श्वास प्रणाली के रोगों का एक्युप्रेशर से उपचार
श्वास-प्रणाली के रोगों में प्रमुख रोग दमा (asthma), बायुनली की सूजन-ब्रांकाइटिस (bronchitis), फेफड़ों की विभिन्न बीमारियां (various diseases of lungs), एलर्जीस (allergies) तथा खाँसी (cough) आदि हैं।

श्वसन संस्थान के विभिन्न अंग है। नाक (nose), गला (pharynx), स्वरयन्त्र (larynx), श्वासनलिका (trachea), दो श्वास वाहिनियाँ (two bronchi-right bronchus and left bronchus), श्वास वाहिनियों की उपशाखाएँ तथा अति सूक्ष्म शिराएं (bronchioles and smaller air passages), दो फेफड़े (two lungs) तथा फेफड़ों के आवरण (pleura) इत्यादि जैसाकि आकृति नं0 1 से स्पष्ट है।
दमा (Bronchial Asthma)
श्वासनली तथा उसके बाद छोटी-छोटी श्वास नलियों द्वारा हवा फेफड़ों में पहुँचती है जब श्वास नलियों के छिद्र सिकुड़ जाते हैं तथा श्लेष्मा भर जाने के कारण बन्द हो जाते हैं तो उनमें से वायु का फेफड़ों तक नियमित रूप से बेरोक आना जाना कठिन हो जाता है। श्वास नलियों की इसी असुविधाजनक अवस्था को श्वास रोग या दमा कहते हैं।
सभी प्रकार के दमा में श्वासनली भी कमजोर और दोषयुक्त हो जाती है। उसके दुर्बल तथा अक्षम होने के कारण ही यह रोग होता है। आमतौर पर दमा हलकी सी सर्दी लगने पर शुरू होता है तथा फिर साँस लेने में कठिनाई प्रतीत होती है। दौरा पड़ने पर रोगी हाँफने लगता है और छाती में प्रश्वास का शब्द सुनाई देने लगता है। प्रायः दमे के दौरे किसी को सर्दी के मौसम में, किसी को गर्मी में तथा किसी को बरसात में पड़ते हैं।
जब यह रोग पुराना हो जाता है तो कई रोगियों को यह अधिक भोजन खाने, काफी गुस्सा करने, कब्ज, खाँसी तथा हिचकी के साथ भी शुरू हो जाता है। रक्त का दूषित होना भी इस रोग का कारण हो सकता है क्योंकि जब दूषित रक्त श्वास नलियों में पहुँचता है तो उनमें सिकुड़न पैदा करता है, सिकुड़न होने से श्वास लेने में कठिनाई आती है। रक्त मुख्य रूप से गलत खाने-पीने के कारण दूषित होता है।
धूल भरी हवा में साँस लेने, कई पेड़ों, पौधों, फूलों, दवाइयों, कई जानवरों के बालों तथा कई पक्षियों के परों की गंध से भी कई व्यक्तियों को दमा का दौरा पड़ जाता है। कई बच्चों को कई तरह की मानसिक परेशानियों के कारण भी अचानक दमे का दौरा पड़ जाता है। वनस्पति घी के अधिक सेवन, कई खास धातुओं से सम्बन्धित उद्योग धन्धों, चीनी मिलों तथा खान में काम करने वाले लोगों में भी यह रोग अधिक देखा गया है। जिनका शरीर किसी अन्य कारण से अस्वस्थ हो ऐसे कई रोगियों को भी यह रोग हो जाता है। अब एक मत यह भी है कि अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि दमा क्यों होता है।
आजकल कुल जनसंख्या के लगभग 5 प्रतिशत लोगों को दमा का रोग है। यह रोग बच्चों में अपेक्षाकृत अधिक है। प्रयोगशाला की कई प्रकार की जाँच से दमा का पता लग जाता है । विभिन्न पद्धतियों में इस रोग के कई इलाज हैं, यद्यपि अभी तक कोई संतोषजनक इलाज नहीं है। दमा से मरने वाले रोगियों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। दुःख की बात तो यह है कि कई लोग अज्ञानवश कुछ नीम हकीम व्यक्तियों के चक्कर में आ जाते हैं जो उन्हें देसी दवा में सटीरोयड (steroids) मिला कर देते हैं। यह दवा एकदम तो कुछ दिनों के लिए चमत्कारी असर करती है पर इसका अधिक सेवन शरीर को बहुत नुकसान करता हैं। हमने अनेक रोगियों की इस प्रकार की दवा प्रयोगशाला (laboartory) से टेस्ट करवाई है जिसमें सटीरोयड का मिश्रण पाया गया है।
ब्रांकाइटिस (Bronchitis) वायु नली की सूजन का रोग है। यह आमतौर पर ठंड लगने तथा कीटाणुओं के आक्रमण के कारण होता है। इस रोग में साँस लेने में तकलीफ, खाँसी तथा ज्वर हो जाता है। प्रायः गला सूखने लगता है यथा जलन सी अनुभव होती है। ब्रांकाइटिस में रोगी के खाँसने पर उसका चेहरा प्रायः नीला सा पड़ जाता है। ब्रांकाइटिस दो प्रकार का होता है acute bronchitis or chronic bronchitis. Acute bronchitis के बारे में कहा गया है
Inflammation of the bronchial tubes may be caused by viral or bacterial infections. Bronchitis occurs more frequently in winter and more commonly in cold damp climates. Commencing as a common cold or infection of the throat, nose or sinuses, the inflammation may spread into the chest.
Chronic bronchitis इस रोग की बढ़ी हुई अवस्था है:-
Chronic bronchitis is a degenerative disease. After repeated attacks of bronchitis, the walls of the bronchial tubes become thickened, inelastic, and narrowed. The mucous membranes of the bronchi are permanently inflamed and the airways become filled with tenacious (sticky) mucus.
फेफड़ों के रोगों में निमोनिया (Pneumonia-inflammation of the lungs), फेफड़ों के आवरण की सूजन प्लूरिसी (pleurisy), तथा फेफड़ों का फुलाव कम होना (emphysema) रोगों की स्थिति में डॉक्टरी इलाज के साथ अगर एक्युप्रेशर द्वारा इलाज किया जाए तो ये रोग बहुत शीघ्र दूर हो जाते हैं।
निमोनिया (Pneumonia) में फेफड़ों में सूजन, खाँसी तथा साँस लेने में तकलीफ होती है। सिर दर्द, छाती में हलका सा दर्द, बेचैनी तथा अधिक प्यास लगना भी इस रोग के कुछ अन्य लक्षण हैं। यह रोग भारी ठंड लगने के कारण होता है। गलत रहन-सहन तथा अच्छा भोजन न करने से भी यह रोग हो जाता है।
फेफड़ों के अन्दर जब विषैला पदार्थ जमा हो जाता है तो वह फेंफड़ों के आवरण (pleura) तक भी पहुँच जाता है जिससे आवरण में सूजन आ जाती है जो कष्टदायी बन जाती है। इस तकलीफ को प्लूरिसी (pleurisy) कहते हैं। यह रोग फेफड़ों के किसी अन्य रोग, ठंड लगने, गुर्दों तथा जोड़ों के रोगों के कारण भी हो जाता है। फेफड़ों का फुलाव कम हो जाने के कारण साँस लेने में काफी कठिनाई होती है।
एलर्जीस (Allergies) कई प्रकार की हैं। एक्युप्रेशर के अतिरिक्त एलर्जी की जाँच करवा के उस वस्तु से परहेज करना चाहिए जिससे एलर्जी होती है ।
खाँसी (Cough) के कई कारण हो सकते हैं। यह दमा, हृदय रोगों वायुनली में विकार, थाइरॉयड ग्रन्थि में सूजन तथा अधिक बलगम बनने के कारण होती है । धुएँ-धूल वाले गंदे वातावरण में रहने, शरीर में अम्लता बढ़ने, अंतड़ियों में हवा भरने तथा फेफड़ों में रक्त इकट्ठा होने के कारण भी खाँसी हो जाती है। काली खाँसी (whooping cough) मुख्य रूप से बच्चों की बीमारी है जिसमें खाँसते – खाँसते मुँह लाल यहाँ तक कि नीला हो जाता है, शुरू में नाक से पानी बहता है, शरीर का तापमान भी थोड़ा अधिक रहता है। कफ निकलने पर रोगी को कुछ आराम मिलता है। यह दिन और रात में कई बार हो जाती है।
छाती की हड्डियों का दर्द (inter costal neuralgia) प्रायः छाती की नसों या स्नायु मांसपेशियों में किसी विकार, खून की कमी, पसलियों तथा रीढ़ की हड्डी की सूजन व छाती के अन्दर गिल्टियों की सूजन आदि के कारण होता है।
दमा तथा अन्य श्वास रोगों का एक्युप्रेशर द्वारा उपचार
दमा (asthma), तथा श्वास प्रणाली से सम्बन्धित लगभग सारे रोग (respiratory disorders) एक्युप्रेशर द्वारा ठीक हो सकते हैं। इतना अवश्य है कि दमा तथा श्वास सम्बन्धी कुछ पुराने रोगों को इस पद्धति द्वारा पूरी तरह जाने में कुछ समय लग सकता है। अगर एक्युप्रेशर द्वारा शुरू के पांच-सात दिनों में कुछ उत्साहजनक परिणाम न मिलें तो निराश नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि एक्युप्रेशर द्वारा इन रोगों में लाभ न पहुँचे।
दमा तथा श्वास सम्बन्धी प्रत्येक रोग में पिट्यूटरी ग्रन्थि, पीनियल ग्रन्थि, थाइरॉयड ग्रन्थि तथा आड्रेनल ग्रन्थियों सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए जैसाकि आकृति नं० 2 तथा 3 में दर्शाया गया है। हाथों तथा पैरों के अंगूठों के अग्रभागों (tips) के अतिरिक्त सारी अँगुलियों के अग्रभागों पर प्रेशर देना चाहिए।


दमा तथा श्वास सम्बन्धी प्रत्येक रोग में स्नायु संस्थान सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर अवश्य प्रेशर देना चाहिए जैसाकि आकृति नं० 4 तथा 5 से स्पष्ट है।


ऊपर बताये प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देने के बाद साँस की नलिकाओं- श्वास वाहिनियों (bronchial tubes) तथा फेफड़ों सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों (आकृति नं० 6) पर प्रेशर देना अनिवार्य है।

दोनों बाजुओं पर फेफड़ों से सम्बन्धित मेरीडिअनस हैं जैसाकि आकृति नं० 7 में दिखाया गया है। बाजुओं पर जो तीन-तीन केन्द्र दिखाये गये हैं वे श्वास रोगों के अत्यंत ही प्रभावी केन्द्र हैं। छाती पर ‘कालर बोन’ के नीचे तथा पेट पर नाभि तथा पसलियों के मध्यभाग में, मध्य लाइन से एक-एक अँगूठे की दूरी पर भी इन रोगों से सम्बन्धित केन्द्र हैं। इन केन्द्रों पर केवल कुछ सेकंड के लिए दो-तीन बार प्रेशर देना चाहिए। श्वास रोगों से सम्बन्धित नीचे कुछ अन्य प्रतिबिम्ब केन्द्रों का वर्णन किया जा रहा है। इन सारे या इनमें से कुछ केन्द्रों पर प्रेशर देना काफी लाभदायक रहता है।

पैरों तथा हाथों के ऊपर सारे चैनलस (आकृति नं० 8) में प्रेशर देने से छाती की जकड़न दूर होकर श्वास रोगों में आराम मिलता है। जब दमा का अटैक हुआ हो तो इन केन्द्रों पर मालिश करने से दमा का प्रकोप एकदम कम हो जाता है।

हाथों पर अँगूठे तथा पहली अँगुली के बीच वाला भाग ( आकृति नं० 9) भी श्वास रोगों से सम्बन्धित है, अतः इन पर भी प्रेशर देना चाहिए। प्रेशर हाथ के अँगूठे से देना चाहिए।

इन रोगों में पीठ के ऊपरी भाग पर रीढ़ की हड्डी तथा कन्धों के पट्टों (shoulder blades) के साथ-साथ हाथों के अँगूठों से दिन में दो-तीन बार या फिर एक बार अवश्य प्रेशर देना चाहिए। रोग के दौरे की स्थिति में अगर पीठ पर इन केन्द्रों पर प्रेशर दिया जाय तो रोग का प्रहार ढीला पड़ जाता है और काफी आराम मिलता है। अच्छा तो यह है कि सारी पीठ पर रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर प्रेशर दिया जाए।
एलर्जीस (allergies) दूर करने के लिए कुहनी के बाहरी तथा भीतरी भाग पर एक प्रभावी केन्द्र है जैसाकि आकृति नं० 10 में दिखाया गया है। एलर्जीस से सम्बन्धित तलवे के ऊपरी भाग में तथा नाक के नीचे (आकृति नं० 11) भी केन्द्र हैं। ये केन्द्र मूर्च्छा दूर करने के लिए भी प्रभावी हैं।


इसके अतिरिक्त गले में गहरे स्थान पर अँगुली के साथ हलका हलका दबाव देने से भी इन रोगों में काफी आराम मिलता है जैसाकि आकृति नं० 12 में दिखाया गया है। यह दबाव केवल कुछ सेकंड के लिए ही देना चाहिए।

ऐसे रोगियों को दिन में दो-तीन बार कुछ मिनटों के लिए अपनी जीभ दाँतों के नीचे (आकृति नं० 13) दबा कर रखनी चाहिए। दाँतों का दबाव हलका होना चाहिए।

Cardiac asthma की स्थिति में उपरोक्त बताए गए प्रतिबिम्ब केन्द्रों के अतिरिक्त हृदय सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए। अगर गर्भाशय, डिम्बग्रथियों, पुरःस्थ ग्रन्थि तथा अण्डकोषों सम्बन्धी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देने से दर्द हो तो इन पर भी नियमित रूप से प्रेशर दें।
दमा तथा अन्य श्वास रोगों की स्थिति में अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए और ऐसे कोई भी पदार्थ नहीं खाने चाहिए जिनसे एलर्जी हो तथा गैस बने। ऐसे रोगी ठंडे पदार्थ तथा मिठाइयां या तो बिल्कुल न लें या फिर बहुत कम और वह भी कभी-कभी लें। इन्हें अपना भोजन समय पर खाना चाहिए। बेवक्त भोजन खाना इनके लिए हानिकारक हो सकता है।
दमा के रोगियों को रात्रि का भोजन बिल्कुल हलका, थोड़ा सा तथा सोने से लगभग तीन घंटे पहले लेना चाहिए। भोजन अच्छी प्रकार चबाकर खाना चाहिए। शहद तथा लहसुन का सेवन ऐसे रोगियों के लिए गुणकारी है। सर्दियों में तुलसी एवं अदरक की चाय लें। सप्ताह में एक दिन उपवास रखना बहुत लाभदायक है।
श्वास रोगों में विटामिन सी लेना काफी लाभदायक है। ऐसे रोगियों को विटामिन-सी की दिन में 3 टिकियाँ कुल 1500 मिलीग्राम (नाश्ता, दोपहर के भोजन तथा रात्रि के भोजन के कुछ समय बाद एक-एक टिकिया) कुछ दिनों के लिए लेनी चाहिए।
इन रोगों में कब्ज और पेट की वायु दूर करने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए । प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पीना चाहिए पर खाने के साथ पानी नहीं पीना चाहिए ।
चिंता तथा स्वभाव में तेजी दूर करनी चाहिए क्योंकि इन से ये रोग बढ़ते हैं । श्वास रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को हलका व्यायाम, सैर तथा ताजी हवा में नाक द्वारा लम्बे साँस लेने चाहिए, धुँए, गंदी हवा तथा दूषित वातावरण से दूर रहना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को उठते बैठते तथा सोते समय अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखनी चाहिए। सिगरेट तथा तम्बाकू का सेवन नहीं करना चाहिए।
पाश्चात्य डाक्टर भी अब इस तथ्य को मानने लग गए हैं कि कोई भी ऐसी दवा नहीं, जिससे दमा ठीक हो सके। उनका विचार है कि एलर्जी दूर करने वाले भोजन पदार्थों को न खाने से दमा दूर रखा जा सकता है।