक नशा करने के कारण होते हैं। कई लोगों को ये रोग दिन-प्रतिदिन के पारिवारिक झंझटों के कारण होते हैं।
डिप्रेशन (Depression): बहुत से व्यक्तियों को जीवन में कभी न कभी किन्हीं कारणवश कुछ समय के लिए डिप्रेशन हो जाता है। उदासी एवं मानसिक परेशानी के बीच वे संघर्ष करते रहते हैं। कुछ समय बाद वे व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक उलझनों पर विजय पा लेते हैं। इस परिस्थिति को मानसिक रोग या डिप्रेशन नहीं कह सकते। डिप्रेशन उस अवस्था का नाम है जब कोई व्यक्ति दिन-प्रतिदिन निराश रहने लगता है, उसका किसी काम में मन नहीं लगता, घर, परिवार, काम-काज व्यवसाय, सुख-आराम सब व्यर्थ प्रतीत होते हैं और जीवन बोझल लगने लगता है।
डिप्रेशन दो प्रकार का होता है- (i) रिएक्टिव डिप्रेशन – reactive depression (ii) एन्डोजिनस डिप्रेशन endogenous depression. रिएक्टिव डिप्रेशन का कोई कारण होता है यथा किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की मृत्यु प्यार में असफलता तथा वित्तीय नुकसान इत्यादि । एन्डोजिनस डिप्रेशन व्यक्ति के अन्दर से ही बगैर किसी कारण जागृत होता है। कई बार इस प्रकार का डिप्रेशन वाइरल इन्फेक्शन (viral infection) तथा कई स्त्रियों को बच्चे को जन्म देने के बाद हारमोनस परिवर्तन (hormonal changes ) के कारण होता है।
ठीक प्रकार काम न करने, स्त्रियों में हॉरमोनस के असंतुलन, मधुमेह-शूगर रोग, भूखे रह कर वजन घटाने की स्थिति, व्यायाम न करने तथा पौष्टिक खुराक न खाने के कारण भी डिप्रेशन का रोग हो जाता है।
डिप्रेशन के रोग में मुख्यतः शारीरिक शक्ति कम हो जाती है, नींद नहीं आती, भूख नहीं लगती, पेट खराब रहने के अतिरिक्त कब्ज रहती है और सिर दर्द भी रहने लगता है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, अकेला रहने को मन करता है, अपने आप से घृणा हो जाती है, किसी काम में मन नहीं लगता, मन में बुरे-बुरे विचार आते हैं, शरीर में दर्द रहने लगता है, बिना काम किये थकावट प्रतीत होती है, विवाहित व्यक्तियों की सेक्स में रुचि कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है और ऐसे व्यक्ति भविष्य के बारे में सोचना बंद करके अपने वर्तमान को भी नरक बना देते हैं।
अगर डिप्रेशन का कोई कारण है तो सबसे पहले उसे दूर करने की यथासंभव कोशिश करनी चाहिए। डिप्रेशन वाले व्यक्ति से पूरी सहानुभूति करके उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए। उसे यह समझाना चाहिए कि जीवन एक संघर्ष है और संघर्ष के लिए हमेशा सहर्ष तैयार रहना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को संतो, महात्मों तथा प्रेरणामय नेताओं के जीवन गाथाओं को पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। डिप्रेशन वाले व्यक्ति को अकेले नहीं रहने देना चाहिए। मधुर संगीत, सैर, व्यायाम तथा अच्छी फिल्में ऐसे व्यक्ति की भावना शीघ्र परिवर्तित करती हैं। जहाँ तक इलाज का सम्बन्ध है एक्युप्रेशर द्वारा कुछ ही दिनों में डिप्रेशन दूर किया जा सकता है। ऐसे सैकड़ों रोगी इस पद्धति से लाभ प्राप्त कर चुके हैं।
फोबिया (Phobia) : यह एक प्रकार का बेबुनियाद डर है जिससे कई व्यक्ति रोग ग्रस्त हो जाते हैं A phobia is an irrational fear of a specific object or situation. इस रोग के कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। यह बहुत जरूरी है कि इन मूलभूत कारणों का पता लगा कर उन्हें दूर किया जाये तथा रोगी की मानसिक अवस्था को सशक्त बनाया जाये। एक्युप्रेशर द्वारा मनुष्य की मानसिक शक्ति को प्रबल बनाया जा सकता है जिससे फोबिया आदि मानसिक रोग बहुत जल्दी दूर हो जाते हैं। मनुष्य की आंतरिक शक्ति ही उसको सबल या निर्बल बनाती है।
बेचैनी (Anxiety) : लगातार बेचैनी रहना या बार- बार बेचैनी की भावना रहना निश्चय ही एक मानसिक रोग है। इस रोग के कई लक्षण हैं। इस रोग में व्यक्ति क्षुब्ध रहता है, वह ठीक प्रकार सोच नहीं सकता, नींद ठीक नहीं आती, डरावने सपने आते हैं, भय लगता है, हथेलियों में पसीना आता है तथा आवाज ठीक प्रकार निकल नहीं पाती। कई रोगी खाना भी ठीक प्रकार नहीं खा पाते कई साँस भी कठिनाई से लेते हैं, कइयों की सेक्स में रुचि खत्म हो जाती है या सेक्स की कमजोरी अनुभव करते हैं, कई रोगियों को रुक-रुक कुछ दिनों बाद दस्त लग जाते हैं तथा पेट खराब रहता है। अधिकतर रोगियों को बगैर किसी कारण बेचैनी रहती है। छोटी-छोटी बात से ये घबरा जाते हैं तथा कहीं जाने के लिए दूसरे व्यक्ति का साथ चाहते हैं।
यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होता है । थाइरॉयड ग्रन्थि के अधिक क्रियाशील (over active) हो जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है।
इस रोग का अगर कोई कारण ज्ञात हो तो सर्वप्रथम उसे दूर करना चाहिए। अधिक आराम करना, धीमा-धीमा मधुर संगीत सुनना, मन पसंद पुस्तकें पढ़ना तथा कुछ यौगिक आसन करना इस रोग में लाभप्रद रहते हैं। एक्युप्रेशर द्वारा यह रोग सहज ही दूर किया जा सकता है।
हिस्टीरिया (Hysteria) : यह मुख्यतः स्त्रियों का रोग है यह अधिकतर 15 से 25 वर्ष की आयु वाली लड़कियों में देखा गया है।
इसका मुख्य कारण किसी अतृप्त इच्छा को अपने अंदर दबाये रखना है। यह इच्छा सेक्स की, प्रेम की या कोई अन्य भी हो सकती है। डाक्टरों का ऐसा विचार है कि जो स्त्रियाँ बहुत लाड़-प्यार के वातावरण में पली हुई हों, अगर उन्हें अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़े या उनकी इच्छायें काफी समय तक पूरी न हों, विशेषकर सेक्स की तृप्ति न हो तो उन्हें हिस्टीरिया का रोग हो जाता है। पति का दुर्व्यवहार तथा मनपंसद संग न मिलना भी इस रोग का कारण हो सकता है। अधिकतर स्त्रियों को यह ज्ञात नहीं होता कि उनकी अतृप्त इच्छा के कारण ही उन्हें यह रोग हुआ है।
हिस्टीरिया की अधिकतर रोगी स्त्रियों का स्वभाव प्रायः विलक्षण होता है। ऐसी स्त्रियाँ बचपन से ही आलसी स्वभाव की, मेहनत न करने वाली, रात्रि को अधिक देर तक जाग कर उपन्यास पढ़ने, सिनेमा देखने या गपशप करने वाली तथा सवेरे देर से उठने वाली होती हैं । इस रोग से पीड़ित स्त्रियों के मन में हमेशा दूसरों के प्रति भ्रमपूर्ण विचार रहते हैं ।
इन्हें सिर, छाती, पेट तथा रीढ़ की हड्डी में दर्द तथा कन्धों की मांसपेशियों में जकड़न रहती है। कुछ मांसपेशियों में ज्ञानशून्यता भी आ जाती है। कभी-कभी बोलने की शक्ति क्षीण हो जाती है। पाचन की खराबी, कभी भूख बहुत अधिक तथा कभी बहुत कम तथा बार-बार पेशाब आना इस रोग के कुछ अन्य लक्षण हैं।
हिस्टीरिया का दौरा मिरगी के दौरे से भिन्न होता है। इस रोग में मूर्च्छा अचानक नहीं होती । रोगी अपने को सँभल कर गिरती है ताकि चोट न लगे, प्रायः एकान्त या अकेले में दौरा नहीं पड़ता, सोये हुए नहीं पड़ता, दंतकड़ नहीं पड़ती, रोगी प्रायः बेसुध नहीं होती और कुछ बड़बड़ाती रहती है। इस रोग का दौरा कई घंटे तक पड़ा रह सकता है।
यह आवश्यक है कि परिवार के सारे सदस्य, विशेषकर विवाहित स्त्री का पति उसे अच्छे वातावरण में रखें, पत्नी की इच्छाओं और उसकी यौन आकांक्षाओं को पूरा करे ।
दौरे की स्थिति में रोगी के सिर पर गीले तौलिए की पट्टी रखनी चाहिए, हवादार कमरे में खिड़कियाँ और दरवाजे खोल कर उसे लिटाना चाहिए तथा थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी पिलाना चाहिए। रोगी के हाथों तथा पैरों की अँगुलियों के अग्रभागों (tips) पर प्रेशर देने से मूर्च्छा बहुत जल्दी दूर हो जाती है। दौरे के बाद कमजोरी दूर करने के लिए हथेलियों, तलवों तथा हाथों व पैरों के ऊपर हलका हलका प्रेशर देना चाहिए। एक्युप्रेशर द्वारा हिस्टीरिया के रोगी की मानसिक अवस्था सशक्त करके तथा शरीर अन्य विकारों को दूर करके यह रोग शीघ्र दूर किया जा सकता है।
मानसिक तनाव (Mental Tension) : वाल्टर टेम्पिल ने मानव जीवन को बहुत ही उपयुक्त शब्दों में चित्रित करते हुए कहा है कि “केवल मनुष्य ही रोता हुआ पैदा होता है, शिकायत करता हुआ जीता है और निराश मरता है।”
आज के वैज्ञानिक युग में जबकि मनुष्य भौतिक प्रगति की चरम सीमा को छू रहा है उसका निजी जीवन अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है । घर, दफ्तर और कारोबार की उलझनों ने उसकी मानसिक शांति खत्म कर दी है। आज का मनुष्य मानसिक तनाव में जी रहा है और यही मानसिक परेशानी उसके अनेक रोगों का कारण है । मानसिक तनाव दूर करने के लिए यह जरूरी है कि चिंता, भय आशंका, निराशा, घृणा, ईर्ष्या तृष्णा, लोभ अविश्वास तथा असुरक्षा की भावना को त्यागकर आत्म-विश्वास तथा आशावादी दृष्टिकोण अपनाया जाये ।
मानसिक तनाव का रोग अधिकतर उन लोगों को होता है जिन की नवर्ज़ कमजोर हों। अपने मनोबल को मजबूत बनाने के अतिरिक्त ऐसे लोगों को हलका भोजन तथा शाकाहारी भोजन लेना चाहिए जो सुपाच्य हो। इसके अतिरिक्त भोजन को अच्छी तरह चबा कर खाना चाहिए। हलका व्यायाम तथा सैर ऐसे लोगों के लिए उत्तम हैं।
मानसिक रोग दूर करने के लिए अपने काम में मन लगाना बहुत जरूरी है। इस रोग में दवाइयाँ निसंदेह कुछ देर के लिए आराम पहुँचाती हैं पर इनका लम्बे समय तक सेवन नुकसान पहुँचाता है, अतः इन्हें छोड़ना ही चाहिए। एक्युप्रेशर द्वारा मानसिक तनाव बहुत जल्दी दूर किया जा सकता है।
एक्युप्रेशर द्वारा मानसिक तथा भावात्मक रोगों का उपचार
एक्युप्रेशर द्वारा मानसिक तथा भावात्मक रोग दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले दोनों पैरों तथा दोनों हाथों में पिट्यूटरी ग्रन्थि, मस्तिष्क, स्नायुसंस्थान, नाभिचक्र व डायाफ्राम, थाइरॉयड तथा आड्रेनल ग्रन्थियों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर दिया जाये जैसाकि आकृति नं० 1 में दर्शाया गया है।

मानसिक तथा भावात्मक रोगों से पीड़ित अनेक व्यक्तियों के रोग लक्षण समान भी तथा भिन्न भी हो सकते हैं, अतः पैरों तथा हाथों में सारे केन्द्रों पर प्रेशर देकर देखें, जो केन्द्र दबाने से दर्द करें उन सब पर नियमित रूप से प्रेशर दें।
अनेक मानसिक रोग विशेषकर डिप्रेशन दूर करने के लिए पैरों तथा हाथों के अँगूठों तथा अँगुलियों के ऊपरी भागों पर प्रेशर दें जैसाकि आकृति नं० 2 में दिखाया गया है। इन रोगों में ये बहुत ही प्रभावी केन्द्र हैं ।

हाथों के ऊपर त्रिकोने स्थान (आकृति नं० 3) पर प्रेशर देने के अतिरिक्त पैरों तथा हाथों की सारी अँगुलियों (आकृति नं० 4) पर मालिश की भाँति प्रेशर दें।


इन रोगों में पीठ के पीछे रीढ़ की हड्डी से थोड़ा हट कर ऊपर से नीचे की तरफ हाथों के अँगूठों के साथ तीन बार प्रेशर देने से स्नायुसंस्थान के कई विकार दूर होते हैं, कमजोर मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं तथा शरीर में जकड़न व दर्द दूर होते हैं जोकि मानसिक रोगों में आम लक्षण होते हैं।
इन रोगों में क्योंकि पाचन शक्ति प्रायः खराब होती है या कुछ खाने को मन नहीं करता, अतः पाचनतंत्र के सारे प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए। अगर मधुमेह या कोई अन्य रोग हो तो उससे सम्बन्धित केन्द्रों पर भी प्रेशर दें ।
हॉरमोनस के असंतुलन के कारण भी कई स्त्रियों को ये रोग हो जाते हैं, अतः स्त्री रोगियों का इलाज करते समय ग्रन्थियों से सम्बन्धित केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए। विवाहित व्यक्तियों के प्रजनन अंगों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए क्योंकि सेक्स की इच्छा जागृत होने तथा सेक्स की तृप्ति से भी इनमें से काफी रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
मानसिक रोगों में रोगी एक विचित्र तनाव में रहते हैं। दिन-प्रतिदिन के सारे काम करते हुए भी वे निराश एवं उदास रहते हैं। इस तनाव को कम करने तथा दूर करने के लिए गर्दन के दोनों ओर (आकृति नं० 5) ऊपर से नीचे की तरफ हाथ के अँगूठे या अँगुलियों से प्रेशर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त दोनों पैरों तथा दोनों हाथों के ऊपर सारे चैनलस (आकृति नं० 6) में भी प्रेशर देना चाहिए।


प्रेशर शुरू करने से पहले या प्रेशर समाप्त करते समय पैरों तथा हाथों के अँगूठों के बाहरी तरफ तथा गर्दन के पीछे अवश्य प्रेशर देना चाहिए।
एक्युप्रेशर द्वारा विभिन्न मानसिक रोग बहुत शीघ्र अर्थात एक सप्ताह से लेकर एक-दो महीने के अंदर दूर हो जाते हैं। अच्छा तो यह है कि रोग दूर हो जाने के बाद भी कुछ दिनों या महीनों तक प्रेशर देते रहना चाहिए ।